गुरुवार, 12 सितंबर 2024

जब काजू चाहिए तो बादाम तो छोड़ो

तुम्हें अनार पसंद है तो आम तो छोड़ो 

जब काजू चाहिए तो बादाम तो छोड़ो 


कुछ पाने के लिए कुछ खोने का दस्तूर है

अगर नई सुबह चाहिए तो शाम तो छोड़ो 


सक्सेस किसी फुटपाथ पर नहीं मिलता

ये ऐरे-गैरे आलतू-फालतू काम तो छोड़ो 


बिस्तर पर पड़े हो, घोड़ा बेचकर सोये हो 

अरे यार, अजगर जैसा आराम तो छोड़ो 


सफलता में सबसे अहम संगत ही तो है 

और कितना छलकाओगे जाम तो छोड़ो 


उसकी यादों की भंवर से बाहर भी निकलो 

बार-बार जिक्र क्यों उसका नाम तो छोड़ो 


जो हुआ भूलो उसे, आजाद करो दिल से 

वो सज़ा के काबिल नहीं इनाम तो छोड़ो 


- कंचन ज्वाला कुंदन 

शनिवार, 7 सितंबर 2024

जिस्मानी यादें क्या याद नहीं होतीं

ढह गया मोहब्बत का मकान 

यादों का बस मलबा रह गया है 

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जिस्मानी मोहब्बत को जारी रखने 

हमारे दरमियाँ आड़े आया पैसा ही 

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उसे मतलब था मेरे पैसों से 

मुझे मतलब था बस जिस्म से 

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जिस्मानी यादें क्या याद नहीं होतीं 

कहती हो तुम्हें तो प्यार ही नहीं था 

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उद्योग धंधे टाइप का बाबागिरी बिजनेस है


आज मेरी फिर से एक नई कविता पेश है

उद्योग धंधे टाइप का बाबागिरी बिजनेस है


बाहर से संन्यासी और अंदर से संसारी ही 

आश्रम के भीतर भी तो राग द्वेष क्लेश है


ग्राउंड फ्लोर पे प्रभुजी और टॉप पे टपाटप

हवस के भूखे भेड़ियों का गजब साधु भेष है 


बार-बार मिलेगा बेल, बलात्कारी बाबा को 

क्या बताऊँ कितना कि महान मेरा देश है 


ब्लैक-वाइट के खेल में चट्टू बने हैं नेताजी 

कल खोलूँगा पोल-पट्टी जो रह गया अवशेष है 

शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

अल्फ़ा है अल्फ़ाज में : क्योंकि तुम देखना चाहते हो हम सबको धीरे-धीरे मरते हुए...

सदियों से, बरसों से 

और आज तक 

बहस जारी है 

कौन कर रहे हैं बहस 

जिनके पेट भर चुके हैं 

खाना हजम करने 

बौद्धिक जुगाली चल रहा है 

सदियों से, बरसों से 

और आज तक 


कभी राम पर बहस 

कभी रहीम पर बहस 

कभी ईसा पर बहस 

कभी मूसा पर बहस 

कभी पूछते हैं 

पत्थरों पर प्राण प्रतिष्ठा कैसे होता है 

कभी कहते हैं 

सांप-बिच्छुओं में भगवान क्यों हैं 


तुम्हारी बात सच भी होगा 

कड़वा भी होगा 

यथार्थ भी होगा 

मगर उससे फर्क क्या पड़ा 

तुम जुगाली किये 

और जाकर सो गए 


फर्क तो तब पड़ता 

जब मैं और तुम 

हाथ मिलाकर 

कंधे मिलाकर 

रोटी बांटते 

विचार बांटते

जिन्हें इनकी जरूरत है 

उस पर बहस करते 

शायद कुछ ठोस नतीजा 

जरूर निकल आता  


फर्क तो तब पड़ता 

जिन बातों को तुम चुनौती देते हो 

उसे स्वीकार करते पूरी तरह 

नास्तिक होने का प्रमाण 

दे आये हो मंच पर 

घर में देवी-देवताओं की 

प्रतिमाओं पर 

फूल की मालाएं सजी हैं 

फिर तुझमें और मुझमें 

फर्क क्या रहा


तुम सच्चाई जानकार भी 

उसे मानते हो अधूरा ही 

मैं बनावटी आस्था में 

उसे पूरा मानकर 

जानने की कोशिश कर रहा हूँ 

उसे और भी करीब से 


मगर इससे भी फर्क क्या 

वो तुम्हारे घर में है पत्थर में है 

सांप में है बिच्छू में है 

या मेरे दिमाग में है 

नहीं भी हो तो ना रहे 

हों भी तो कहीं भी हो 

इन सबके बावजूद भी 

सब वहम ही तो है 

सब भ्रम ही तो है 


हमने इस धरातल पर किया क्या 

जहर ही तो फैलाये 

जो नहीं है उस पर बहस करते रहे 

जो है उन बातों का ध्यान नहीं रहा 

सच-सच बताओ तुम 

कितने रोटी बांटे हो 

कौन है जो तेरे विचार पर 

चल रहा हो अक्षरशः 


ना तुमने रोटी बांटा 

ना तुम विचार रोप पाए 

मुझे लगता है 

सिर्फ जहर घोलने आये हो 

पानी में, शहद में, 

मौसम में, समाज में 

घोलकर चले जाओगे तुम 

नए अंकुर को, नए पौध को 

नए नस्ल को, नई पीढ़ी को 

पीना पड़ेगा जहर घूंट-घूंटकर 


मैं ये बात भी जानता हूँ 

तुम भी बड़े कमीने निकलोगे 

ठीक से घोल देते जहर तो 

पीकर मर ही जाते हम सब 

तुम मीठा जहर घोलोगे 

क्योंकि तुम देखना चाहते हो 

हम सबको धीरे-धीरे मरते हुए...


- कंचन ज्वाला कुंदन


दो टूक बोले हमारी जी-हुजूरी करो अपने पद में रहो : अल्फ़ा है अल्फ़ाज में

उसने मुझे औकात बताकर कहा अपने कद में रहो 

तुम यहाँ तक पहुंचे इतना ही काफी अपने हद में रहो 


तुम्हें जो चाहिए वो मिलेगा मगर किसी बगावत से नहीं 

तुम हमारे गुट में शामिल हो जाओ अपने जद में रहो 


उनका तो बढ़िया ही प्रस्ताव था मेरे लिए साफ़-साफ़ 

दो टूक बोले हमारी जी-हुजूरी करो अपने पद में रहो  


मैं ऑफ़र ठुकराकर चला गया एक अफ़सोस के साथ 

मैंने कहा मुबारक हो साहब आप अपने गुम्बद में रहो 


मेरे लिए बेहतर है हुजूर एक कमरे वाला मकान ही 

जेब खाली हो या कंगाली हो मगर अपने मद में रहो   


- कंचन ज्वाला कुंदन 

कफ़न बेचने लगेंगे ये स्वयंभू कलमकार : अल्फ़ा है अल्फ़ाज में

फिर से निकलवा रहे हैं संकलन इस बार

व्हाट्सएप पर मुनादी होता है लगातार


5 रचनाएं भेजिए खूबसूरत फोटो साथ में

छपवा लो किताबें सहयोग राशि दो हजार


खैर, इसमें किसी को कुछ आपत्ति भी क्या

साहित्य सेवा हो रहा है बड़ा ही शानदार


छपवाने के लिए हो रहीं रचनाएं उत्पादित

हिंदी की दुर्गति में हम सब हैं जिम्मेदार 

  

सामूहिक दुष्कर्म में मेरा भी नाम लिख लो

मैंने मौन होकर देखा है ये होते बलात्कार


हिंदी किताबें बिक रहीं हैं किलो के भाव में

कई संस्थाएं चला रहीं हैं साहित्यिक बाजार


छूटना नहीं चाहिए एक आदमी भी जमीं पर

जहाँ भी अवसर हो सिर्फ खोजो व्यापार


आदमी के पैदा होने से लेकर मरघट तक

अरे करना है इनको तो सिर्फ कारोबार


जंग छिड़ जाये लोग मरने लगें धड़ाधड़ तो

कफ़न बेचने लगेंगे ये स्वयंभू कलमकार


प्यार-मोहब्बत पर अटकी है हमारी औकात

हमारे ही हाथों हिंदी हो रही है तार-तार


साहित्य मेला में देखना कभी हिंदी का हस्र

फिर कहना कि तुम्हारी लेखनी है तलवार 


- कंचन ज्वाला कुंदन 

भोगो और भागो का लागू करो पश्चिमी सभ्यता : अल्फ़ा है अल्फ़ाज में

बहुत दीप जलाया हमने फिर भी मन में काला क्यों 

कुछ मिटा नहीं अंधेरा भी मिला नहीं उजाला क्यों 


या तो हमारी आस्था झूठी या तो ये दिवाली धोखा 

दीप पर्व में उजाले का हमने मुगालता पाला क्यों 


हमने ही बनाया इसे दिवाली मतलब खरीददारी 

समझ नहीं आता ये दिवाली बाजार वाला क्यों 


कोई तो कुचक्र है ये समझ लो सचेत हो जाओ 

इस सिस्टम ने सांचे में हमें ऐसा ही ढाला क्यों 


तुम्हें यहाँ तक लाने में मीडिया का योगदान है 

तो टीवी और अख़बार पर लगाते नहीं ताला क्यों 


बाजारवाद हावी है हम इंसानों के हर उत्सव में 

हमने अपने आस्था का जनाजा ये निकाला क्यों


अगर बढ़ना ही है अंधाधुंध तो बढ़ो बेतहाशा 

पूंजीवादी व्यवस्था में मनका मोती माला क्यों


भोगो और भागो का लागू करो पश्चिमी सभ्यता 

इतना आगे बढ़कर भी मन में मकड़ जाला क्यों 


- कंचन ज्वाला कुंदन 


चार इंच की चांदनी : मेरे हाथों बेचारा तकिया मसल जाता है

और भी कई काम भले अधूरा करता हूँ

याद करना मेरा काम ये पूरा करता हूँ 


अब भी कोई शिकायत तो नहीं है मैडम

मैं बंद करके आँखें तुम्हें घूरा करता हूँ 


मेरे हाथों बेचारा तकिया मसल जाता है 

ये पता नहीं मैं अच्छा या बुरा करता हूँ   


- कंचन ज्वाला कुंदन 




अरे देख लिया जाएगा जो भी होगा साला : अल्फ़ा है अल्फ़ाज में

पिछवाड़े में हुए एक फुंसी ने पूरा सता डाला

दर्द सहने की मेरी औकात क्या है बता डाला


पहले लगा कि अब कभी प्यार नहीं कर पाउँगा

बस एक बार की मोहब्बत ने पूरा हिला डाला  


उसके बाद भी मैं फिर से दिल लगाने चला हूँ

जबकि उस पुराने ही प्यार ने पूरा बजा डाला   


अब जाने कहाँ से उठ रही है फिर से आवाज

इस बार के प्यार में लाईफ होगा झिंगालाला 

  

फिर से मिला है मुझे एक नए प्यार का खत

जब मैंने वे पुराने सभी खतों को जला डाला

  

मैंने ये सोचा कि इतना सोचा भी क्या जाये

फिर एक ही झटके में मैंने दिल लगा डाला  


फिर से ये प्यार करके देख लें क्या कुंदन 

अरे देख लिया जाएगा जो भी होगा साला


- कंचन ज्वाला कुंदन 






जिस्मानी मुद्दा भी तो सामाजिक अधिकार है

इस कंक्रीट के जंगल में भेड़ियों की सरकार है 

मेमने मिलकर कह रहे सामूहिक बलात्कार है 


अब ऐसा लगता है यहाँ सरकारी कोशिशों से 

भेड़ियों की भूख मिटाने योजना की दरकार है


कोई तो होगा इसका कारगर समाधान बताओ 

क्या ऐसा ही होता रहे ये सब तुम्हें स्वीकार है 


लगता है सेक्स वर्करों को लाइसेंस देना होगा 

मेमनों का कैंडल मार्च तो बेकार का बेकार है 


भेड़ियों को योजना के तहत सेक्स देना होगा

जिस्मानी मुद्दा भी तो सामाजिक अधिकार है 


हम दोपाया पशुओं को चारा भी तो चाहिए 

चकलाघर व चारागाह दोनों अहम किरदार है


गुटुरगूं करते कबूतरों को पत्थर मारना बंद करो

यौन स्वतंत्रता पे पाबंदियां बिल्कुलअत्याचार है 


फिर कोई भूख से भेड़िया न बन जाये रोक लो 

मैं सोचता हूँ ये कैसे रुकेगा मेरा यही विचार है  


- कंचन ज्वाला कुंदन 

ये लोकतंत्र है, लूटतंत्र है या भेड़तंत्र

 दो साल पहले

पर्यावरण मंडल ने कहा-

अलाव न जलाएं 

इससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है 

निगम अधिकारियों ने

अलाव जलाने वालों पर 

जमकर कार्रवाई की

अलाव जलाने वालों से

जुर्माना भी वसूला गया

अलाव नहीं जलाने देने पर

भेड़ों का एक धड़ा 

कंबल में दुबक गया

किसी ने चूं भी नहीं किया

क्योंकि नाम के निजी 

काम के सरकारी अख़बारों ने बताया  

अलाव जलाने से प्रदूषण होता है...?

और फैक्ट्रियों के धुएं से 

ऑक्सीजन की सफाई होती है...?

पब्लिक ने मान भी लिया...

भेड़ों के एक धड़ा ने तो

अलाव से हाथ तक नहीं सेंका 

दो साल बाद मुख्यमंत्री ने कहा- 

शीतलहर चल रही है 

जगह-जगह अलाव जलाये जाएँ 

निगम अधिकारियों ने

शहर भर में

अलाव जलाने की व्यवस्था कर दी

अब वही पब्लिक, हाँ, वही पब्लिक

अलाव से प्रदूषण बताने वाले अख़बारों में  

अलाव जागरुकता की खबरें पढ़ते हुए 

अब जगह-जगह पर  

अलाव जलाकर, झुंड में बैठकर

दांत निपोर रही है 

कभी-कभी सवाल भी पूछ लिया करो

पहले वैसा क्यों... 

