बुधवार, 4 सितंबर 2024

तेरे शहर में तो जिस्म भी बिकने को तैयार होते हैं

मेरे गांव की खुद्दारी का तुम कीमत नहीं लगा सकते

तेरे शहर में तो जिस्म भी बिकने को तैयार होते हैं


तेरे शहर के लोग भले ही दिखते हो बड़े सभ्य

मगर नजरों से गिद्ध चरित्र से सियार होते हैं


गांव में गरीबी है मगर तेरे टाईप कंगाली नहीं

यहाँ तो घर के लोग ही घर से दरकिनार होते हैं


तुम आठ कमरों के मकान में यहाँ अकेले पड़े हो

तुम्हें गांव जाकर समझ आएगा कैसे परिवार होते हैं


शहर से ज्यादा खुश हैं गांव के लोग जाकर देख लो

तुम्हारा भ्रम मिट जाएगा कंक्रीट में ही संसार होते हैं

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