मंगलवार, 3 सितंबर 2024

जिस फसल की कटाई हो चुकी है, अब ख़्वाब में उसके बीज बोता हूँ

 ये क्या पाने के लिए समय खोता हूँ

वर्तमान में रहकर अतीत में होता हूँ


आज़ाद हो गया पिंजरे से फिर भी

उसी के नाम का रट ग़ज़ब तोता हूँ


जिस फसल की कटाई हो चुकी है

अब ख़्वाब में उसके बीज बोता हूँ


शादी हो गई मेरी भी इसके बावजूद

करवट बदल-बदलके क्यों सोता हूँ


मेरा ये अंदाज़ बहुत निराला है प्रिये

बाहर से मुस्कुराके अंदर से रोता हूँ


- कंचन ज्वाला कुंदन

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