अब ऐसा क्यों...

ये लोकतंत्र है, लूटतंत्र है या भेड़तंत्र


( आप सभी को नववर्ष की भेड़िया-धसान बधाई...) 

उम्मीद है नए साल में जागने का संकल्प लेंगे...


- कंचन ज्वाला कुंदन

नया साल मुबारक हो सपनों का संसार मिले

नया साल मुबारक हो सपनों का संसार मिले

नए साल में आपको भी ढेर सारा प्यार मिले


सभी सोशल प्लेटफ़ॉर्म में बेइंतहा मैसेज आये

मैसेज डिलीट करने की शक्ति अपरम्पार मिले


नए साल की बधाई से भर जाये मोबाइल पूरा

दुआ है आपको भी ई-कचरा का अम्बार मिले

  

डिजिटल युग में डिजिटल हो गया सब कुछ

बधाई भी डिजिटल व डिजिटल उपहार मिले  


फेसबुक और व्हाट्सएप के सभी निकम्मों को

चैट करने लड़कियां भी ऑनलाइन तैयार मिले


मेरी दिली तमन्ना है तुम डूबे रहो मोबाइल में ही

फेसबुक पर फिर से कोई दोस्त बेरोजगार मिले  


सबने मुझे बधाई दी सबके हक़ में दुआ क़ुबूल

चौबीस की चुनाव में भी मोदी की सरकार मिले


- कंचन ज्वाला कुंदन

धोखे खाकर पछताओ मत तुम भी धोखेबाज बनो

धोखे खाकर पछताओ मत तुम भी धोखेबाज बनो

जब दगा दिया तुम्हें किसी ने तुम भी दगाबाज बनो


तुम झूठ बोलो सरासर और छुरा घोंप दो पीठ पीछे

दूध पीकर जहर उगलो चलो तुम भी नागराज बनो


ये पुनीत काम है मानो अब कल पर यूँ न टालो तुम

तुमसे यही गुजारिश है कि जो बनना है आज बनो


- कंचन ज्वाला कुंदन


 

यादों की बंदिशें तोड़ यार

जो हुआ सो हुआ छोड़ यार 

नए रस्ते से नाता जोड़ यार


वो भूल गई तू भी भूल जा 

यादों की बंदिशें तोड़ यार


देख तू ही नहीं है हरजाई

ये सोच का रूख मोड़ यार


महबूबा पर भी बेवफ़ाई का 

कभी तो ठीकरा फोड़ यार 


- कंचन ज्वाला कुंदन

आकाश खो चुका हूँ मुट्ठीभर पाने के लिए

आकाश खो चुका हूँ मुट्ठीभर पाने के लिए
आज भी उलझा हूँ कुछ सुलझाने के लिए 

सुनाना चाहता हूँ तुम्हें कई दिलचस्प बातें
मगर कोई खुशख़बरी नहीं सुनाने के लिए 

रास्ता कांटा भरा और पैरों में जूते भी नहीं
इसके बावजूद तैयार हूँ उधर जाने के लिए  

मेरा वजूद ही मिल जाये लड़ाई में काफी है
मैं खुद को मिटा दूंगा खुद को पाने के लिए 

तुम्हें बता देना चाहता हूँ बात बहुत ठीक से
मैं कतई कीड़ा नहीं हूँ बिलबिलाने के लिए

- कंचन ज्वाला कुंदन

 

चार इंच की चांदनी : मैं तो अभी भी संक्रमण से उबरा नहीं हूँ

इस बार मन था कि तेरे साथ होली खेलूं 

कोरोना का कहर है क्या करूँ 

तेरे संग होली मनाऊं कि नहीं 

तुम्हें गुलाल लगाऊं कि नहीं 

तू खुद ही कोरोना से कम नहीं है 

किसी कोरोना वायरस से कम नहीं थी वो 

उसके असली नाम का पता तो अब चला है 

किसी रास्ते से गुजर रहा था मैं 

और आ गया उसके चपेट में 

क्या मैं ही हुआ था संक्रमण का शिकार

क्या मुझे ही हुआ था उससे प्यार 

एक दिन उसे उसका ढक्कन मिल गया 

और वो खतरनाक वायरस 

अब कैद हो चुकी है 

किसी के बांहों में

लगता है अभी वो बर्तन मांज रही होगी 

या थपकियाँ देकर बच्चे को सुला रही होगी

और मैं...?

मैं तो अभी भी संक्रमण से उबरा नहीं हूँ


- कंचन ज्वाला कुंदन  


कुंदन के कांटे : गोबर पॉलिटिक्स और गोबर माफिया

भाजपा के गाय का गोबर अब हाईजैक हो चुका है...गोबर पॉलिटिक्स और गोबर माफिया

अव्वल बात तो ये है कि पॉलिटिक्स ही गोबर है. दूसरी बात ये है कि अब गोबर पर पॉलिटिक्स शुरू हो गया है. भूपेश सरकार ने गोबर खरीदने का ऐलान कर दिया है. गोबर खरीदने के ऐलान के तत्काल बाद भाजपा के पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कहा कि गोबर को अब राजकीय चिन्ह घोषित कर देना चाहिए. इस पर करारा पलटवार करते हुए कांग्रेस ने भाजपा के लिए बड़ा ऑफ़र पेश कर दिया. कांग्रेस ने कहा कि आप अपने दिमाग में भरे हुए गोबर बेचकर आमदनी बढ़ा सकते हैं. कांग्रेस का तर्क है कि अजय चंद्राकर ने गोबर धन का अपमान किया है. ये बात तो ठीक है अजय चंद्राकर ने गोबर का अपमान किया है. कांग्रेस ने अपने बयान में उससे भी बड़ा अपमान किया है. कांग्रेस ने कहा कि दिमाग में भरे हुए गोबर बेचना है. इसका साफ़-साफ़ मतलब ये है कि कांग्रेस ने दिमाग में भरे बौद्धिक संपदा का घोर अपमान किया है. क्या आप तुच्छ बयानबाजी के लिए बौद्धिक संपदा की तुलना गाय की गोबर से करेंगे. कांग्रेस का ये मानना है कि भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं के दिमाग में गोबर भरा हुआ है. मतलब कांग्रेस का ये भी मानना है कि उनके अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के दिमाग में गुड़ भरा हुआ है. ये तो रही गोबर पॉलिटिक्स की बात. अब जरा गोबर माफिया के विषय पर बात करते हैं. आपने रेत माफिया, मीडिया माफिया, खनन माफिया, भू-माफिया ऐसे बहुत से शब्द सुने होंगे. अब गोबर माफिया शब्द मेरे नाम से पेटेंट किया जाए. भूपेश सरकार के गोधन न्याय योजना के कुछ महीनों बाद ही बड़े-बड़े गोबर माफिया पैदा हो जाएंगे. किसी भी सरकार की ऐसी कोई महत्वाकांक्षी योजना नहीं जिसमें माफियाओं का बोलबाला न हो. सच तो ये है कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ गाय दूध कम वोट ज्यादा देती है. भारत एकमात्र देश है जहाँ आप गौमूत्र से लाला रामदेव बन सकते हैं. अब गाय का गोबर भी हाईजैक हो चुका है. गाय भाजपा का बड़ा मुद्दा है. अब कांग्रेस का बड़ा मुद्दा गोबर है. गाय का गोबर भी निश्चित ही राजनीति में नया इतिहास रचेगा. भाजपा ने गौगुंडों को जन्म दिया. अब गोबर गुंडों का भी एक नया जमात, एक नया धड़ा खड़ा होगा. कांग्रेस के गोबर मुद्दे पर भाजपा के कार्यकर्त्ता और नेता विरोध में प्रदर्शन करने नए-नए हथकंडे अपनाएंगे. हो सकता है भाजपा कार्यकर्त्ता चेहरे पर गोबर पोतकर प्रदर्शन करें. कांग्रेस के गोबर मुद्दे पर किस-किस तरह का विरोध प्रदर्शन हो सकता है ये तो आने वाला समय ही बताएगा. किसी भी मुद्दे पर विरोध के लिए प्रयोगधर्मिता का दौर है. आपका विरोध प्रदर्शन जितना अनोखा होगा मीडिया में उसके कवरेज की गुंजाईश उतना ही बढ़ जाएगा. पेट्रोल-डीजल के दाम महंगे हो गए तो रस्सी से कार खींचो. सारा खेल अखबारों में छपास और टीवी चैनलों में दिखास का है. इन विरोध प्रदर्शनों में आम जनता के सरोकार का कुछ भी नहीं है. आज बस इतना ही... कल फिर मिलेंगे... अलविदा...

आपका अपना ही- 


कंचन ज्वाला कुंदन 

वो कहीं न कहीं से, किसी भी तरह, ठगना चाहता है आपको

जैसे ही कोई पहले से कहे 

मैं आपकी मदद कर सकता हूँ 

उसे देर तक घूरो 

देखो उस आदमी को नए सिरे से 

यक़ीनन गलत कह रहा है वो 

वो आपकी बिल्कुल मदद नहीं करेगा 

वो कहीं न कहीं से 

किसी भी तरह 

ठगना चाहता है आपको 


- कंचन ज्वाला कुंदन

हम दोपाया पशु थे, दोपाया पशु हैं, और दोपाया पशु ही रहेंगे...

पहले कबीले पर रहते थे 

हम जंगलों में 

नुकीले हथियार होते थे 

हमारे पास 

जानवरों से रोज लड़ते थे 

जानवरों की तरह 

मारकर खा जाते थे 

हम जानवरों को 

कभी हम ही बन जाते थे 

जानवरों के निवाले


झूम खेती करते थे 

खानाबदोश थे

घुमंतु थे 

संघर्ष किया हमने 

सदियों से 

खुद को स्थापित करते रहे 

इस धरती पर 

अब अन्य ग्रहों में भी 

जाने की तैयारी है हमारी


विलुप्त हो गए बड़े-बड़े डायनोसौर 

देखो मगर हम आज भी जिंदा हैं 

चाहे पहले से बदतर हो 

या पहले से बेहतर

मगर स्थापित किया है हमने 

खुद को हर हाल में  


एक वक्त आया 

कि धीरे-धीरे जंगल घटता गया 

हमने ही काटा 

जंगलों को अंधाधुंध

और हम भी कट गए 

जंगल से कोसों दूर 

कंक्रीट का जंगल 

खड़ा कर लिया हमने


हम दोपाया पशु 

बेतहाशा बढ़ते गए 

मशरूम की तरह 

उगते गए इस धरती पर 

आधी धरती को 

हमने ही ढँक लिया

फिर लड़ाई शुरू हुआ 

हमारी हमसे ही 

एक-दूसरे से, 

तीसरे से चौथे से 

कई भागों में बंटे हम 

पात में, डाल में कटे हम 

हम सबने थाम लिया 

अलग-अलग झंडा 

हांकने वाला हांकता गया 

लेकर डंडा

ये जाति-धर्म, 

पंथ-सप्रदाय 

मत-मतान्तर

ये वाद-प्रतिवाद 

आखिर क्या है...? 

आधुनिक कबीला ही तो है 

फिर रहने लगे हैं हम 

अलग-अलग कबीलों में  

शायद यही चक्र है 

हम जंगली से सभ्य हुए 

फिर असभ्य होते गए 

और अब हम फिर से 

हमारे ही बनाये हुए 

इस कंक्रीट के जंगल में 

हम सब, हाँ हम सब 

जंगली होने के मुहाने पर खड़े हैं 

क्रूर सच तो यही है...

हम दोपाया पशु थे 

दोपाया पशु हैं 

और दोपाया पशु ही रहेंगे 


- कंचन ज्वाला कुंदन

रंगों के बिना यहाँ कोई नहीं इंसान

रंगों की पसंद से शुरू होता है 

आदमी-आदमी में भेद 

किसी को केसरिया पसंद है 

किसी को सफ़ेद 

किसी को हरा पसंद है 

किसी को पीला

किसी को काला पसंद है 

किसी को नीला


यहाँ अभिवादन से तय होता है 

हमारी विचारधारा क्या है 

यहाँ सलाम भी बंटे हैं 

रंगों में लाल सलाम, नीला सलाम 

कुछ लोग कतई पसंद नहीं करते 

नमस्कार, सादर प्रणाम 


किसी का खून जल जाता है 

सुनते ही जय श्रीराम

जहाँ जरूरत पड़े तो 

कहेंगे वालेकुम अस सलाम


कितने दोगले हैं हम लोग...

अपना उल्लू सीधा करने हफ्ते-महीनेभर में ही  

हर अभिवादन का उपयोग कर लेते हैं


कपड़ों के रंगों से भी तय होता है 

हमारी अलग-अलग पहचान 

भले कच्छा एक हो 

मगर पहनावे का पूरा दुकान 

खान-पान में भी रंग अहम है 

खान-दान में भी रंग अहम है 

संस्कारों में भी अहमियत है रंगों की

रंगीन दुनिया में रंगों की दुकान 

रंगों के बिना यहाँ कोई नहीं इंसान


- कंचन ज्वाला कुंदन

कुंदन के कांटे

 कुंदन के कांटे


कल अख़बार पटा होगा कहानियों से. सोच रहा हूँ एक छोटी-सी कहानी आज मैं भी कह दूँ. ऐसा मत सोचिए कि मनोहर कहानी सुनाऊंगा. कहानी सुनाने से पहले कहानी पर कुछ मन की बात हो जाये. यूँ तो कहानी दो ही प्रकार की होती है. एक सच्ची कहानी. दूसरी झूठी कहानी. उसके बाद 'कहानी' कई प्रकार की होती है. एक कहानी ऐसी होती है. जैसी वो होती है वैसी होती नहीं. मतलब कहानी ही कुछ और होती है. कई दफ़ा तो आपके मुंह से भी निकला होगा- अच्छा तो कहानी कुछ और है...एक 'कहानी' प्याज टाइप की होती है. परत-दर-परत कई कड़ियों में पूरी होती है. मैं मन की बात की 69वीं कड़ी की बात बिल्कुल नहीं कर रहा हूँ. अदरक-लहसुन टाइप की कहानी तो आपने अपने मुंहफट दोस्तों से बहुत सुनी होगी. एक कहानी चाय टाइप की होती है. एकदम ताजा-ताजा, गरम-गरम. चाय टाइप की कहानी ठंडी हो जाने के बाद मजा नहीं देती. एक कहानी होती है जीएसटी टाइप की. ऐसे कहानी को समझने के लिए पीएचडी की जरूरत होती है. जीएसटी टाइप की कहानी आम आदमी के सर के एक बांस ऊपर चली जाती है. एक कहानी नोटबंदी टाइप की भी होती है. शुरुआत में लगता है. कहानी धांसू है. बाद में कहानी फुस्स साबित होता है. एक कहानी कृषि बिल टाइप की होती है. जिसमें कृषि तो होता ही होता है. साथ में 'बिल' भी होता है. बिल चींटी का है या चूहे का ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा. खैर...

