आज भी उलझा हूँ कुछ सुलझाने के लिए
आकाश खो चुका हूँ मुट्ठीभर पाने के लिए
सुनाना चाहता हूँ तुम्हें कई दिलचस्प बातें
मगर कोई खुशख़बरी नहीं सुनाने के लिए
सफ़र है काँटों से भरा पैरों में जूते भी नहीं
इसके बावजूद तैयार हूँ उधर जाने के लिए
मेरा वजूद ही मिल जाये लड़ाई में काफी है
मैं खुद को मिटा दूंगा खुद को पाने के लिए
तुम्हें बता देना चाहता हूँ बात बहुत ठीक से
मैं कतई कीड़ा नहीं हूँ बिलबिलाने के लिए
- कंचन ज्वाला कुंदन
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