हर दिन कोई गुनाह हो ही जाता है मुझसे
सजा काटने कहो तो जिंदगी भी कम
मैं आदमी हूँ गुनाहों का पुतला हूँ
इतना तो पता है फ़रिश्ता नहीं हूँ .............
अपराध बोध की साँसें लेता हूँ जिस वक्त
जेल की सलाखों में ही होता हूँ उस वक्त ..........
मैं दावा करता हूँ हर आदमी कैदी है
शर्त यही है वो गुनाह कबूल कर ले .....
हर आदमी ने किया है कोई न कोई गुनाह
जिसने सफाई नहीं बरती सलाखों के पीछे है......
- कंचन ज्वाला कुंदन
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