कहती है बेताब होकर मिलो आओ जरा भी
इतने फासले ठीक नहीं गले लगाओ जरा भी
उसने शर्त रखी है मिलना है मगर मिलना नहीं
ये कैसे मुमकिन है कुछ समझाओ जरा भी
जब जाहिर ही नहीं करना है जरा भी बेताबी
फिर कैसे मिलूं बेताब होकर बताओ जरा भी
जिस्म को बख्शने की शर्त लगाकर कहती है
चलो जिस्म से जिस्म को मिलाओ जरा भी
मनमर्जी कर ले चाहे जितना भी तू मंजूर है
सताए हुए को और थोड़ा सताओ जरा भी
- कंचन ज्वाला कुंदन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें