कुंदन के कांटे
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आज हिंदी दिवस है. लोग लगातार एक दूसरे को हिंदी दिवस की बधाई दे रहे हैं. पहली बात हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाडा मनाने की जरूरत क्यों...? खैर, यह बात आज यहीं पर...दूसरी बात करते हैं. दूसरी बात यह कि कुछ लोग हिंदी के ऐसे हिमायती हैं कि जिनके बेटे का नाम प्रिंस है. बेटी का नाम क्विन है. और लच्छेदार भाषण तो ऐसे देते हैं जैसे कि हिंदी ही खाते हैं, हिंदी ही पीते हैं, हिंदी का ही सोना हो, और हिंदी का ही बिछौना हो...खुद के बच्चे इंग्लिश मीडियम में पढ़ेंगे और फिर ऐसे आदमी हिंदी का झुनझुना क्यों थमाता है दूसरे को... यह बात वाकई समझ से परे है...मगर सिर्फ आपके...हमारे समझ से नहीं...जुमलेबाजी से हिंदी को सर पर ढोने वाले घोर हिमायती, तथाकथित कई संगठनों से आज की इस बात का कोई सरोकार नहीं है....क्योंकि उनकी बात कभी और...कहीं और भी... की जा सकती है. आपके लिए आज हिंदी दिवस पर मेरी एक कई साल पुरानी कविता शेयर कर रहा हूँ.....बात किसी को चुभी हो तो क्षमा....
और...
अपने बेटे से बोली
बेटा प्रिंस !
लेसन याद हुआ कि नहीं
बेटे ने अंग्रेजी रौब में कहा- यस मॉम
बेटा इंग्लिश स्कूल में पढ़ने चला गया
4 घंटे बाद माँ भी तैयार हुई
उन्हें हिंदी दिवस कार्यक्रम में
जोरदार भाषण भी तो देना था
वहां उन्होंने हिंदी की महिमा मंडन की
बच्चों को हिंदी माध्यम में पढ़ने-पढ़ाने की पैरवी की
हिंदी की मजबूत पैरवी पर मजबूत दलीलें भी दी
इंग्लिश को भारी गरियाकर
कार्यक्रम से देर शाम लौटी
और अपने हिंदी पुत्र प्रिंस को घुड़ककर पूछी
माय सन प्रिंस ! आज क्या होमवर्क मिला है
खेलो मत उन्हें पूरा करो
भाषणों में हिंदी की घोर हिमायती आदर्श माँ ने
बच्चे की होमवर्क में सहयोग भी की
अपने हिंदी बच्चे को अंग्रेजियत की कई पाठ पढ़ाई
और फिर जल्दी से सो गई
क्योंकि उन्हें दूसरी जगह कल भी...
हिंदी दिवस पर जोरदार भाषण देने जाना था
- कंचन ज्वाला कुंदन
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