गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

मॉर्निंग में मोबाइल बिल्कुल हाथ नहीं लगाना है

बिस्तर छोड़ते ही साथियों टहलने जाना है
सुबह-सुबह की सैर से सेहत बनाना है

तुम गांठ बांध लो एक बात बहुत अच्छे से
मॉर्निंग में मोबाइल बिल्कुल हाथ नहीं लगाना है

तन-मन-धन-जीवन चार भाग में बांटकर
चौबीस घंटे के चार पल भी व्यर्थ नहीं गवाना है

जरूर जिएं उसे जो जीवन का हिस्सा है
ये याद रखना लक्ष्य पर गंभीरता दिखाना है

ढुलमुल रवैये से तो काम नहीं चलेगा
अगर तुम्हें ऊँचे शिखर तक जाना है

-कंचन ज्वाला कुंदन 

जिसे भरोसा नहीं खुद पर वही शख्स फेल है

घुंटने लगे अंदर ही ख्वाब तो जिंदगी जेल है
ख्वाब हकीकत में बदले तो जिंदगी रेल है

मैं तुमसे नहीं मिलता तुम मुझसे नहीं मिलते
हम दोनों की अधिकतर आदतें बेमेल है

मैं जो कर नहीं पाया वही उसने कर दिया
ये जानलो कि सब कुछ दिमाग का खेल है

सक्सेस-फेलियर के सफ़र में ही मजा है
फर्क न करो बाजी हेड है या टेल है

आगाज करो अंजाम के लिए हो जाओगे पास
जिसे भरोसा नहीं खुद पर वही शख्स फेल है

-कंचन ज्वाला कुंदन 

हुनर बेचकर ही कोई काम मिलेगा

क्या करोगे पढ़ाई के बाद
अपनी स्किल को बेचोगे
अपने समय को बेचोगे

तुम्हारा जो स्किल होगा
वो दाम मिलेगा

हुनर बेचकर ही
कोई काम मिलेगा

फिर क्यों नहीं सुधारते तुम अभी से
अपनी स्किल को

फिर क्यों नहीं बढ़ाते हो अभी से
अपने समय का मूल्य

-कंचन ज्वाला कुंदन

डूब चाहो चाहे नदी में कूद जाओ चाहे आग में

दरिद्रता है दिमाग में
और अमीरी है ख्वाब में

नहीं मिलेगी कामयाबी कभी

डूब चाहो चाहे नदी में
कूद जाओ चाहे आग में

मुझे बस इतना ही कहना था
तुम्हारे सवाल के जवाब में

जो दिमाग में हो वो ख्वाब में हो
जो ख्वाब में हो वो दिमाग में हो

तभी मिलेगी सफलता

मैंने यही पढ़ा है साथियों
दर्जनों किताब में

मुझे बस इतना ही कहना था
तुम्हारे सवाल के जवाब में

-कंचन ज्वाला कुंदन



मुझे नहीं पता था लक्ष्य के बारे में

कभी उड़ गया धुआं  में
कभी गिर गया कुआँ में
कभी मन को बहला लिया
दो टके के गुब्बारे में
मन में जो आया करता रहा
सालों तक भटकता रहा
फिर लौट आया हूँ अब
मैं अपने ही धारे में
मुझे नहीं पता था
लक्ष्य के बारे में
वो कब से खड़ा ही था
मेरे किनारे में

-कंचन ज्वाला कुंदन 

एक मार्कशीट के लिए...

तुम साल भर तक उलझे हो
इन किताबों में
सिर्फ एक मार्कशीट के लिए
मैं जानता हूँ ये बात भी
आखिर में तुम्हें बेरोजगार ही भटकना है
आज के इस बकवास शिक्षातंत्र से
मेरा पहला सवाल...
पढ़ने का अंतिम लक्ष्य
यदि आजीविका है
तो बताओ मुझे
मैं पढ़ना चाहता हूँ
कौन-सी किताब में
रोजगार का पाठ है
और कौन-सी रोजगार की किताब है
जिसका यथार्थ से संबंध है
जिसका धरातल से सरोकार है
मेरा दूसरा सवाल...
यदि इन किताबों  का मकसद
हमें विद्वान बनाना है
तो मैं मिलना चाहता हूँ उस शख्स से
जो इन किताबों को पढ़कर ही विद्वान बन गया हो