हाँ तो मैं एक कहानी सुनाने की बात कर रहा था. मेरी कहानी किस टाइप की है. ये सुनने के बाद आप ही तय करेंगे. तो शुरू करते हैं कहानी गिद्ध मीडिया की. गोदी मीडिया की. हालाँकि मुझ जैसे टूटपूंजिहा पत्रकार की मीडिया पर कहानी सुनाने की कोई हैसियत नहीं है. कोई औकात नहीं है. कलमघसीटू होने के नाते थोड़ा-बहुत कलम घिसने भर की कोशिश ही कर पाता हूँ. इस समय पूरा भारत पूछ रहा है कि दीपिका से कितने घंटे पूछताछ हुई...? सारा अपना 'सारा' राज कब खोलेगी...? सुशांत पर केस शांत होने का नाम ले रहा है. केस शांत होना भी नहीं चाहिए. इस केस का एक केश भी बचना नहीं चाहिए. केस बुलेट की तरह अपने निशाने पर बढ़ता तब बात ठीक है. ये केस तो धुएं की तरह चौतरफा फैलता जा रहा है. 

इधर एक तरफ किसान सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं मगर पूरा देश जानना चाहता है कि कितने तारे-सितारे ड्रग्स लेते हैं. कितने सितारे गुड़ाखू घिसते हैं और कितने सितारे तम्बाखू खाते हैं...? देश को जानने का हक़ है इस बात का. ठीक इसी समय एक कच्छे का विज्ञापन आ जाता है. मुझे कच्छे के विज्ञापन से याद आता है कि मैं छत से अपना सुखाया हुआ कच्छा निकाल लाना ही भूल गया हूँ. मैं छत से कच्छा लाने के बाद हाथ में टीवी का रिमोट लेते ही चैनल बदल देता हूँ. अब मैंने जो चैनल लगाया है उसमें पायल घोष के घर के बाहर से एक्सक्लूसिव फुटेज चल रहा होता है. मैं तीसरा न्यूज़ चैनल बदलता हूँ. उसमें भी वही घिसी-पिटी बात. गैंग्स ऑफ़ ड्रग्सपुर का कल होगा बड़ा खुलासा. सिर्फ हमारे चैनल पर. इतना सुनते ही मैं इस चैनल पर थोड़ी देर तक कूल्हे टिकाये रखता हूँ. ज्यादा होने पर बर्दाश्त नहीं होता और चैनल फिर बदल देता हूँ. ओह मगर इसमें भी वही नैन मटक्के. फाइल फुटेज पर पूरा खेल. सभी चैनलों में इस राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर बहस जारी है. कोई कह रहे हैं अभी तो झांकी है, पिक्चर अभी बाकी है. पिक्चर ख़त्म कब होगा यार कोई ये भी तो बता दो. सुबह-सुबह शौच जाने के टाइम भी सनसनीखेज खुलासों से शौच भी दूभर हो गया है. आज कहानी की कड़ी को यहीं पर समाप्त करते हैं. अगली कड़ी में आप किसी अन्य विषय पर कहानी सुनना चाहते हैं. या शौच भी दूभर हो गया है...यहीं से कहानी आगे बढ़ाना है. मित्रों  ये कमेंट्स करके बताना है...

-कंचन ज्वाला कुंदन 

जाओ चाहे दिल्ली मुंबई आगरा, नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा

 ओ... ओ.. ओ.. ओ...


जाओ चाहे दिल्ली मुंबई आगरा

ओ जाओ चाहे दिल्ली मुंबई आगरा

ओ जाओ चाहे दिल्ली मुंबई आगरा

नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा 


जाओ चाहे दिल्ली मुंबई आगरा

नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा 

चाहे करा लो अब मुकाबला

नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा 

जाओ चाहे दिल्ली मुंबई आगरा

नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा...


मेरे बाजरे में पोषण छुपा है

मेरे बाजरे में फाइबर्स चढ़ा है

मेरे बाजरे में एनर्जी मिलता है 

मेरे बाजरे से कोलेस्ट्रॉल घटता है  


बीकानेर उदयपुर जाओ

कोलापुर सोलापुर जाओ

जाओ बरेली या दादरा

नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा 

जाओ चाहे दिल्ली मुंबई आगरा

नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा 


चेन्नई या कोलकाता जाओ

देहरादून मसूरी जाओ

जाओ केरला या आंध्रा

नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा


जाओ चाहे दिल्ली मुंबई आगरा

नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा 

चाहे करा लो अब मुकाबला

नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा 

जाओ चाहे दिल्ली मुंबई आगरा

नहीं मिलेगा ऐसा बाजरा 

गुरुवार, 5 सितंबर 2024

सच तो बहुत नंगा है, नंगा होकर खड़ा हो जाऊं क्या

सच तो बहुत नंगा है, नंगा होकर खड़ा हो जाऊं क्या 

सदियों पुराने कुछ कड़वा सच पर मैं भी आऊं क्या 


इमोशनल डोमेन सबसे बड़ा भारतीय खिलौना है 

कहो तो कोई झुनझुना ठीक से मैं भी बजाऊं क्या 


आंसू सूख जाएंगे ढंग से कोई फिल्म बन जाए तो  

छुआछूत से क्या हुआ सदियों पहले बताऊँ क्या


गोधरा फाइल्स, पुलवामा फाइल्स, फाइलों की ढेर है

सैकड़ों फाइल्स हैं दर्द की ये रोज-रोज सुनाऊं क्या


'फाइल्स' बनाकर जख्म कुरेदना ठीक है या नहीं 

मैं भी पुराना जख्म कुरेद कर तुम्हें दिखाऊं क्या  


तिजोरी भर जाए फिल्म बनने के पहले या बाद में 

कि फ्लैशबैक में होता क्या है कुछ समझाऊं क्या 


कोई भी पुराना फाइल खुले खून और आंसू ही रिसेगा

सिर्फ नफरत को धुएं की तरह चारों तरफ फैलाऊं क्या


- कंचन ज्वाला कुंदन

उसे भुलाने निकला हूँ नए प्रेम पथ पर

किस मोड़ पर क्या होगा क्या मालूम 

किस मोड़ पर क्या होगा क्या मालूम 


चलो देखते हैं वहां तक भी चलकर 

उस मोड़ पर नया होगा क्या मालूम 


इस रास्ते कुछ पुरस्कार की तमन्ना है 

इनाम तय या सजा होगा क्या मालूम 


उसे भुलाने निकला हूँ नए प्रेम पथ पर 

इधर बेवफ़ा कि वफ़ा होगा क्या मालूम 

- कंचन ज्वाला कुंदन 


यही परमार्थ है

परमार्थ में पर तो है ही 

पर के बाद अर्थ भी है 

मतलब पर के अर्थ से 

हमारा अर्थ सिद्ध हो 

यही परमार्थ है 

आज के संदर्भ में 

यही परमार्थ है 

शुभचिंतक का नया अर्थ

कुछ लोग 

हमारा शुभ होता देख 

चिंतिंत हो उठते हैं 

आखिर उनके साथ ही 

शुभ हो रहा है 

हमारे साथ क्यों नहीं 

आज के संदर्भ में 

यही लोग शुभचिंतक हैं 




आओ एक आख़िरी रात कहना चाहता हूँ

दबाकर रखा हूँ जज्बात कहना चाहता हूँ

आओ एक आख़िरी बात कहना चाहता हूँ 


मुकम्मल मिले नहीं मुकम्मल बिछड़ेंगे सही 

आओ एक आख़िरी रात कहना चाहता हूँ 


तुम्हारे शौहर को पता भी न चले, हम मिलें 

कुछ ऐसा करो करामात कहना चाहता हूँ 


मुकम्मल मिलेंगे किसी मोड़ पे तूने कहा था

लाओ फिर वो हसीं रात कहना चाहता हूँ 


वैसे हमारे मिलन का निष्कर्ष भी कुछ नहीं 

'ढाक' के वही 'तीन पात' कहना चाहता हूँ 


- कंचन ज्वाला कुंदन


 

तुम्हें सेंटीमीटर पसंद या किलोमीटर बता दो

तुम एसी कूल हो कि रूम हीटर बता दो 

तुम भी तो नहीं निकलोगी चीटर बता दो


तुम बार-बार कहती हो बहुत प्यार चाहिए 

आखिर प्यार चाहिए कितने लीटर बता दो 


चलो तौल कर दे दूंगा, नाप-नाप कर दे दूंगा 

मुझे प्यार को मापने का पैरामीटर बता दो


जितना प्यार करता हूँ उतना तो करता हूँ न

तुम्हें सेंटीमीटर पसंद या किलोमीटर बता दो


आजकल प्यार पर कार जैसी कई सवारियां 

अब तुम्हारा प्यार है कितने सीटर बता दो 

- कंचन ज्वाला कुंदन

ब्लैक मनी का व्हाइट मैजिक है मीडिया हाउस

सच कह दो तो पॉलिटिकल पंगा है कब लिखोगे

सफ़ेदपोश नेता ही बिल्ला-रंगा है कब लिखोगे 


कैसे हो पत्रकार भैया, और सब कुछ बढ़िया न...

पत्रकारिता बड़ा ही गोरख धंधा है कब लिखोगे 


चौक-चौराहों की सारी गंदगी लिख आए अख़बार में 

तेरे ही दफ्तर का हाल बहुत गंदा है कब लिखोगे


ब्लैक मनी का व्हाइट मैजिक है मीडिया हाउस  

खेलों के खेल में भी भारी हथकंडा है कब लिखोगे 


कईयों को खड़े कर दिया तुमने उनके कच्छे में 

तुम्हारा मालिक भी बहुत नंगा है कब लिखोगे 


कैसे हैं आपके बॉस यानी मनरेगा के मुखिया जी 

नेताओं के तलवे चाटता अधनंगा है कब लिखोगे


केवल कलम घसीटने से तेरा घर भी घसीट रहा 

ओह! आखिर तू भी कितना अंधा है कब लिखोगे 


- कंचन ज्वाला कुंदन

कुछ रूहानी भी है आज समझ आ गया...

किसी से कैसे होता है प्यार

कैसे पनपता है प्यार

मन में कहां से आते हैं

प्यार के विचार

इसकी कोई तो जमीं है

जहां से फूटते हैं 

प्यार के अंकुर

कोई तो आसमां है

जो इसे सींचता होगा

एक बात तो पक्की है

प्यार का दुनिया सिर्फ जिस्मानी नहीं है

कुछ रूहानी भी है आज समझ आ गया...


- कंचन ज्वाला कुंदन


मेरे प्यार का पता है होटल नटराज

 मैं तो कहता हूं तुम भी लिखो आज

मेरे प्यार का पता है होटल नटराज


होटल मिडटाउन, कैपिटल, ब्लू मून

अच्छा एक और लिखो होटल बलराज


मैं बिल्कुल ऐसा नहीं था होना पड़ा

तुम्हें भी तो ऐसे ही इश्क पर है नाज


उसके साथ ठहरती हो अब कहां-कहां

मुझे पता है तुम्हारे नए प्यार का अंदाज


पहले यकीं था मुझे पाक मोहब्बत पर

अब पहुंचने का इरादा है होटल ताज


- कंचन ज्वाला कुंदन


जिस्मानी संबंधों की औकात ही क्या

सफलता कोई निशानी मांगे दे दो 

कामयाबी कोई कुर्बानी मांगे दे दो 


खास हिस्सा हो तो भी अफ़सोस क्यों

जीवन की कोई कहानी मांगे दे दो 


कामयाबी की कीमत चुकानी ही होगी 

वो खुद की मुंह मनमानी मांगे दे दो 


सक्सेस भी इतना आसान कहाँ बंधु 

वो जिद पर आए जवानी मांगे दे दो 


सुबह शाम दोपहर कर दो न्यौछावर

कमबख्त ये रात सुहानी मांगे दे दो


जिस्मानी संबंधों की औकात ही क्या

सफलता मोहब्बत रूहानी मांगे दे दो


- कंचन ज्वाला कुंदन

जीवन में बहार लाने यही चुनौती है, पतझड़ में तुमको पलना ही होगा

जाना है जहाँ तक चलना ही होगा 

नए सांचों में अब ढलना ही होगा 


रास्ते नए हैं तो तजुर्बे नए होंगे ही

सफ़र के लिए निकलना ही होगा 


कुछ फ़लसफ़ा जीवन का याद रखो

हार के बाद फिर संभलना ही होगा 


नजर वही मगर खेल नजरिये का 

अपना नजरिया बदलना ही होगा 


जीवन में बहार लाने यही चुनौती है 

पतझड़ में तुमको पलना ही होगा 


- कंचन ज्वाला कुंदन 

मैं दावा करता हूँ हर आदमी कैदी है, शर्त यही है वो गुनाह कबूल कर ले ...

