अव्वल बात तो ये है कि पॉलिटिक्स ही गोबर है. दूसरी बात ये है कि अब गोबर पर पॉलिटिक्स शुरू हो गया है. भूपेश सरकार ने गोबर खरीदने का ऐलान कर दिया है. गोबर खरीदने के ऐलान के तत्काल बाद भाजपा के पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कहा कि गोबर को अब राजकीय चिन्ह घोषित कर देना चाहिए. इस पर करारा पलटवार करते हुए कांग्रेस ने भाजपा के लिए बड़ा ऑफ़र पेश कर दिया. कांग्रेस ने कहा कि आप अपने दिमाग में भरे हुए गोबर बेचकर आमदनी बढ़ा सकते हैं. कांग्रेस का तर्क है कि अजय चंद्राकर ने गोबर धन का अपमान किया है. ये बात तो ठीक है अजय चंद्राकर ने गोबर का अपमान किया है. कांग्रेस ने अपने बयान में उससे भी बड़ा अपमान किया है. कांग्रेस ने कहा कि दिमाग में भरे हुए गोबर बेचना है. इसका साफ़-साफ़ मतलब ये है कि कांग्रेस ने दिमाग में भरे बौद्धिक संपदा का घोर अपमान किया है. क्या आप तुच्छ बयानबाजी के लिए बौद्धिक संपदा की तुलना गाय की गोबर से करेंगे. कांग्रेस का ये मानना है कि भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं के दिमाग में गोबर भरा हुआ है. मतलब कांग्रेस का ये भी मानना है कि उनके अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के दिमाग में गुड़ भरा हुआ है. ये तो रही गोबर पॉलिटिक्स की बात. अब जरा गोबर माफिया के विषय पर बात करते हैं. आपने रेत माफिया, मीडिया माफिया, खनन माफिया, भू-माफिया ऐसे बहुत से शब्द सुने होंगे. अब गोबर माफिया शब्द मेरे नाम से पेटेंट किया जाए. भूपेश सरकार के गोधन न्याय योजना के कुछ महीनों बाद ही बड़े-बड़े गोबर माफिया पैदा हो जाएंगे. किसी भी सरकार की ऐसी कोई महत्वाकांक्षी योजना नहीं जिसमें माफियाओं का बोलबाला न हो. सच तो ये है कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ गाय दूध कम वोट ज्यादा देती है. भारत एकमात्र देश है जहाँ आप गौमूत्र से लाला रामदेव बन सकते हैं. अब गाय का गोबर भी हाईजैक हो चुका है. गाय भाजपा का बड़ा मुद्दा है. अब कांग्रेस का बड़ा मुद्दा गोबर है. गाय का गोबर भी निश्चित ही राजनीति में नया इतिहास रचेगा. भाजपा ने गौगुंडों को जन्म दिया. अब गोबर गुंडों का भी एक नया जमात, एक नया धड़ा खड़ा होगा. कांग्रेस के गोबर मुद्दे पर भाजपा के कार्यकर्त्ता और नेता विरोध में प्रदर्शन करने नए-नए हथकंडे अपनाएंगे. हो सकता है भाजपा कार्यकर्त्ता चेहरे पर गोबर पोतकर प्रदर्शन करें. कांग्रेस के गोबर मुद्दे पर किस-किस तरह का विरोध प्रदर्शन हो सकता है ये तो आने वाला समय ही बताएगा. किसी भी मुद्दे पर विरोध के लिए प्रयोगधर्मिता का दौर है. आपका विरोध प्रदर्शन जितना अनोखा होगा मीडिया में उसके कवरेज की गुंजाईश उतना ही बढ़ जाएगा. पेट्रोल-डीजल के दाम महंगे हो गए तो रस्सी से कार खींचो. सारा खेल अखबारों में छपास और टीवी चैनलों में दिखास का है. इन विरोध प्रदर्शनों में आम जनता के सरोकार का कुछ भी नहीं है. आज बस इतना ही... कल फिर मिलेंगे... अलविदा...
आपका अपना ही-
कंचन ज्वाला कुंदन
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