शनिवार, 7 सितंबर 2024

उद्योग धंधे टाइप का बाबागिरी बिजनेस है


आज मेरी फिर से एक नई कविता पेश है

उद्योग धंधे टाइप का बाबागिरी बिजनेस है


बाहर से संन्यासी और अंदर से संसारी ही 

आश्रम के भीतर भी तो राग द्वेष क्लेश है


ग्राउंड फ्लोर पे प्रभुजी और टॉप पे टपाटप

हवस के भूखे भेड़ियों का गजब साधु भेष है 


बार-बार मिलेगा बेल, बलात्कारी बाबा को 

क्या बताऊँ कितना कि महान मेरा देश है 


ब्लैक-वाइट के खेल में चट्टू बने हैं नेताजी 

कल खोलूँगा पोल-पट्टी जो रह गया अवशेष है 

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