- कंचन ज्वाला कुंदन 

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

चावल-दाल की भाषण से पक चुकी थी जनता

चावल-दाल की भाषण से पक चुकी थी जनता
एक ही बटन पर ऊँगली दबाते थक चुकी थी जनता

नकचढ़ी सरकार को धूल चटाना बहुत जरूरी था
बदलाव के लिए बुलंद इरादा रख चुकी थी जनता

बहुत अफसोस हुआ होगा सरकारी संपादकों को
हमने अखबारों के प्री-डिसाइडेड समाचार ही बदल दी


अखबार के आड़ में भड़वागीरी बंद करो तुम
लो आखिर हमने अब सरकार ही बदल दी

- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

मक्कारी भी हुनर है इस जमाने में

चार चांद लग जाती है चालाकी से
मक्कारी भी हुनर है इस जमाने में

स्वार्थ सिद्ध हो तो कदम बढ़ाना आगे
मतलब जरूरी है कहीं भी जाने में


टेढ़ापन वाला सरलता भी अपना लो
इस कठिन जीवन के अफ़साने में

किसी को गड्ढे में गिराकर लगाओ ठहाके
खूब मजे भी लूटो किसी को फँसाने में

- कंचन ज्वाला कुंदन 

शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

वहां से जो साँस लेकर लौटा हूँ, कसम से अंतिम सांसों तक याद रहेगा...

चुनाव का टाइम 
दफ्तर में रोज के पचड़े 
राहत की साँस लेने 
कल शाम को 
नया रायपुर जा रहा था 
वहां से जो साँस लेकर लौटा हूँ 
कसम से अंतिम सांसों तक याद रहेगा 
एक प्रेमी जोड़ा रास्ते में ही 
शुरू हो गए थे 
ये प्रेमी जोड़ा समलिंगी थे 
दोनों ही लड़कियां थीं 
अचानक एक झुरमुट के रास्ते से गुजरना हुआ 
देखा कि दोनों प्रेमालाप में मग्न थे 
एक-दूसरे का चुंबन कर रहे थे 
और भी वो सब क्रियाकलाप 
जो-जो आपने भी अपने जीवन में किया है 
मगर विपरीत लिंगी के साथ 
मैं बाइक से थोड़ी दूर जाकर 
इस नज़ारे को देखने फिर लौटा 
दोनों को कोई फर्क नहीं पड़ा 
मेरे मन के कोने में बैठा हुआ चोर 
सोच रहा था कि 
वो दोनों मुझे इशारे से बुला लें 
मैं दोनों का प्यास बूझा सकता हूँ 
मगर विषय उनके चुनाव का था 
वे समलिंगी थे 
इसलिए दोनों ने एक-दूसरे को चुना था 
मेरे कदम ठिठक रहे थे 
उसका दूसरा कारण भी था 
शादी की वजह से मैं रजिस्टर्ड हो चुका हूँ 
मैंने सोचा इस प्रेमी जोड़े को सम्मान से 
प्रेम करने दिया जाये 
एकबारगी ये भी लगा कि 
एक पत्रकार के नाते 
इन दोनों का पर्सनल इंटरव्यू ले लूँ क्या 
मगर इतने उन्मुक्त प्रेमी जोड़े 
कि मेरी हिम्मत ही नहीं हुई 
ऐसे इंटरव्यू के लिए मेरी कोई तैयारी भी तो नहीं थी 
दिमाग में ये भी आया कि 
कहीं ये दोनों मिलकर 
मेरा ही इंटरव्यू ना ले लें 
मैं सोचा इस संकट में फँसने से अच्छा
जीवन भर के लिए 
एक उन्मुक्त जीवन का अनुभव लेकर 
वापस लौटना ही बेहतर है  
दफ्तर के उलझन को जरा सा सुलझाने के लिए निकला था 
पूरे रास्ते एक नया उलझन लेकर लौटा हूँ 
समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आज 
बार-बार दिल से सम्मान कर रहा था, सलाम कर रहा था 
मैं दो समलिंगियों का मिलन 
ऑनलाइन तो दर्जनों बार देख चुका हूँ 
कुछ लोग सैकड़ों बार भी देख चुके होंगे 
मगर ऑफ़लाइन देखने-समझने का 
मेरा ये पहला अनुभव था 
और शायद आखिरी भी 
इसलिए मैंने सोचा ये बात सभी से साझा कर दूँ 
मैं समझ चुका था 
सारा मामला हमारी चाहत-जरुरत 
और चुनाव का है 
खैर...
माहौल चुनाव का है 
अब चुनने की बारी आपकी है...

