मंगलवार, 3 सितंबर 2024

आकाश खो चुका हूँ मुट्ठीभर पाने के लिए

 आज भी उलझा हूँ कुछ सुलझाने के लिए 

आकाश खो चुका हूँ मुट्ठीभर पाने के लिए


सुनाना चाहता हूँ तुम्हें कई दिलचस्प बातें

मगर कोई खुशख़बरी नहीं सुनाने के लिए 


सफ़र है काँटों से भरा पैरों में जूते भी नहीं

इसके बावजूद तैयार हूँ उधर जाने के लिए  


मेरा वजूद ही मिल जाये लड़ाई में काफी है

मैं खुद को मिटा दूंगा खुद को पाने के लिए 


तुम्हें बता देना चाहता हूँ बात बहुत ठीक से

मैं कतई कीड़ा नहीं हूँ बिलबिलाने के लिए


- कंचन ज्वाला कुंदन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें