बुधवार, 4 सितंबर 2024

हम मारे जा रहे हैं इतिहास से भी बदतर...

 तुमने सुना होगा

तुमने पढ़ा भी होगा

इतिहास में बहुत रक्तपात हुए

शायद तुम बहुत खुश हो

अब रक्तपात बंद हो चुका है

तुम इस बात से भी खुश हो

अब कत्लेआम नहीं होते

तुम इस भ्रम में भी हो

खून की नदियां बहना

बंद हो गईं हैं पूरी तरह

मगर ये वर्तमान

इतिहास से भी भयावह है

इतिहास से भी

खतरनाक हो चुका है

इतिहास से भी ज्यादा

क्रूर होता जा रहा है


ये बात जब तक समझोगे

तब तक तुम भी

गिर चुके होगे जमीं पर

बिना सर कटे ही

फड़फड़ाते दिखोगे

लहू का एक कतरा भी

नीचे नहीं गिरेगा

भीतर ही भीतर

खून से लथपथ हो जाओगे

आखिरी सांसों के लिए

तड़पते नजर आओगे

छटपटाते नजर आओगे

इतिहास में युद्ध होते थे

रक्तरंजित, रक्तपातयुक्त

मगर अब

रक्तविहीन, रक्तशून्य


युद्ध चल रहा है

इतिहास से भी बड़ा...

कल एक किसान ने

खुदकुशी कर ली

डॉक्टरों ने

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में

सुसाइड लिख दिया

तुम किसान के लाश को

दफन कर आए

मुझे खड़ा करो कोर्ट में

मैं पैरवी करूंगा

मेरे पास ठोस सबूत भी है

किसान ने सुसाइड नहीं की

किसान का मर्डर हुआ है

किसान कई महीनों से

भटक रहा था


बीमा की राशि के लिए

काश उसे समय पर

वो राशि मिल गया होता

किसान कई महीनों से

परेशान था

घर की जरूरतें

पूरी नहीं कर पा रहा था

अनाजों के दाम भी

उसे उतना नहीं मिलता

जितना वह उसमें

खून-पसीना सींचता है

हमने उस किसान को

बुजदिल कह दिया

क्योंकि हम सबको

ये लगता है कि

घर की माली हालत से


वह टूट गया, बिखर गया

और अंततः वो मर गया

किसानों की लाशों का

नया पोस्टमार्टम लिखो

दोनों हाथ की ऊँगली में ही

गिन लिए जाएंगे

उनके सभी दोषी

किसानों के

हर पांच कब्रगाहों में

तीन कब्रगाहें

सुसाइड बनाम हत्या की

दर्दनाक दास्तां बताएगा

कब्रगाह में चैन से सोने की

दुखद कहानी सुनाएगा

सच तो यही है

हर सुसाइड अपने आप में


एक मर्डर होता है

मगर मैं सबकी व्याख्या

नहीं कर सकता

मैं सबका नया रिपोर्ट भी

नहीं लिख सकता

हाँ मैं कुछ बातें

तय रूप से जानता हूं

वह कोई भी आदमी

जो मर रहे हैं अभाव में

उसके हम ही आरोपी हैं

ये मर्डर ही तो है

वह कोई भी आदमी

जो मर रहे हैं भूख से

उसे हम रोटी ना देकर

घोट रहे हैं गला उसका

ये मर्डर ही तो है


वह कोई भी आदमी

जो मर रहे हैं

धनपशुओं के कारण

और हम हाथ बांधे खड़े हैं

ये मर्डर ही तो है

वह कोई भी आदमी

जो मर रहे हैं

इस सिस्टम के चलते

हम विरोध नहीं कर रहे हैं

ये मर्डर ही तो है

हम सबको अभी

समझ नहीं आ रहा है

ये इतिहास जैसा ही

दुखद वर्तमान

क्योंकि हम सब

तब्दील होते जा रहे हैं


कठपुतलों में, जिंदा लाशों में

हमारे लिए

आजादी का मतलब

सिर्फ इतना ही है

साल में बस दो दिन

फहरते तिरंगे को

देखना ही है

ये धनपशु, ये धनपिशाच,

गोरे अंग्रेजों के काले औलाद

जंगल उजाड़ रहे हैं

विकास के बहाने

नदियां सुखा रहे हैं

विकास के बहाने

जमीन छीन रहे हैं

कारखानों के लिए


हमें ये खोखला कर रहे हैं

भीतर से

हमें ये कमजोर कर रहे हैं

अंदर से

चूसे जा रहे हैं हम

आम की तरह

तुम आम कैसे खाते हो

तुम ही जानो

मगर ये काले अंग्रेज

आम चूसकर ही खाते हैं

इसी तरह...

मसले जा रहे हैं हम

कुचले जा रहे हैं हम

निचोड़े जा रहे हैं हम

नींबू के मानिंद

और पेरे जा रहे हैं

गन्ने की तरह...


हमारा शोषण हो रहा है

खूब, अत्यंत, जमकर

एकदम पहले ही जैसा

ठीक वैसे ही हूबहू

जैसे इतिहास में

हुआ था हमारे साथ

मैं देख पा रहा हूं

साफ-साफ

तुम्हारे इस तथाकथित

सुखद वर्तमान में

हम मारे जा रहे हैं

इतिहास से भी बदतर...

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