बड़े ही संस्कारी हो सभ्य है शहर तुम्हारा
क्या तुम्हारे ज्ञान से रावण राम हो जाता है
मैं तो भक्त हूँ रावण का तू जिसे भी पूज ले
फालतू चूं-चपड़ से नींद हराम हो जाता है
भाषा का अंग है गालियाँ भी, देकर बताऊँ
मेरे नजरिये से ही अमरुद आम हो जाता है
थोड़ा सा सीख ले किसी को सिखाने से पहले
तेरी गहरी नहीं सोच और गंगाराम हो जाता है
क्या कड़वा सच कहना भी गुनाह है हुजुर
तेरे निजाम में शायर ही बदनाम हो जाता है
मैं झुका नहीं पाता सर, दबा नहीं पाता दूम
मेरा छोटा सा काम भी जाम हो जाता है
तू चाटने के लिए जाता है बड़े अदब से
सर झुकाते ही तेरा हर काम हो जाता है
मैं दब जाता हूँ यहाँ दफ्तर की गुमनामी में
तलवे चाट-चाटकर तेरा नाम हो जाता है
तुम तो सुबह ही चंद घंटों में पहुँच जाते हो
मुझे गंतव्य तक पहुँचने में शाम हो जाता है
मैं कमजोर हूँ या धीरे चलता हूँ बताओ मुझे
सक्सेस के पहले ही काम तमाम हो जाता है
मैं ही हर मामले में झंडूबाम निकलता हूँ
तू तो हर मामले में आसाराम हो जाता है
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