रंगों की पसंद से शुरू होता है
आदमी-आदमी में भेद
किसी को केसरिया पसंद है
किसी को सफ़ेद
किसी को हरा पसंद है
किसी को पीला
किसी को काला पसंद है
किसी को नीला
यहाँ अभिवादन से तय होता है
हमारी विचारधारा क्या है
यहाँ सलाम भी बंटे हैं
रंगों में लाल सलाम, नीला सलाम
कुछ लोग कतई पसंद नहीं करते
नमस्कार, सादर प्रणाम
किसी का खून जल जाता है
सुनते ही जय श्रीराम
जहाँ जरूरत पड़े तो
कहेंगे वालेकुम अस सलाम
कितने दोगले हैं हम लोग...
अपना उल्लू सीधा करने हफ्ते-महीनेभर में ही
हर अभिवादन का उपयोग कर लेते हैं
कपड़ों के रंगों से भी तय होता है
हमारी अलग-अलग पहचान
भले कच्छा एक हो
मगर पहनावे का पूरा दुकान
खान-पान में भी रंग अहम है
खान-दान में भी रंग अहम है
संस्कारों में भी अहमियत है रंगों की
रंगीन दुनिया में रंगों की दुकान
रंगों के बिना यहाँ कोई नहीं इंसान
- कंचन ज्वाला कुंदन
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