मंगलवार, 3 सितंबर 2024

मैंने जिस्म भी छुआ नहीं उसका

 वो कौन थी जिसे गुनगुनाता रहा 

मैं रूहानी सुकून भी पाता रहा 


काला करता रहा कोरे कागजों को 

खुशफहमी में दिल बहलाता रहा 


मैंने जिस्म भी छुआ नहीं उसका 

फिर भी उसकी याद रुलाता रहा 


वो भूल गई मेरी गली में आना 

मैं उसकी गलियों में जाता रहा 


तारीफ की थी उसने मेरी हँसी की 

मैं दर्द में भी मुस्कुराता रहा 


इतने दिनों बाद भी उसे भूल नहीं पाया 

पता नहीं उससे क्या नाता रहा 


समझ ही नहीं आया तो क्या करूँ 

मैं दिल से बेबस धक्के खाता रहा 


अरे छोड़ दे 'कुंदन' एकतरफा प्यार 

मेरा दोस्त हमेशा समझाता रहा 


-कंचन ज्वाला कुंदन

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