 हर दिन कोई गुनाह हो ही जाता है मुझसे

सजा काटने कहो तो जिंदगी भी कम


मैं आदमी हूँ गुनाहों का पुतला हूँ 

इतना तो पता है फ़रिश्ता नहीं हूँ .............


अपराध बोध की साँसें लेता हूँ जिस वक्त 

जेल की सलाखों में ही होता हूँ उस वक्त ..........


मैं दावा करता हूँ हर आदमी कैदी है 

शर्त यही है वो गुनाह कबूल कर ले .....


हर आदमी ने किया है कोई न कोई गुनाह 

जिसने सफाई नहीं बरती सलाखों के पीछे है......

- कंचन ज्वाला कुंदन 

सब मिट्टी का है

मेरा मान

अपमान

अभिमान

स्वाभिमान

छल प्रपंच

छद्म जीवन

सब मिट्टी का है

मैंने महसूस कर लिया आज


मैं लड़ूंगा अंतिम सांसों तक

मुसीबतों का घना कोहरा छा जाए तो भी

कांच और कांटों से भरा रास्ता

चलने से कदम लड़खड़ाए तो भी


आंखों से आंसू डबडबाए तो भी

चेहरे की चमक खो जाए तो भी

जो होना है हो जाए तो भी


मैं लड़ूंगा अंतिम सांसों तक

लड़ना नीयत में है

नियति को चाहे जो मंजूर हो

जीत या हार...


- कंचन ज्वाला कुंदन


धन इच्छाओं का परिणाम नहीं है। वह केवल निरंतर दृढ़ता से निश्चित इच्छाओं द्वारा समर्थित योजनाओं की प्रतिक्रिया होता है

धन इच्छाओं का परिणाम नहीं है। वह केवल निरंतर दृढ़ता से निश्चित इच्छाओं द्वारा समर्थित योजनाओं की प्रतिक्रिया होता है।


चलिए आज कुछ कमजोरियों और दुश्मनियों की सूची बनाते हैं...

कुछ कमजोरियां ही असली दुश्मन है जो आप और उल्लेखनीय उपलब्धि के बीच खड़ा है। यहां आप न केवल दृढ़ता की कमजोरी का संकेत देते हुए 'लक्षण', बल्कि अवचेतन में गहरे बैठी इस कमजोरी का कारण भी पाएंगे। यदि आप सच में पता करना चाहते हैं कि आप कौन हैं और आप क्या करने में सक्षम हैं तो सूची का ध्यान से अध्ययन कीजिए और सीधे-सीधे खुद का सामना कीजिए

 1. व्यक्ति वास्तव में क्या चाहता है, पहचानने और स्पष्ट रूप से परिभाषित करने में असफलता।
 2. विलंब, कारण के साथ या बिना कारण (आम तौर पर अन्यत्र उपस्थिति और बहाने की एक दुर्जेय सारणी के समर्थन के साथ)।

3. विशेष ज्ञान प्राप्त करने में रुचि का अभाव। 

4. अनिर्णय, सीधे-सीधे मुद्दों का सामना करने के बजाय सभी अवसरों पर, 'दूसरों पर दायित्व डालने की आदत। (इसके अलावा अन्यत्र उपस्थिति द्वारा समर्थित) ।

5. समस्याओं के समाधान के लिए निश्चित योजना बनाने के बजाय अन्यत्र उपस्थिति पर भरोसा करने की आदत 

6. आत्म संतुष्टि इस बीमारी का बहुत कम इलाज है और उन लोगों के लिए कोई उम्मीद नहीं होती, जो इससे पीड़ित हैं।

7. उदासीनता आम तौर पर किसी की अवरोधों से भिड़ने और उसका मुकाबला करने के बजाय सभी अवसरों पर समझौता करने की तत्परता में परिलक्षित।


8. एक की गलतियों के लिए दूसरों को दोष देने और प्रतिकूल परिस्थितियों को अपरिहार्य होने के रूप में स्वीकार करने की आदत

9. इच्छा की कमजोरी इरादे जो कार्रवाई करने के लिए बाध्य करते हैं, के चुनाव में उपेक्षा करने के कारण। 

10. हार की पहली निशानी पर छोड़ देने की इच्छा, यहां तक कि उत्सुकता।

 11. जहा उनका विश्लेषण किया जा सकता है, लेखन में रखी संगठित योजना का अभाव।

12. विचारों पर प्रस्थान करने या अवसर को जब वह खुद को प्रस्तुत करता है, पकड़ने के प्रति उपेक्षा की आदत ।

13. तैयार होने के बजाय इच्छुक होना।

14. संपत्ति को लक्ष्य बनाने के बजाय गरीबी के साथ समझौता करने की आदत बनने की करने की और मालिक होने की सामान्य महत्त्वाकांक्षा का अभाव।

15. संपन्नता के लिए सभी छोटे रास्तों की खोज करना, एक उचित समतुल्य दिए बिना प्राप्त करने की कोशिश करना आम तौर पर जुआ, 'बारीक मोल तोल पर चलने का प्रयास करने की आदत में परिलक्षित।

16. आलोचना का डर अन्य लोग क्या सोचेंगे करेंगे या कहेंगे की वजह से योजना बनाने और उन्हें कार्रवाई में डालने की विफलता, 

यह दुश्मन सूची में सबसे ऊपर आता है, क्योंकि यह आम तौर पर व्यक्ति के अवचेतन मन में मौजूद होता है, जहां इसकी उपस्थिति की पहचान नहीं हो पाती
है।

आइये हम आलोचना के डर के लक्षणों में से कुछ की जांच करते हैं। अधिकांश लोग रिश्तेदारों, मित्रों और बड़े पैमाने पर जनता को इतना प्रभावित करने को अनुमति देते हैं कि वे अपना स्वयं का जीवन नहीं जी सकते हैं, क्योंकि वे से डरते हैं।

लोगों की भारी संख्या शादी में गलती करती है, सौदेबाजी के साथ खड़े होते है और भाग्यहीन और दुखी जीवन बिताते हैं, क्योंकि वे उस आलोचना से भय खाते जिसका अनुसरण किया जा सकता है, यदि वे गलती को ठीक कर लें। (कोई जिसने भय के इस रूप को प्रस्तुत किया है, जानता है कि यह महत्त्वाकांक्षी ग्राम-निर्भरता और प्राप्त करने की इच्छा को नष्ट करके कितनी अपूरणीय क्षति करता है

लोग व्यापार में जोखिम लेने से मना कर देते हैं, क्योंकि उन्हें उस आलोचना का डर होता है जिसका अगर वे असफल होते हैं तो सामना करना हो सकता है। इस तरह के मामलों में आलोचना से डर, सफलता की इच्छा से मजबूत होती है।

बहुत सारे लोग खुद के लिए उच्च लक्ष्यों को निर्धारित करने से मना कर देते हैं या यहां तक कि एक कैरियर का चयन करने की उपेक्षा कर देते हैं, क्योंकि उन्हें रिश्तेदारों और ‘दोस्तों' की आलोचना का डर होता है, जो कह सकते हैं, “इतना उच्च लक्ष्य मत रखो-लोग सोचेंगे, आप पागल हो गए हैं। "

जो बात मैंने सबसे पहली कही थी उसे मैं फिर से कहना चाहूगा, 

धन इच्छाओं का परिणाम नहीं है। वह केवल निरंतर दृढ़ता से निश्चित इच्छाओं द्वारा समर्थित योजनाओं की प्रतिक्रिया होता है।

कोई आदमी अपने बारे में जो सोचता है, उसी से उसकी तकदीर तय होती है, या उसके भाग्य के बारे में संकेत मिलता है

 हेनरी डेविड थोरो के अनुसार


“कोई आदमी अपने बारे में जो सोचता है, उसी से उसकी तकदीर तय होती है, या उसके भाग्य के बारे में संकेत मिलता है।"

अब मैं आपको एक शानदार कहानी सुनाता हूं...

एक भिखारी एक स्टेशन पर पेंसिलों से भरा कटोरा ले कर बैठा हुआ था। एक युवा अधिकारी उधर से गुजरा और उसने कटोरे में एक डॉलर डाल दिया, लेकिन उसने कोई पेंसिल नहीं ली। उसके बाद वह ट्रेन में बैठ गया। डिब्बे का दरवाजा बंद ही होने वाला था कि अधिकारी एकाएक ट्रेन से उतर कर भिखारी के पास लौटा और कर बोला, "मैं कुछ पेंसिलें उठा कुछ पेंसिलें लूँगा । इनकी क़ीमत है, आखिरकार तुम एक व्यापारी हो और मैं भी ।" उसके बाद वह तेजी से ट्रेन में चढ़ गया।

छह महीने बाद, वह अधिकारी एक पार्टी में गया। वह भिखारी भी वहाँ पर सूट और टाई पहने हुए मौजूद था। भिखारी ने उस अधिकारी को पहचान लिया, वह उसके पास जाकर बोला, “आप शायद मुझे नहीं पहचान रहे हैं, लेकिन मैं आपको पहचानता हूँ।” उसके बाद उसने छह महीने पहले घटी घटना का जिक्र किया। अधिकारी ने कहा, “तुम्हारे याद दिलाने पर मुझे याद आ रहा है कि तुम भीख माँग रहे थे। तुम यहाँ सूट और टाई में क्या कर रहे हो?" भिखारी ने जवाब दिया, “आपको शायद मालूम नहीं कि आपने मेरे लिए उस दिन क्या किया। मुझे दान देने के बजाए आप मेरे साथ सम्मान के साथ पेश आए। आपने कटोरे से पेंसिलें उठा कर कहा, 'इनकी क़ीमत है, आखिरकार तुम एक व्यापारी हो और मैं भी।' आपके जाने के बाद मैंने सोचा, मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? मैं भीख क्यों माँग रहा हूँ? मैंने अपनी जिंदगी को सँवारने के लिए कुछ अच्छा काम करने का फ़ैसला लिया। मैंने अपना झोला उठाया और काम करने लगा। आज मैं यहाँ मौजूद हूँ। मुझे मेरा सम्मान लौटाने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। उस घटना ने मेरा जीवन बदल दिया।”

भिखारी की ज़िंदगी में क्या बदलाव आया? बदलाव यह आया कि उसका आत्मसम्मान जग गया और उसके साथ ही उसकी कार्यक्षमता भी बढ गई। हमारी जिंदगी में आत्मसम्मान इसी तरह का जादुई असर डालता है।

आत्मसम्मान और 'कुछ नहीं, बल्कि खुद अपने बारे में हमारी सोच है। अपने बारे मे हमारी जो राय होती है, उसका हमारी काम करने की शक्ति, रिश्तों माँ-बाप के रूप में हमारी भूमिका, जिदगी में हमारी उपलब्धियों, यानी हर चीज पर काफी गहरा असर पड़ता है। ऊँचे दर्जे के आत्मसम्मान से जिंदगी खुशहाल, संतुष्ट, और मकसदों से भरी जिंदगी बनती है। हम अगर खुद को मूल्यवान नहीं मानते, तो हम में ऊँचे दर्जे का स्वाभिमान भी पैदा नहीं होगा। आत्मसम्मान की वजह से हम आत्मप्रेरित (internally driven) होते हैं। इतिहास में जितने भी महान नेताओं और शिक्षको का जिक्र है, उन सबका मानना था कि सफल होने के लिए इसान का आत्मप्रेरित होना जरूरी है।

हम अपने बारे में जो सोचते हैं, उसका अहसास अनजाने में ही दूसरों को भी करा देते हैं और दूसरे लोग हमारे साथ उसी ढंग से पेश आते हैं। ऊँचे दर्जे के आत्मसम्मान वाले लोग खुद में दृढ़ विश्वास और क्षमता पैदा करते हैं, और वे ज़िम्मेदारियाँ कबूल करने के लिए तैयार रहते हैं। वे जिंदगी का सामना आशावादी नजरिए के साथ करते हैं, रिश्तों को बेहतर बनाते हैं और उनके जीवन में अधिक परिपूर्णता होती है। वे प्रेरित और महत्वाकाक्षी होते हैं। वे अधिक संवेदनशील भी होते हैं। उनकी काम करने की क्षमता और खतरे मोल लेने की योग्यता बढ़ जाती है। नए अवसरों और चुनौतियों को वे खुले मन से स्वीकार करते हैं। वे बड़ी चतुराई और सरलता के साथ दूसरों की आलोचना या तारीफ कर सकते हैं और अपनी आलोचना या प्रशंसा स्वीकार कर सकते हैं।

आत्मसम्मान एक ऐसा अहसास है, जो अच्छाई को समझने और उस पर अमल करने से पैदा होता है।

उस सफलता को देखें, जिसे आप चाहते हैं

 नेपोलियन हिल के अनुसार


अपने सपनों और भविष्य दृष्टि की कद्र करें, क्योंकि वे आपकी आत्मा के शिशु हैं, आपकी चरम उपलब्धियों के ब्लूप्रिंट हैं

आपके मस्तिष्क में असीमित शक्तियाँ होती हैं। कई लोग इन शक्तियों के बारे में जागरूक नहीं होते और लक्ष्य हासिल करने के लिए उनका इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसीलिए उन्हें सिर्फ औसत परिणाम मिलते हैं।

जब आप अपने अवचेतन और अतिचेतन मनों की शक्तियों का दोहन करते हैं और उन्हें मुक्त करते हैं, तो आप अक्सर एक-दो साल में इतना कुछ हासिल कर लेंगे, जितना अधिकांश लोग जिंदगी भर में भी हासिल नहीं कर पाते। आप अपने लक्ष्यों की ओर कल्पनातीत गति से बढ़ने लगेंगे।


मानसिक तस्वीर देखने की आपकी योग्यता शायद आपकी सबसे प्रबल शक्ति है। आपके जीवन के सभी सुधार आपकी मानसिक तस्वीरों से शुरू होते हैं। आप आज जहाँ हैं और जो हैं, काफ़ी हद तक उन मानसिक तस्वीरों के कारण हैं, जो इस वक्त अपके चेतन मन में हैं। जब आप भीतर से अपनी मानसिक तस्वीरों को बदल लेते हैं, तो आपका बाहरी संसार उन तस्वीरों के अनुरूप बदलने लगेगा।

मानसिक तस्वीर देखने से आकर्षण का नियम सक्रिय हो जाता है। यह आपके जीवन में उन लोगों, परिस्थितियों और संसाधनों को आकर्षित कर देता है, जिनकी जरूरत आपको लक्ष्य हासिल करने के लिए होती है

मानसिक तस्वीर देखने से अनुरूपता का नियम भी सक्रिय हो जाता है, जो कहता है, "जैसा भीतर, पैसा बाहर।" अब आप भीतर से अपनी मानसिक तस्वीरों को बदलते हैं, तो आपका बाहरी संसार आईने की तरह बदलने लगता है। हमने बताया था, आप वही बन जाते हैं, जिसके बारे में आप सबसे ज्यादा समय सोचते हैं उसी तरह आप जिसकी मानसिक तस्वीर सबसे ज्यादा समय देखते हैं, वह भी बन जाते हैं।

वेन डायर कहते हैं, "जब आप इस पर यकीन कर लेंगे तो आप इसे देख लेंगे।" जिम कैथकार्ट कहते हैं, "जो व्यक्ति आप देखते हैं, वही आप बनेंगे।" डेनिस पेटली कहते हैं कि आपकी मानसिक तस्वीरें "आपके जीवन के आगामी आकर्षणों का प्रिव्यू हैं।"

अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, "कल्पना तथ्यों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।" नेपोलियन बोनापार्ट के अनुसार, "कल्पना विश्व पर राज्य करती है।" नेपोलियन हिल ने कहा घा, "इंसान का दिमाग जो सोच सकता है और यकीन कर सकता है, उसे यह हासिल भी कर सकता है।"


हर युग के सभी लीडर्स का सबसे आम गुण है भविष्य-दृष्टि इसका मतलब है कि वे वास्तविक बनने से पहले ही आदर्श भविष्य की मानसिक तस्वीरें देख सकते हैं और कल्पना कर सकते हैं। जिस तरह वॉल्ट डिज़्नी ने डिज़्नीलैंड बनने से कई साल पहले स्पष्टता से आनंदपूर्ण, साफ़-सुथरा, परिवार केंद्रित एम्यूजमेंट पार्क देख लिया था, उसी तरह आपके जीवन की हर सार्थक चीज़ किसी न किसी तरह की मानसिक तस्वीर से शुरू होती है।

आप हमेशा किसी न किसी रूप में, किसी न किसी चीज़ की मानसिक तस्वीर देख रहे हैं। जब आप किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में सोचते हैं, अतीत की घटना को याद करते हैं, आने वाली घटना की कल्पना करते हैं या दिवास्वप्न भी देखते हैं, तो आप इसकी मानसिक तस्वीर देख रहे हैं। यह अनिवार्य है कि आप अपने मस्तिष्क की मानसिक तस्वीर देखने की इस क्षमता का प्रबंधन और नियंत्रित करना सीख लें। इसे लेज़र बीम की तरह उन लक्ष्यों पर केंद्रित कर लें, जो आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।

उस सफलता को देखें, जिसे आप चाहते हैं

सफल लोग वे होते हैं, जो पहले से ही उस सफलता की मानसिक तस्वीर देखते हैं, जिसका वे आनंद लेना चाहते हैं। हर नए अनुभव से पहले सफल व्यक्ति पुरानी सफलता के पुराने अनुभवों की मानसिक तस्वीरें याद करता है, जो आने वाली घटना के अनुरूप होती है। सफल सेल्समैन सफल सेल्स प्रस्तुतियों की मानसिक तस्वीर देखेगा और उन्हीं को याद करेगा। सफल वकील सफल मुकदमे के प्रदर्शन की मानसिक तस्वीर देखेगा और उन्हीं को याद करेगा। सफल डॉक्टर या सर्जन अतीत में किसी रोगी के सफल उपचार की मानसिक तस्वीर देखेगा और उन्हीं को याद करेगा।

दूसरी तरफ़, असफल लोग भी मानसिक तस्वीरों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अपने ख़िलाफ़ । असफल लोग किसी नई घटना से पहले अपनी “असफलता के पुराने अनुभव" याद करते हैं, उन पर विचार करते हैं और उन्हीं की मानसिक तस्वीरें भी देखते हैं। वे लगातार उस पिछली घटना के बारे में सोचते हैं, जब वे उस क्षेत्र में असफल हुए थे या उन्होंने खराब प्रदर्शन किया था। वे दोबारा असफल होने की कल्पना करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि घटना होने से पहले ही उनका अवचेतन मन उनकी प्रोग्रामिंग सफलता के बजाय असफलता के लिए कर देता है।

अपने गोल के एकॉर्डिंग रोल चाहिए

अपने गोल के एकॉर्डिंग रोल चाहिए

अपने रोल के एकॉर्डिंग गोल चाहिए

जीतना है बाजी तो जंग-ए-मैदान आओ
जीत की कीमत चुकाने कुछ मोल चाहिए

समंदर का सफर है तो जहाज तलाशो
उडऩा है तो उडऩ खटोल चाहिए

अपने-अपने फील्ड में यूनिक बनना होगा
जिसे भी सक्सेस अनमोल चाहिए

उलझे हैं सब बुतरु, पीपर पात के तुतरु में
और चाहत है बड़ा-सा ढोल चाहिए

-कंचन ज्वाला 'कुंदन' छत्तीसगढ़, रायपुर

अब जिस्मफरोसी से उन्हें टोकेगा कौन

वेश्या हो चली है मीडिया तो रोकेगा कौन

अब जिस्मफरोसी से उन्हें टोकेगा कौन

मीडिया में काम करना जब दलाली हो चूका है
फिर इसके लिए जोखिम में जान झोंकेगा कौन

कुंदन के कांटे : हिंदी दिवस

 कुंदन के कांटे 

........................
आज हिंदी दिवस है. लोग लगातार एक दूसरे को हिंदी दिवस की बधाई दे रहे हैं. पहली बात हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाडा मनाने की जरूरत क्यों...? खैर, यह बात आज यहीं पर...दूसरी बात करते हैं. दूसरी बात यह कि कुछ लोग हिंदी के ऐसे हिमायती हैं कि जिनके बेटे का नाम प्रिंस है. बेटी का नाम क्विन है. और लच्छेदार भाषण तो ऐसे देते हैं जैसे कि हिंदी ही खाते हैं, हिंदी ही पीते हैं, हिंदी का ही सोना हो, और हिंदी का ही बिछौना हो...खुद के बच्चे इंग्लिश मीडियम में पढ़ेंगे और फिर ऐसे आदमी हिंदी का झुनझुना क्यों थमाता है दूसरे को... यह बात वाकई समझ से परे है...मगर सिर्फ आपके...हमारे समझ से नहीं...जुमलेबाजी से हिंदी को सर पर ढोने वाले घोर हिमायती, तथाकथित कई संगठनों से आज की इस बात का कोई सरोकार नहीं है....क्योंकि उनकी बात कभी और...कहीं और भी... की जा सकती है. आपके लिए आज हिंदी दिवस पर मेरी एक कई साल पुरानी कविता शेयर कर रहा हूँ.....बात किसी को चुभी हो तो क्षमा....

माँ सुबह उठी 
और...
अपने बेटे से बोली 
बेटा प्रिंस !
लेसन याद हुआ कि नहीं 
बेटे ने अंग्रेजी रौब में कहा- यस मॉम 
बेटा इंग्लिश स्कूल में पढ़ने चला गया 
4 घंटे बाद माँ भी तैयार हुई 
उन्हें हिंदी दिवस कार्यक्रम में 
जोरदार भाषण भी तो देना था 
वहां उन्होंने हिंदी की महिमा मंडन की
बच्चों को हिंदी माध्यम में पढ़ने-पढ़ाने की पैरवी की 
हिंदी की मजबूत पैरवी पर मजबूत दलीलें भी दी 
इंग्लिश को भारी गरियाकर 
कार्यक्रम से देर शाम लौटी 
और अपने हिंदी पुत्र प्रिंस को घुड़ककर पूछी 
माय सन प्रिंस ! आज क्या होमवर्क मिला है
खेलो मत उन्हें पूरा करो 
भाषणों में हिंदी की घोर हिमायती आदर्श माँ ने 
बच्चे की होमवर्क में सहयोग भी की
अपने हिंदी बच्चे को अंग्रेजियत की कई पाठ पढ़ाई 
और फिर जल्दी से सो गई 
क्योंकि उन्हें दूसरी जगह कल भी...
हिंदी दिवस पर जोरदार भाषण देने जाना था 
                            
- कंचन ज्वाला कुंदन  

मेरे जीवन में कोई पासवर्ड नहीं था

मेरे जीवन में कोई पासवर्ड नहीं था

कोई भी यूज कर ले रहा था मुझे 

मोबाइल का पासवर्ड हटाकर 
मैंने अपने जीवन में पासवर्ड लगा लिया है 
अब ये मत पूछना कि पासवर्ड क्या है 
ये पासवर्ड मैं समय-समय पर 
गिरगिट की तरह बदलता रहूँगा 

- कंचन ज्वाला कुंदन 

इधर मैं, आज भी उलझा हूँ उसकी यादों में

सुना हूँ, उसका मामला सुलझ चुका है पूरा 

इधर मैं, आज भी उलझा हूँ उसकी यादों में 

वही कद-काठी बेहतरीन सीना है

माथे की सिंदूर ने रोक लिया इसे

नहीं तो ये आँखें बहुत कमीना है 


क्यों घूर रहा था बड़ी देर तक 
जैसे साथ-साथ ही इसे जीना है   
वही है रंगत खूबसूरती है गाल में 
वही कद-काठी बेहतरीन सीना है 
लगा कि सदी गुजरी हो साथ में 
आपको मुझसे किसी ने छीना है 
नशा ही नशा है आपकी तस्वीर में 
जरुरत ही नहीं कि दारू भी पीना है 
- कंचन ज्वाला कुंदन 

मैंने सिर्फ एक ही शब्द बस माँ लिख दिया

मैंने माशूका पर ढेरों गजलें खामखाँ लिख दिया

लिखना तो था ही नहीं मगर हाँ लिख दिया


कोरे कागजों को काला करता रहा मोहब्बत पर  
छद्म शब्दों का, आडंबर का कारवां लिख दिया

शिक्षक ने आज कहा परिवार पर कविता लिखो
मैंने सिर्फ एक ही शब्द बस माँ लिख दिया

शिक्षक ने कहा कुछ और आगे भी लिखो
मैंने माँ को मेरी खूबसूरत जहां लिख दिया

माँ पर कविता मेरे लिए मुमकिन नहीं गुरुजी
मैंने लिखने के अंत में अनंत आसमां लिख दिया

- कंचन ज्वाला कुंदन, रायपुर

जिस्म को बख्शने की शर्त लगाकर कहती है

कहती है बेताब होकर मिलो आओ जरा भी 

इतने फासले ठीक नहीं गले लगाओ जरा भी 

उसने शर्त रखी है मिलना है मगर मिलना नहीं
ये कैसे मुमकिन है कुछ समझाओ जरा भी 

जब जाहिर ही नहीं करना है जरा भी बेताबी 
फिर कैसे मिलूं बेताब होकर बताओ जरा भी 

जिस्म को बख्शने की शर्त लगाकर कहती है 
चलो जिस्म से जिस्म को मिलाओ जरा भी 

मनमर्जी कर ले चाहे जितना भी तू मंजूर है 
सताए हुए को और थोड़ा सताओ जरा भी 

- कंचन ज्वाला कुंदन 
 



बुधवार, 4 सितंबर 2024

तुम हो तो गिनती के, मगर बहुमत है तुम्हारा ही

कविता छोटी है मगर व्याख्या बहुत लम्बी है... 


हर जगह- 
तुम ही तुम हो 
जल में तुम हो 
थल में तुम हो 
नभ में तुम हो 
और हम कहाँ हैं
कहीं नहीं...  

सभी सरकारी दफ्तरों में 
तुम हो 
सभी सरकारी अफसरों में 
तुम हो 

हर निजी संस्थानों में 
हुकूमत है तुम्हारा ही 
तुम हो तो गिनती के 
मगर बहुमत है तुम्हारा ही 


लोकतंत्र का हर पाया 
तुम्हारा है 
हमारा क्या है
कुछ नहीं...


हर जगह 
तुम्हारा ही 
एकक्षत्र राज है 
हर जगह स्वघोषित 
आरक्षित है तुम्हारे लिए

इसके बावजूद 
मुझसे कुढ़ते हो 
मुझ पर हँसते हो 
विरोध भी करते हो 
मेरे खिलाफ... 

जबकि 
मैं जी नहीं रहा 
घूंट रहा हूँ
भीतर ही भीतर 
हर जगह तुम्हारे साथ... 

तुमने मजबूर कर रखा है मुझे 
इस घुटनभरी जिंदगी के लिए 
तुमने सदियों से सताया है मुझे 
और सिलसिला आज भी जारी है...
बदस्तूर..., बदस्तूर..., बदस्तूर...

- कंचन ज्वाला कुंदन

हाँ, तुम बच जाओगे यार, मेरी तरह जिंदा लाश बनकर सफ़र तय करने से...

 हाँ, तुम बच जाओगे यार, मेरी तरह जिंदा लाश बनकर सफ़र तय करने से...


जिंदगी क्या है...? क्यों है...? इसे समझने का प्रयास हर आदमी करता है. हर आदमी के लिए जिंदगी की परिभाषा भी अलग-अलग है. परिभाषा अलग-अलग इसलिए है कि हम सबके जीने-मरने की प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं. हमारी अपेक्षाएं अलग-अलग होने के बावजूद जिंदगी कई मामलों में एक जैसी है. खुशियाँ सबको चाहिए. सफलता सबको चाहिए. जीवन में सहानुभूति सबको चाहिए. आपसे एक कड़वा और यथार्थ बात कहूँ. जीवन का फलसफा यही है कि जीवन में समझ में आते-आते आधा जीवन ख़त्म हो चुका होता है. जीवन को लेकर आपका नजरिया क्या है, मुझसे जरूर साझा कीजियेगा. आपके नजरिये को जानकर मुझे बेहद ख़ुशी होगी. जीवन से जुड़ी एक जीवंत कविता आप सबके लिए पेश है...

