छिनता जा रहा है मेरे हिस्से का धूप भी
कि इस क़दर मैं कब तक रहूँगा चूप भी
जल जंगल जमीन हवा फ़िजा लूट लिए
बेहद सक्रिय है इन लुटेरों का ग्रुप भी
किसी को नसीब नहीं चाय की चुस्कियां
किसी के लिए मौजूं है चिकन सूप भी
कुछ भटक रहे हैं दर-ब-दर निवाले को
किसी ने खोद लिए दौलत के कूप भी
सामाजिक समानता पर संसद में बहस
बड़े ही छद्म हैं इन गिरगिटों के रूप भी
- कंचन ज्वाला कुंदन
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