मंगलवार, 3 सितंबर 2024

तेरे शहर में तो जिस्म भी बिकने को तैयार होते हैं

 मेरे गांव की खुद्दारी का तुम कीमत नहीं लगा सकते 

तेरे शहर में तो जिस्म भी बिकने को तैयार होते हैं 


तेरे शहर के लोग भले ही दिखते हो बड़े सभ्य 

मगर नजरों से गिद्ध चरित्र से सियार होते हैं 


गांव में गरीबी है मगर तेरे टाईप कंगाली नहीं 

यहाँ तो घर के लोग ही घर से दरकिनार होते हैं 


तुम आठ कमरों के मकान में यहाँ अकेले पड़े हो 

तुम्हें गांव जाकर समझ आएगा कैसे परिवार होते हैं 


शहर से ज्यादा खुश हैं गांव के लोग जाकर देख लो 

तुम्हारा भ्रम मिट जाएगा कंक्रीट में ही संसार होते हैं 


- कंचन ज्वाला कुंदन

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