जिंदगी क्या है
ये किसी ने बताया है तुम्हें अब तक
ये किसी ने समझाया है तुम्हें अब तक
या केवल जिए जा रहे हो
सिर्फ साँस लिए जा रहे हो

मैंने मौत के पड़ाव का
एक तिहाई सफ़र तय कर लिया
मुझे तो किसी ने नहीं बताया
जिंदगी क्या है
जीना किसे कहते हैं

मैं चाहता हूँ तुम मुझसे पहले पता कर लो
जिंदगी क्या है
जीना किसे कहते हैं
हाँ, तुम बच जाओगे यार
मेरी तरह जिंदा लाश बनकर सफ़र तय करने से...

- कंचन ज्वाला कुंदन

उसे सिर्फ अपने जिस्म की पड़ी है

मेरे सामने समस्या रूह की खड़ी है

उसे सिर्फ अपने जिस्म की पड़ी है

तू चाटने के लिए जाता है बड़े अदब से

 बड़े ही संस्कारी हो सभ्य है शहर तुम्हारा

क्या तुम्हारे ज्ञान से रावण राम हो जाता है


मैं तो भक्त हूँ रावण का तू जिसे भी पूज ले

फालतू चूं-चपड़ से नींद हराम हो जाता है


भाषा का अंग है गालियाँ भी, देकर बताऊँ

मेरे नजरिये से ही अमरुद आम हो जाता है


थोड़ा सा सीख ले किसी को सिखाने से पहले

तेरी गहरी नहीं सोच और गंगाराम हो जाता है


क्या कड़वा सच कहना भी गुनाह है हुजुर

तेरे निजाम में शायर ही बदनाम हो जाता है


मैं झुका नहीं पाता सर, दबा नहीं पाता दूम

मेरा छोटा सा काम भी जाम हो जाता है


तू चाटने के लिए जाता है बड़े अदब से

सर झुकाते ही तेरा हर काम हो जाता है


मैं दब जाता हूँ यहाँ दफ्तर की गुमनामी में

तलवे चाट-चाटकर तेरा नाम हो जाता है


तुम तो सुबह ही चंद घंटों में पहुँच जाते हो

मुझे गंतव्य तक पहुँचने में शाम हो जाता है


मैं कमजोर हूँ या धीरे चलता हूँ बताओ मुझे

सक्सेस के पहले ही काम तमाम हो जाता है


मैं ही हर मामले में झंडूबाम निकलता हूँ

तू तो हर मामले में आसाराम हो जाता है

हम मारे जा रहे हैं इतिहास से भी बदतर...

 तुमने सुना होगा

तुमने पढ़ा भी होगा

इतिहास में बहुत रक्तपात हुए

शायद तुम बहुत खुश हो

अब रक्तपात बंद हो चुका है

तुम इस बात से भी खुश हो

अब कत्लेआम नहीं होते

तुम इस भ्रम में भी हो

खून की नदियां बहना

बंद हो गईं हैं पूरी तरह

मगर ये वर्तमान

इतिहास से भी भयावह है

इतिहास से भी

खतरनाक हो चुका है

इतिहास से भी ज्यादा

क्रूर होता जा रहा है


ये बात जब तक समझोगे

तब तक तुम भी

गिर चुके होगे जमीं पर

बिना सर कटे ही

फड़फड़ाते दिखोगे

लहू का एक कतरा भी

नीचे नहीं गिरेगा

भीतर ही भीतर

खून से लथपथ हो जाओगे

आखिरी सांसों के लिए

तड़पते नजर आओगे

छटपटाते नजर आओगे

इतिहास में युद्ध होते थे

रक्तरंजित, रक्तपातयुक्त

मगर अब

रक्तविहीन, रक्तशून्य


युद्ध चल रहा है

इतिहास से भी बड़ा...

कल एक किसान ने

खुदकुशी कर ली

डॉक्टरों ने

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में

सुसाइड लिख दिया

तुम किसान के लाश को

दफन कर आए

मुझे खड़ा करो कोर्ट में

मैं पैरवी करूंगा

मेरे पास ठोस सबूत भी है

किसान ने सुसाइड नहीं की

किसान का मर्डर हुआ है

किसान कई महीनों से

भटक रहा था


बीमा की राशि के लिए

काश उसे समय पर

वो राशि मिल गया होता

किसान कई महीनों से

परेशान था

घर की जरूरतें

पूरी नहीं कर पा रहा था

अनाजों के दाम भी

उसे उतना नहीं मिलता

जितना वह उसमें

खून-पसीना सींचता है

हमने उस किसान को

बुजदिल कह दिया

क्योंकि हम सबको

ये लगता है कि

घर की माली हालत से


वह टूट गया, बिखर गया

और अंततः वो मर गया

किसानों की लाशों का

नया पोस्टमार्टम लिखो

दोनों हाथ की ऊँगली में ही

गिन लिए जाएंगे

उनके सभी दोषी

किसानों के

हर पांच कब्रगाहों में

तीन कब्रगाहें

सुसाइड बनाम हत्या की

दर्दनाक दास्तां बताएगा

कब्रगाह में चैन से सोने की

दुखद कहानी सुनाएगा

सच तो यही है

हर सुसाइड अपने आप में


एक मर्डर होता है

मगर मैं सबकी व्याख्या

नहीं कर सकता

मैं सबका नया रिपोर्ट भी

नहीं लिख सकता

हाँ मैं कुछ बातें

तय रूप से जानता हूं

वह कोई भी आदमी

जो मर रहे हैं अभाव में

उसके हम ही आरोपी हैं

ये मर्डर ही तो है

वह कोई भी आदमी

जो मर रहे हैं भूख से

उसे हम रोटी ना देकर

घोट रहे हैं गला उसका

ये मर्डर ही तो है


वह कोई भी आदमी

जो मर रहे हैं

धनपशुओं के कारण

और हम हाथ बांधे खड़े हैं

ये मर्डर ही तो है

वह कोई भी आदमी

जो मर रहे हैं

इस सिस्टम के चलते

हम विरोध नहीं कर रहे हैं

ये मर्डर ही तो है

हम सबको अभी

समझ नहीं आ रहा है

ये इतिहास जैसा ही

दुखद वर्तमान

क्योंकि हम सब

तब्दील होते जा रहे हैं


कठपुतलों में, जिंदा लाशों में

हमारे लिए

आजादी का मतलब

सिर्फ इतना ही है

साल में बस दो दिन

फहरते तिरंगे को

देखना ही है

ये धनपशु, ये धनपिशाच,

गोरे अंग्रेजों के काले औलाद

जंगल उजाड़ रहे हैं

विकास के बहाने

नदियां सुखा रहे हैं

विकास के बहाने

जमीन छीन रहे हैं

कारखानों के लिए


हमें ये खोखला कर रहे हैं

भीतर से

हमें ये कमजोर कर रहे हैं

अंदर से

चूसे जा रहे हैं हम

आम की तरह

तुम आम कैसे खाते हो

तुम ही जानो

मगर ये काले अंग्रेज

आम चूसकर ही खाते हैं

इसी तरह...

मसले जा रहे हैं हम

कुचले जा रहे हैं हम

निचोड़े जा रहे हैं हम

नींबू के मानिंद

और पेरे जा रहे हैं

गन्ने की तरह...


हमारा शोषण हो रहा है

खूब, अत्यंत, जमकर

एकदम पहले ही जैसा

ठीक वैसे ही हूबहू

जैसे इतिहास में

हुआ था हमारे साथ

मैं देख पा रहा हूं

साफ-साफ

तुम्हारे इस तथाकथित

सुखद वर्तमान में

हम मारे जा रहे हैं

इतिहास से भी बदतर...

