दबाकर रखा हूँ जज्बात कहना चाहता हूँ
आओ एक आख़िरी बात कहना चाहता हूँ
मुकम्मल मिले नहीं मुकम्मल बिछड़ेंगे सही
आओ एक आख़िरी रात कहना चाहता हूँ
तुम्हारे शौहर को पता भी न चले, हम मिलें
कुछ ऐसा करो करामात कहना चाहता हूँ
मुकम्मल मिलेंगे किसी मोड़ पे तूने कहा था
लाओ फिर वो हसीं रात कहना चाहता हूँ
वैसे हमारे मिलन का निष्कर्ष भी कुछ नहीं
'ढाक' के वही 'तीन पात' कहना चाहता हूँ
- कंचन ज्वाला कुंदन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें