बुधवार, 4 सितंबर 2024

अपने हाथों अपना सर नोंचता है आदमी क्यों

 क्या है ये किस्मत इसे कोसता है आदमी क्यों

किस्मत के ही बारे में सोचता है आदमी क्यों

दिन टहलके रात बहलके यूँ जिंदगी बिताना

अपने हाथों अपना सर नोंचता है आदमी क्यों

हर आदमी छटपटा रहा है अपने ही अंधेरे में

दूसरों के उजाले को ही देखता है आदमी क्यों

हमने यहां क्या किया एक कतरा मालूम नहीं

दूसरों का हिसाब ही रखता है आदमी क्यों

कुदरत ने कहा कई तरीकों से कर्म ही महान है

जिंदगी को इधर-उधर खोजता है आदमी क्यों

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