दो टूक बोले हमारी जी-हुजूरी करो अपने पद में रहो

उसने मुझे औकात बताकर कहा अपने कद में रहो

तुम यहाँ तक पहुंचे इतना ही काफी अपने हद में रहो


तुम्हें जो चाहिए वो मिलेगा मगर किसी बगावत से नहीं

तुम हमारे गुट में शामिल हो जाओ अपने जद में रहो


उनका तो बढ़िया ही प्रस्ताव था मेरे लिए साफ़-साफ़

दो टूक बोले हमारी जी-हुजूरी करो अपने पद में रहो


मैं ऑफ़र ठुकराकर चलता बना एक अफ़सोस के साथ

मैंने कहा मुबारक हो साहब आप अपने गुम्बद में रहो


मेरे लिए बेहतर है हुजूर एक कमरे वाला मकान ही

जेब खाली हो या कंगाली हो मगर अपने मद में रहो

अब आपके विचार पर संग्राम हुआ है बापूजी

 विश्वभर में भारत का नाम हुआ है बापूजी

सच में बहुत बेहतर काम हुआ है बापूजी


आप जो चाहते थे अपने सपनों का भारत

ठीक वहीं देश का अंजाम हुआ है बापूजी


मोदीजी के राज में, दो-दो बार के ताज में

भाषण में ही सुबह से शाम हुआ है बापूजी


15 लाख से कम नहीं है किसी के भी खाते में

हर गरीब के दिल में आराम हुआ है बापूजी


अमन है हरियाली है, घर-घर दिवाली है

हमारा ये वतन गुलफाम हुआ है बापूजी


जनता बहुत खुश है, कोई लेता नहीं घूस है

आज तक कोई काम नहीं जाम हुआ है बापूजी


राम मंदिर बनते ही रामराज्य भी आ जाएगा

एकमात्र इस काम में विराम हुआ है बापूजी


गांधी नाम को लेकर घमासान है हर पार्टी में

अब आपके विचार पर संग्राम हुआ है बापूजी

मैंने मौन होकर देखा है ये होते बलात्कार

फिर से निकलवा रहे हैं संकलन इस बार

व्हाट्सएप पर मुनादी होता है लगातार


5 रचनाएं भेजिए खूबसूरत फोटो साथ में

छपवा लो किताबें सहयोग राशि दो हजार


खैर, इसमें किसी को कुछ आपत्ति भी क्या

साहित्य सेवा हो रहा है बड़ा ही शानदार


छपवाने के लिए हो रहीं रचनाएं उत्पादित

हिंदी की दुर्गति में हम सब हैं जिम्मेदार


सामूहिक दुष्कर्म में मेरा भी नाम लिख लो

मैंने मौन होकर देखा है ये होते बलात्कार


हिंदी किताबें बिक रहीं हैं किलो के भाव में

कई संस्थाएं चला रहीं हैं साहित्यिक बाजार


छूटना नहीं चाहिए एक आदमी भी जमीं पर

जहाँ भी अवसर हो सिर्फ खोजो व्यापार


आदमी के पैदा होने से लेकर मरघट तक

अरे करना है इनको तो सिर्फ कारोबार


जंग छिड़ जाये लोग मरने लगें धड़ाधड़ तो

कफ़न बेचने लगेंगे ये स्वयंभू कलमकार


प्यार-मोहब्बत पर अटकी है हमारी औकात

हमारे ही हाथों हिंदी हो रही है तार-तार


साहित्य मेला में देखना कभी हिंदी का हस्र

फिर कहना कि हमारी लेखनी है तलवार

अब तो पूरे नंगे होकर नए सिरे से कपड़ा ढंकें

आओ मिलकर बढ़िया खुलकर गालियाँ बकें

बकना है बिंदास जितना ज्यादा बक सकें


सिस्टम ने दिया है इसे सिस्टम को लौटा दें

इन फालतू चीजों को अपने पास क्यों रखें


गाली कोई गली नहीं अपने आप में मार्ग है

इस रास्ते भी चलें फ़क्र से न ऊबें न थकें


अगर हार गए हो सभ्य तरीके से लड़ाई में

इस बार अश्लीलता के ख़िताब का स्वाद चखें


चेहरे पर चेहरे का बहुत हुआ चूतियापा कुंदन

अब तो पूरे नंगे होकर नए सिरे से कपड़ा ढंकें

मोदी जी कोई बड़ा-सा बढ़िया वाला ढचरा करो

कांग्रेस के गांधी विचार यात्रा भी छोटा पड़ जाए

मोदी जी कोई बड़ा-सा बढ़िया वाला ढचरा करो


पहले तो प्लास्टिक का पारदर्शी थैला खरीदो

फिर उसमें समंदर किनारे जाकर कचरा भरो


बापू के दर्शन पर प्रदर्शन हावी है उनके बंदरों

इन छद्म तस्वीरों को कहीं भी शेयर करने से डरो


ये सच है हमें फिर से असहयोग आंदोलन चाहिए

हाँ, ठीक यही समय है फूंको बिगुल करो या मरो

अरे बड़े ही शातिर हैं हमारे गुजरात के ये गजरा सेठ

समंदर किनारे जाकर वोट बटोर रहे हो कचरा सेठ

तुम्हारे सभी ढकोसलों से हम वाकिफ़ हैं ढचरा सेठ


भले ही भोली जनता को बना लो कितना भी बेवकूफ़

मगर हम तुम्हारे झांसे में नहीं आएंगे कभी नखरा सेठ


बड़ी सेवाओं के निजीकरण से जेब भर दो अंबानी का

अरे बड़े ही शातिर हैं हमारे गुजरात के ये गजरा सेठ


होली में रंग उड़ा लो, दिवाली में दीप जला लो मोदीजी

वोट बैंक के गणित में बकरीद भी मना लो बकरा सेठ

करोड़ों कमा रही हैं फिल्में देश में मंदी कहाँ है

रविशंकर प्रसाद कह रहे हैं हालत तंगी कहाँ है

करोड़ों कमा रही हैं फिल्में देश में मंदी कहाँ है


किसी बात को समझने का नजरिया बदल लो

रविशंकर को दिखाओ ब्लू फिल्म गंदी कहाँ है


देश जिस हाल पर है उसी में सब आनंद ढूंढो

ये मत सोचो कौन बंदा कहाँ कौन बंदी कहाँ है


डमरू की धुन सुनो शिव जी का तांडव देखो

तुम्हें इससे क्या मतलब उनका नंदी कहाँ है

तेरे शहर में तो जिस्म भी बिकने को तैयार होते हैं

मेरे गांव की खुद्दारी का तुम कीमत नहीं लगा सकते

तेरे शहर में तो जिस्म भी बिकने को तैयार होते हैं


तेरे शहर के लोग भले ही दिखते हो बड़े सभ्य

मगर नजरों से गिद्ध चरित्र से सियार होते हैं


गांव में गरीबी है मगर तेरे टाईप कंगाली नहीं

यहाँ तो घर के लोग ही घर से दरकिनार होते हैं


तुम आठ कमरों के मकान में यहाँ अकेले पड़े हो

तुम्हें गांव जाकर समझ आएगा कैसे परिवार होते हैं


शहर से ज्यादा खुश हैं गांव के लोग जाकर देख लो

तुम्हारा भ्रम मिट जाएगा कंक्रीट में ही संसार होते हैं

अपने हाथों अपना सर नोंचता है आदमी क्यों

 क्या है ये किस्मत इसे कोसता है आदमी क्यों

किस्मत के ही बारे में सोचता है आदमी क्यों

दिन टहलके रात बहलके यूँ जिंदगी बिताना

अपने हाथों अपना सर नोंचता है आदमी क्यों

हर आदमी छटपटा रहा है अपने ही अंधेरे में

दूसरों के उजाले को ही देखता है आदमी क्यों

हमने यहां क्या किया एक कतरा मालूम नहीं

दूसरों का हिसाब ही रखता है आदमी क्यों

कुदरत ने कहा कई तरीकों से कर्म ही महान है

जिंदगी को इधर-उधर खोजता है आदमी क्यों

सच की सलीब पर लटक मत जाना

साधन के बिना यहाँ जीना नहीं आसान

बटोरना है तुम्हें भी सारा साजो सामान


4 दिन जीवन वाली कहावत है बेकार

सौ साल की तैयारी रहे रखना है ध्यान


निकलना है बाहर बाबाजी के योग से

जरा देखना भी है तुम्हें रुपयों की शान


हाँ खाली हाथ जाना है तुम्हें भी मुझे भी

हमेशा याद रखना मगर सिकंदर महान


मुक्ति के बकबक में बिल्कुल मत जाना

हौले-हौले बढ़ाया करो अपना अरमान


बाबा कहेंगे ही मोह माया में मत पड़ना

जो भी वो मना करे उसे करने की ठान


बनना है पाखंडी और बनना है लालची

मैं खुलकर बता रहा हूँ तजुर्बे का ज्ञान


जितना ज्यादा हो सके मक्कार बनो

यहाँ तभी बच पाएगा तुम्हारा ये जान


जानवर सा लड़ोगे तो आदमी सा बढ़ोगे

और ये लोग तभी करेंगे तुम्हारा सम्मान


सच की सलीब पर लटक मत जाना

है झूठ की दहलीज पर जब ये जहान

मैं देकर बताया करता हूँ गाली क्या है

 ये गरीबी बेकारी और बदहाली क्या है

ये भुखमरी बेरोजगारी कंगाली क्या है


तुम एसी में बैठकर योजना बनाते हो

मैं जानता हूँ तुम्हारा ये जुगाली क्या है


इतना भी मत पेलो लोकतंत्र का ज्ञान

मैं देकर बताया करता हूँ गाली क्या है


सामाजिक समानता का गप मत हांको

करके देखो पता चलेगा हमाली क्या है


तुम्हारे लिए भरा है आधा गिलास पानी

मैं देखता हूँ इसमें आधा खाली क्या है

बंधागे लाड़ू अउ बरा चुरगे

 भाजपा के सबो नेता नंदागे

बिचारा मन बरफ सरी घुरगे

जब चांउर वाले बबा निपटगे

ओखर आदमी के दिन पुरगे

नवा सरकार के राजकाज म

अपन आदमी के दिन बहुरगे

इही ल कथे ग भैया समारू

छरियाय सबो गदगदाके जुरगे

भइगे अब तहू राज्योत्सव मना

बंधागे लाड़ू अउ बरा चुरगे

30की उमर में मेरे तजुर्बे हैं अधेड़-सा

अकेले रहने का यहाँ कोई मतलब नहीं

चलो भीड़ में रहो तुम भी भेड़-सा


क्रूरता का समय है तो टेढ़े बनो खूब

वरना काट दिए जाओगे सीधे पेड़-सा


बता रहा हूँ बात मैं सोलह आने सच

30की उमर में मेरे तजुर्बे हैं अधेड़-सा

रोटी कौन सेंक रहा है इस यथार्थ को जानो

सबसे पहले राजनीति के चरितार्थ को जानो

फिर मजहबी लड़ाई के निहितार्थ को जानो


इस अंतहीन लड़ाई में कब किसे क्या मिला

इसके पीछे कौन है उसके स्वार्थ को जानो


मंदिर-मस्जिद के नाम पर हमें यूँ लड़ाकर

रोटी कौन सेंक रहा है इस यथार्थ को जानो


ये दलित-सवर्ण की लड़ाई को भी देख लो

कुछ उलझे हुए शब्दों के शब्दार्थ को जानो


अतीत में जो हुआ उसे वर्तमान में सुधारो

मेरे कहने का आशय क्या भावार्थ को जानो


क्या होगा कुंदन इस लड़ाई का अंजाम

अरे चुपचाप चलो तुम परमार्थ को जानो

बहुतों के बदल जाएंगे आज चश्मे के नम्बर तक

 अयोध्या के फैसले पर बहस होंगे अम्बर तक

और भूला दिए जाएंगे नोटबंदी के नवम्बर तक


आज दिल से मेरा निवेदन है आप सभी लोगों से

बकबक टीवी मत देखना आगामी दिसम्बर तक


तुम सोशल मीडिया से पूरी तरह दूरियां बना लो

क्योंकि आज ज्ञान पेलेगा वो आदमी दिगम्बर तक


सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिल से सम्मान करना

बहुतों के बदल जाएंगे आज चश्मे के नम्बर तक

ये लोकतंत्र है, लूटतंत्र है या भेड़तंत्र

 दो साल पहले

पर्यावरण मंडल ने कहा-

अलाव न जलाएं

इससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है

निगम अधिकारियों ने

अलाव जलाने वालों पर

जमकर कार्रवाई की

अलाव जलाने वालों से

जुर्माना भी वसूला गया

अलाव नहीं जलाने देने पर

भेड़ों का एक धड़ा

कंबल में दुबक गया

किसी ने चूं भी नहीं किया

क्योंकि नाम के निजी

काम के सरकारी अख़बारों ने बताया

अलाव जलाने से प्रदूषण होता है...?


और फैक्ट्रियों के धुएं से

हवा की सफाई होती है...?

पब्लिक ने मान भी लिया...

भेड़ों के एक धड़ा ने तो

अलाव से हाथ तक नहीं सेंका

दो साल बाद मुख्यमंत्री ने कहा-

शीतलहर चल रही है

जगह-जगह अलाव जलाये जाएँ

निगम अधिकारियों ने

शहर भर में

अलाव जलाने की व्यवस्था कर दी

अब वही लोग, हाँ-हाँ, वही लोग

अलाव से प्रदूषण बताने वाले अख़बारों में

अलाव जागरुकता की खबरें पढ़ते हुए

अब जगह-जगह पर

अलाव जलाकर, झुंड में बैठकर


दांत निपोर रहे हैं

कभी-कभी सवाल भी पूछ लिया करो

पहले वैसा क्यों... अब ऐसा क्यों...

ये लोकतंत्र है, लूटतंत्र है या भेड़तंत्र

मेरे माथे पे C लिखा है क्या

 मैंने कॉल करके


उस तथाकथित परदेशी दोस्त से कहा-


भाई लॉकडाउन चल रहा है


मेरे पैसे तो वापस कर दो


पैसे लिए 3 साल होने को है


ब्याज समेत 60 हजार रुपए हो रहे हैं


उसने कहा-


ब्याज नहीं दूंगा क्या कर लोगे


मैंने कहा-


भाई इन दिनों पैसों की तंगी है यार


मेरे मूलधन का 30 हजार रुपए ही लौटा दो


उसने आगे जो कहा-


मैं सुनकर हैरान रह गया


उसने कहा-


कब दिए थे तुमने मुझे 30 हजार रुपए


क्या सबूत है तुम्हारे पास




अबे बेवकूफ़...


मैं तेरे जैसे आदमी को 7 बार बेच दूंगा


और ये पता भी नहीं चलेगा


कि तुझे बेचा किसने है


और खरीदा किसने है...


मैंने कहा- ऐसा मत करो यार


पाप का भागीदार मत बनो भाई


दोस्त का पैसा खाओगे तो नर्क में जाओगे


उन्होंने आगे कहा- अबे सुन न...


पाप-पुण्य हमें मत सीखा


स्वर्ग-नर्क हमें मत बता


ये सब हमने ही बनाया है


तुम जैसे C के लिए


मैंने अब गुस्से में जोर देकर उससे पूछा


मेरे माथे पे C लिखा है क्या


उसने कहा G लिखा है




मैंने आग बबूला होकर फिर पूछा


अबे कमीने


तू ये बात


मेरे माथे पे C लिखा है क्या


उसने कहा हाँ लिखा है


C भी लिखा है और G भी लिखा है


CG दोनों साथ-साथ लिखा है


उसने मुझे झल्लाकर कहा


और चिल्लाकर कहा-


तुम छत्तीसगढ़ से हो तो


CG का मतलब


समझ ही गए होगे...


उसके बाद


मैं उस दिन ख़ामोश हो गया


और आज तक उसके कहे शब्दों का


मायने तलाश रहा हूँ...

....................................................

दूसरी किश्त 

.............................................


अगर उसे लगता है कि

छत्तीसगढ़ C का गढ़ है

तो उसे बहुत जल्दी अफ़सोस होने वाला है

क्योंकि मैं अब...

क्रूरता की हदें लांघने की तैयारी कर चुका हूँ

मेरे माथे पर C नहीं लिखा है

ये बताने वाला हूँ

मेरे माथे पर CG भी नहीं लिखा

ये समझाने वाला हूँ

उस तथाकथित परदेशी दोस्त की प्यारी बहन से

मैंने अब फेसबुक पर दोस्ती कर ली है

बात धीरे-धीरे आगे भी बढ़ चुकी है

और बहुत जल्द ही मैं

60 हजार रुपए से भी ज्यादा वसूल करने वाला हूँ

सभी सरकारी फटीचरों को भी शिक्षक दिवस की बधाई

 आज शिक्षक दिवस के विशेष मौके पर

गुरुजी को मेरा दंडवत प्रणाम

जिन्होंने सिखाया मुझे ककहरा

उन गुरुजनों को भी साष्टांग प्रणाम

जिन्होंने सिखाया मुझे

जीवन का सबक गहरा

उन्हें भी प्रणाम जो मेरे मास्टर रहे

और कुछ नहीं सिखाया

क्लास में केवल बकलोल बने रहे

बकलोल मास्टरों को भी प्रणाम

उन शिक्षकों को भी सादर प्रणाम

जिन्होंने मुझे खूब रटना सिखाया

जो जीवन में कभी काम नहीं आया

उन महाज्ञानी गुरुजनों को ज्यादा प्रणाम

जो लगाव रखते थे छात्राओं से कुछ ज्यादा ही

यहाँ तक की उनके पीठ में हाथ फेरते थे बड़े प्यार से


और छात्रों के पीठ पर सख्त हाथ फेरते थे

साफ़ कहूँ तो केवल कूटते और पिटते थे

कुल मिलाकर सभी कलयुगी गुरुजनों को

मेरा कोटि-कोटि प्रणाम

सभी विद्यार्थियों को खूब पढ़ाएं, खूब रटाएं

आदमी कम रट्टू तोता ज्यादा बनाएं

इस क्रूर सिस्टम में

आप बड़ी मुश्किल से

सरकारी शिक्षक बने हैं

तनख्वाह लें और चद्दर तानकर सो जाएं

आप जैसा चाहें वैसा ही अपनी भूमिका निभाएं

अब बताने को ज्यादा क्या बताऊँ

प्राइवेट टीचरों की भी अनंत कथाएं

कुल मिलाकर कहूँ तो

मेरे जीवन के हिस्से के

सभी सरकारी फटीचरों को


और सभी प्राइवेट टीचरों को

सबको मेरा सादर प्रणाम

सबको शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं

ऐसा शिक्षातंत्र साला फूटी आंख सुहाता ही नहीं

ऐसा शिक्षातंत्र साला फूटी आंख सुहाता ही नहीं

शिक्षक पढ़ाते नहीं बच्चे को कुछ आता ही नहीं


कुछ मुहिम छेड़ो यारों इसमें पूरा बदलाव करो

ये घटिया एजुकेशन कमबख्त कुछ सिखाता ही नहीं


रट्टा रट्टा मारकर पढ़ लिया तो नौकरी पाता ही नहीं

नौकरी पा लिया तो नौकरी का स्किल आता ही नहीं


मुझे अफसोस है कि मैंने इतना क्यों पढ़ लिया 

ये रट्टामार की पढ़ाई साला अब भाता ही नहीं


फाड़कर फेंक दिया मैंने उन पूरी किताबों को

अब घटिया किताबों से मेरा कुछ नाता ही नहीं

काश पहले पता चलता तुरंत छोड़ देता पढ़ाई

 बचत के बारे किसी किताब ने बताया ही नहीं

अमीर बनना किसी किताब ने सिखाया ही नहीं


बहुत बेकार है हमारा ये एजुकेशन सिस्टम

इसने जीवन के बारे में कुछ पढ़ाया ही नहीं


काश पहले पता चलता तुरंत छोड़ देता पढ़ाई

इस रट्टामार पढ़ाई ने मुझे कुछ बनाया ही नहीं


इन किताबों से बेहतर की उम्मीद क्या रखूं 

न आगे कुछ मिलेगा न पहले कुछ पाया ही नहीं


मुझमें तो कतई नहीं एजुकेशन सिस्टम में कमी है

इसीलिए मेरे हिस्से कुछ बेहतर कभी आया ही नहीं


- कंचन ज्वाला कुंदन 

अपने बच्चों को अंकों की इस अंधी दौड़ से बाहर निकालिए

साथियों मैं फिर हाजिर हूँ एक वीडियो लेकर.  आज बात करेंगे एक्जाम में अंकों की अंधी दौड़ पर. पहले तो १०वीं-१२वीं के सभी टॉपरों को मेरा सादर प्रणाम. आज मैं खुद को भी खुद ही दंडवत प्रणाम करता हूँ. विद्यार्थी जीवन में मैं भी कभी अंकों की इस अंधी दौड़ में खुद को सबसे आगे पाता था. आज चौतरफा फेल हूँ. मैं किताबें ही रटता रह गया. हर क्षेत्र में गलाकाट प्रतिस्पर्धा है. हर क्षेत्र में क्रूरता है. हर क्षेत्र में कुटिलता है. हर क्षेत्र में नेपोटिज्म है.


