ये आदत बड़ा ख़राब हे बात करथव डरे के
बड़े आदमी जिगर रखथे कुछु काहिं करे के
मैं समझत हंव मितान तुंहर मन के बात ल
तुंहर भीतर डर समाये हे अंगरा म जरे के
अरे मैं तो कहिथव कि जो होही देखे जाही
कभू हिम्मत करव हाथ म आगी ल धरे के
तुंहला लड़ना हे अऊ जीतना हे जबरदस्त
बुजदिल आदमी बात करथें झट ले मरे के
तूं गरीबी से बाहर निकले के रस्ता तलासव
बढ़िया कुछु उदिम करव अपन पीरा हरे के
- कंचन ज्वाला कुंदन
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