हमारा ये सिस्टम साला कुछ ऐसा ही चलेगा
कभी दाल नहीं गलेगी कभी मूंग भी दलेगा
जेब गरम कर दो कानून ढीला पड़ जाएगा
अंगार वाला धारा भी बर्फ-सा पिघलेगा
तुम्हारी पहुँच है तो मंत्री से करा दो फोन
शेर जैसा अफसर भी बंदर में बदलेगा
कभी रामरहीम भी चल देगा सलाखों के पीछे
करोड़ों का साम्राज्य भी कभी दम नहीं भरेगा
रामपाल को पकड़ने चल देगी पूरी फ़ोर्स
कभी कबीर का अवतार भी कुछ नहीं करेगा
आसाराम भी चल देंगे जेल की रोटी खाने
लाखों भक्तों को चाहे जितना भी खलेगा
यही तो दिक्कत है हमारे सिस्टम की जनाब
इसे जिस तरह ढालोगे उस तरह ढलेगा
घटिया व्यवस्था का कुछ ऐसा ही चरित्र है
ये दिखेगा उजाले में मगर अंधेरे में पलेगा
- कंचन ज्वाला कुंदन
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