मेरे गांव की खुद्दारी का तुम कीमत नहीं लगा सकते
तेरे शहर में तो जिस्म भी बिकने को तैयार होते हैं
तेरे शहर के लोग भले ही दिखते हो बड़े सभ्य
मगर नजरों से गिद्ध चरित्र से सियार होते हैं
गांव में गरीबी है मगर तेरे टाईप कंगाली नहीं
यहाँ तो घर के लोग ही घर से दरकिनार होते हैं
तुम आठ कमरों के मकान में यहाँ अकेले पड़े हो
तुम्हें गांव जाकर समझ आएगा कैसे परिवार होते हैं
शहर से ज्यादा खुश हैं गांव के लोग जाकर देख लो
तुम्हारा भ्रम मिट जाएगा कंक्रीट में ही संसार होते हैं
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