वो कौन थी जिसे गुनगुनाता रहा
मैं रूहानी सुकून भी पाता रहा
काला करता रहा कोरे कागजों को
खुशफहमी में दिल बहलाता रहा
मैंने जिस्म भी छुआ नहीं उसका
फिर भी उसकी याद रुलाता रहा
वो भूल गई मेरी गली में आना
मैं उसकी गलियों में जाता रहा
तारीफ की थी उसने मेरी हँसी की
मैं दर्द में भी मुस्कुराता रहा
इतने दिनों बाद भी उसे भूल नहीं पाया
पता नहीं उससे क्या नाता रहा
समझ ही नहीं आया तो क्या करूँ
मैं दिल से बेबस धक्के खाता रहा
अरे छोड़ दे 'कुंदन' एकतरफा प्यार
मेरा दोस्त हमेशा समझाता रहा
-कंचन ज्वाला कुंदन
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