रट्टू विद्यार्थी हर क्षेत्र में मेरी तरह टट्टू ही साबित होगा. १०वीं में १०० प्रतिशत अंक पाने वाली मुंगेली की प्रज्ञा कश्यप के प्रज्ञा को, मेधा को, विद्वता को चरण छूकर प्रणाम करता हूँ. प्रज्ञा ने सभी विषयों में १०० में १०० अंक हासिल किया है. १०० फीसदी परीक्षा परिणाम का मतलब जानते हैं आप...? प्रज्ञा जितना गणित में दक्ष है उतना ही उनका हिंदी पर कमांड है. प्रज्ञा जितना विज्ञान जानती है उतना ही उसे कला में भी महारत हासिल है. मैं तो इतना ही कहूँगा अद्भुत..., अद्वितीय... वर्तमान एजुकेशन सिस्टम को पुनः दंडवत प्रणाम. मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या आप समंदर में तैरना, आसमान में उड़ना, जमीन में तेज दौड़ना सभी में एक बराबर महारत हासिल कर सकते हैं. यदि आपका जवाब हाँ है तो आपको भी मेरा सादर प्रणाम.


मैं तो कहता हूँ आप अपने बच्चों को अंकों की इस अंधी दौड़ से बाहर निकालिए. बच्चों का बचपन मत छिनिये. उसे खेलने-कूदने भी दीजिए. उसे स्वस्फूर्त विकास करने दीजिए. बच्चा अपने खोल से, परकोटा से, अंडे से खुद ही बाहर निकल जाएगा. केवल ये कचरा अंक बटोरने से आपका बच्चा जीवन में सफल नहीं होगा. आप अपने बच्चों को वे किताबें लाकर दीजिए जिससे वो अपने जीवन बेहतर बना सके. केवल अंकों की जमापूंजी के लिए रट्टामार किताबों को नगण्य महत्व दीजिए. आजकल एक निहायत ही घटिया ट्रेंडिंग शुरू हो चुका है. पालक अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करने लगे हैं. यदि आपका बच्चा उड़ने में एक्सपर्ट है तो उसे किसी तैरने वाले बच्चे से तुलना करने की क्या जरूरत. आप उड़ने वाली छोटी से गौरेया को पानी में तैरने की ट्रेनिंग देना चाहते हैं. पेड़ पर तेजी से चढ़ने वाले बंदर को आप उड़ना सिखाना चाहते हैं. ये सिद्धांत पूरी तरह निसर्ग के नियम के खिलाफ है. 


वीडियो पसंद आया हो तो लाइक कीजिए, शेयर कीजिए, मेरा उत्साह बढ़ाने मेरे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कीजिए... आप सभी को मेरा सादर यथोचित अभिवादन... आज बस इतना ही... कल फिर मिलेंगे..


आपका अपना ही


कंचन ज्वाला कुंदन 

एक अदना सा बड़ा अपराधी...

 मैं डरता हूँ बुरे परिणाम से 


मैं डरता हूँ बुरे अंजाम से 


बहुत कमजोर हूँ, फट्टू हूँ मैं 


च से चुतिया ट से टट्टू हूँ मैं 


कई भ्रम पाल रखा था मैंने 


अच्छा था तोड़ दिया तुमने 


ये दुनिया वैसा नहीं है 


इसे जैसा मैं सोचता हूँ 


हाँ, ये दुनिया वैसा है 


जैसा तुम सोचती हो...


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बहुत पछतावा है मुझे 


जाने-अनजाने हुए इस गलती का 


भले ही तुमने माफ कर दिया हो मुझे 


मैं इसके लिए खुद को कभी माफ नहीं करूँगा 


अच्छा हुआ आखिर ये बात पता चल गया 


आज मुझे मेरी औकात पता चल गया 


लड़का होने से किसी को बदमाशी का लाइसेंस नहीं मिल जाता 


ये बात हमेशा याद रखना चाहिए, मुझ जैसे उन हर कमीने को...


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हालाँकि ऐसी कोई मंसूबा नहीं थी 


कि तुम्हें जलील किया जाये 


ना ही ऐसा कुछ सोचा था 


कि तुम इतनी खतरनाक हो सकती हो 


एक पल में कोई कैसे तबाह हो जाता है 


ये दूसरा लम्हा था मेरे सामने 


पहला लम्हा तो मैंने खुद चुना था १२ साल पहले


इस दूसरे लम्हे में तुमने जीवनदान दिया है मुझे 


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जब भी कोई फैसला लेता हूँ, बड़ा ही लेता हूँ 


किसी की सोच के परे, फैसला कड़ा ही लेता हूँ 


ये मेरे लिए ऐसा पहला तजुर्बा था 


एक लड़की के आगे रो-रोकर गिड़गिड़ाना पड़ा


शायद जरुरी था ये सिलेबस मेरे लिए 


तहेदिल से शुक्रिया, ये सबक हमेशा याद रखूँगा....


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शुक्रिया, बिना हथकड़ी लगवाये छोड़ा है तुमने 


मैं ये जुर्म हमेशा याद रखूँगा, यही सजा है मेरी 


दूसरों को हँसाने के लिए बहुत बदमाशियाँ करता हूँ 


हद में भी नहीं रहता हूँ कभी मैं 


अब सीखना होगा मुझे हद में रहना 


इस क्रूर दुनिया की यही सच्चाई है...


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हाँ, इतना भी खुला नहीं होना चाहिए मुझे 


कि सबको समझ में आ जाऊं 


अपनी चुतियापा अपने हाथों छुपाना भी जरुरी है 


सिर्फ गलती ही नहीं मुझसे अपराध हुआ है, ये मंजूर है 


बस दर्द इतना ही है, कहीं ये नतीजा मेरी चुतियापे का तो नहीं...


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बहुत अच्छी हो तुम, सबक भी सिखाती हो 


अंत में माफ भी कर देती हो 


लगता है तुमने कइयों का जीवन संवारा है 


फिर से ये भद्दा मजाक करने के लिए माफी चाहता हूँ 


मुझे पता है, तुम फिर मुझे माफ कर दोगी 


ताकि मैं फिर से तुम्हारे साथ कोई और मजाक करूँ 


यही तो तुम्हारी खूबसूरती है, लाजवाब है ये अदा 


हो सकता है तुम अंग्रेजी में एक शिकायत पत्र लिख ही दो 


मगर मुझे इतना यकीन है, तुम किसी की फ्यूचर चौपट नहीं करोगी


मैं चाहता हूँ कि यहाँ तुम वो करो जो करने आई हो 


मैंने जो पाप किया है, मुझे सजा मिल जाएगी...


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इन कविताओं को पढ़कर मुझे कॉल करोगी 


और बड़े प्यार से कहोगी- हद है यार...!


तुम्हारे एक कॉल के इंतजार में...


तुमसे भयंकर रूप से भयभीत...


एक अदना सा बड़ा अपराधी...


और भी कई संगीन अपराध करने के मुड में....


हा...हा...हा...हा...


एक अजनबी... मगर आपका कोई अपना ही...


इस नाचीज को सब कंचन ज्वाला कुंदन कहते हैं....


हा...हा...हा...हा...

बधाई हो आप फेल होने के बाद कुछ बेहतर करने के लिए चुने गए हैं...

 आज १०वीं-१२वीं का परीक्षा परिणाम जारी हुआ. पास हो चुके बच्चे बेहद उत्साहित हैं. फेल हो चुके बच्चे निराशा के गर्त पर जा चुके हैं. रिजल्ट जारी होते ही घर-परिवार, अड़ोसी-पड़ोसी, पड़ोसी के पड़ोसी सब एक ही बात पूछते हैं कितना परसेंट आया. कितने नंबर लाये. अंकों का होड़ कितना खतरनाक होते जा रहा है. आज रिजल्ट जारी होने के हफ्तेभर में ही कई सुसाइड की ख़बरें सामने आएंगी. आप मुझे ये बताओ इन नंबरों का जीवन में क्या काम है. इन नंबरों का जीवन में महत्व क्या है. 


मैं अपने विद्यार्थी जीवन में हर साल टॉप करता रहा. इसके बावजूद आज पर्यंत एक औसत आदमी बना हुआ हूँ. मैंने अंकों के चलते कोई खास सफलता अर्जित नहीं की. एमफिल तक की पढ़ाई के बाद चाट-गुपचुप वाले से भी कम कमाता हूँ. प्रिय विद्यार्थियों आज आप सबको एक ही बात कहना चाहता हूँ. हमारा वर्तमान एजुकेशन सिस्टम अव्वल दर्जे का चुतियापा है. फेल हो चुके किसी भी बच्चे को सुसाइड जैसी बात सोचने की जरूरत नहीं है. एक कागज मात्र परीक्षा परिणाम के लिए घातक कदम उठा लेना मूर्खता है.  


फेल हो चुके मेरे प्यारे विद्यार्थियों मुझे तो बेहद ख़ुशी है कि आप अंकों की दौड़ में फेल हो गए. मुझे तो इस बात की भी ख़ुशी है कि अंकों की अंधी दौड़ में आप बहुतों से पीछे रह गए. आपका नंबर जितना भी कम आया है मुझे उतना ही  ख़ुशी है. क्योंकि मुझे पक्के से यकीन है आप ही इस कचरा दौड़ से बाहर निकलकर कुछ बेहतर करोगे. अंकों की दौड़ में हम जैसे भटक जाने वाले लोग जीवनभर हाथ मलते रह जाएंगे. मुबारक हो कुदरत ने आपको अभी से चेता दिया है कि अंकों की दौड़ से आप बाहर निकल जाओ. मुझे ख़ुशी है आप अंकों की दौड़ से हटकर कुछ बेहतर करने के लिए चुने गए हैं. 


मैं इन दिनों हमेशा सोचता हूँ कि काश किसी कक्षा में मैं भी फेल हो गया होता. सच कहूँ तो मैं किसी कक्षा में फेल होने के बाद शायद जीवन के किसी और क्षेत्र में पास हो जाता. ५वीं, ८वीं, १०वीं, १२वीं, बेचलर ऑफ़ आर्ट, मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म, मास्टर ऑफ़ फिलोसोफी... ये सब कचरा बटोरने में मेरा एक तिहाई जीवन बर्बाद हो गया. आज १०वीं, १२वीं में फेल हो चुके विद्यार्थियों से ये साफ़ तौर पर कहना चाहता हूँ कि कागज के टुकड़े के लिए जिंदगी बर्बाद न करें. कागज के टुकड़े के लिए निराश होने की कोई जरूरत नहीं है. 


आप फेल हो गए हैं तो मिठाई बांटो. अच्छा है इस कचरा सिस्टम से आप बाहर निकल जाओगे. रट्टामार किताबें फाड़ो छोड़ो पढ़ाई. ये केवल अव्वल दर्जे का चुतियापा है भाई. फेल हो चुके निराश बच्चे मुझे तत्काल कॉल करें. मुझे आपसे बातचीत कर गौरव की अनुभूति होगी. आप कुदरत के स्पेशल चाइल्ड हैं. बधाई हो आप फेल होने के बाद कुछ बेहतर करने के लिए चुने गए हैं.  


 


आपका अपना ही


कंचन ज्वाला कुंदन 

इस क्रूर समय में सरलता और सभ्यता का ढोंग चुतियापा है...

 लॉकडाउन, गोबर और गांडू नेतागिरी... सुबह की शुरुआत अश्लील वीडियो से, याद रखें- इस क्रूर समय में सरलता और सभ्यता का ढोंग चुतियापा है... 

साथियों आज एक बार फिर अपनी सुबह की शुरुआत करते हैं एक राहतभरी अश्लील गाली-गलौज से सराबोर वीडियो से. कड़वा सच यही है आप सरल और सभ्य बने रहे तो गांडू बन जाओगे मेरी तरह. साथियों जितना हो सके टेढ़ा बनो. सीधे पेड़ पर सबकी निगाह होती है. जल्दी काट लिए जाओगे. आज का समय सरलता का नहीं क्रूरता का. जो आदमी ईमानदारी, सच्चाई का पाठ पढ़ाना चाहे सबके पहले उसकी ही गांड़ मार दो. मैं भी सरल था. कुछ कुटिल लोगों ने मुझे भी कुटिल और कड़वा बनने पर मजबूर कर दिया है. जानते हो मेरी सबसे बड़ी गलती क्या है. मेरी सबसे बड़ी गलती है इस गांडू देश में पैदा होना. इस गांडू देश में जात-पात के नाम पर झगड़े हैं. यहाँ लोग कम केकड़ा ज्यादा रहते हैं. जंगलराज है भोसड़ी का यहाँ. नेताओं के नाम पर जानवरों की फ़ौज है संसदों में. और मैं क्या हूँ बताऊँ. मैं हूँ गांडू देश का गांडू आदमी.