- कंचन ज्वाला कुंदन 

गुरुवार, 15 नवंबर 2018

मैं जानना चाहता हूँ आपसे ही...

फेसबुक में 5 हजार फ्रेंड 
जल्दी-जल्दी पूरा करो भाई 
बाद में करते रहना फिर 
छंटाई पर छंटाई 
पहले तो कुआँ खोदो 
फिर खोदते रहना खाई  
व्हाट्सएप में भी 
पूरे दिन-पूरी रात 
देते रहो रिप्लाई पर रिप्लाई  
मतलब तो साफ़ है 
मोबाइल का मालिक नहीं हूँ मैं 
गुलाम बन चुका हूँ इस कमबख्त का 
लाइक और कमेंट का 
लगाते रहता हूँ हिसाब 
उसने दिया है मुझे तो 
मैं भी देते रहता हूँ जवाब 
बहुत हो गया...
मैं निकलना चाहता हूँ 
इस कुचक्र से बाहर 
कोई रास्ता हो तो बताना जरूर 
मैं जानना चाहता हूँ आपसे ही...

- कंचन ज्वाला कुंदन 

बुधवार, 14 नवंबर 2018

अब आप ही बताएं मुझे किसे वोट देना चाहिए...

परसों रात
पड़ोसी के घर के छत से
मेरे घर के छत पर 
कांग्रेस पार्टी के
कुछ लौंडे आये थे
सिंटेक्स के ऊपर
एक बड़ा-सा
अपनी पार्टी का
चुनावी झंडा फहरा के चले गए
ठण्ड के दिनों में
धूप में नहाने के लिए
मेरे घर के छत पर
नल की एक टोटी लगी है
रोज की तरह
जब सुबह मैं छत पहुंचा
गुनगुनी धूप में
नहाने के लिए
कांग्रेस के उस बड़े-से झंडे ने
मेरे हिस्से का
आधी धूप ढँक लिया था
मैंने खुद से
समझौता कर लिया
आधी धूप में ही
बदन सेंक लिया
गुनगुनी धूप की
आधी मजा में नहाकर
बस्तर की हालात जैसे
दफ्तर चला गया
फिर बीते कल रात ही
पड़ोसी के घर के छत से
मेरे घर के छत पर
बीजेपी के कुछ बंदर आये थे
उन लोगों ने भी...
उसी सिंटेक्स के ऊपर
जहाँ से मुझे
आधी धूप नसीब हो रही थी
उसमें कांग्रेस पार्टी से भी बड़ा
विजय पताका फहरा दिया   
रोज की तरह जब
सुबह मैं फिर से छत पहुंचा
पूरा सूरज ढँक चुका था
मेरे हिस्से का पूरा धूप गायब था
अब आप ही बताएं
मुझे किसे वोट देना चाहिए...

कंचन ज्वाला कुंदन    

रविवार, 11 नवंबर 2018

तो डूब मरना चाहिए हमें चुल्लू भर पानी में...

आज के समय में
सबसे बड़ा लुटेरा है व्हाट्सएप
ये रोज लूट रहा है
हम सबका कीमती वक्त
सबसे बड़ा डकैत है फेसबुक
ये रोज डाका डाल रहा है
हमारे कीमती समय पर
कोई थाना है क्या...?
जहाँ मैं इसका रिपोर्ट लिखा सकूँ
कोई अदालत है क्या...?
जहाँ इस केस पर सुनवाई हो
फेसबुक और व्हाट्सएप
वाकई कुसूरवार हो तो
लटका दो दोनों को
एक ही रस्सी से फांसी पर
और...
यदि हम ही गुनहगार हैं
तो डूब मरना चाहिए हमें
चुल्लू भर पानी में...

- कंचन ज्वाला कुंदन 

ये जाकर कह दो तुम्हारे रब को वो जोड़ी ना बनाये

ये जाकर कह दो तुम्हारे रब को वो जोड़ी ना बनाये
उसे कुछ बनाने का इतना ही शौक है तो रोटी बनाये

उसके सर्वशक्तिमान होने की बात बिल्कुल लफ्फाजियां है
अगर वो इतना ही शक्तिशाली है तो भुखमरी मिटाये

वो सब कुछ कर सकता है ये बात भी बकवास है
ये काम चुनौती है उसके लिए वो गरीबी हटाये

कल तेज हवा में उड़ गया है आँगन से मेरा कच्छा
तेरा भगवान इतना सच्चा है तो मेरा कच्छा दिलाये

मुझे कर्म पर यकीं है मैं किसी ईश्वर को नहीं जानता
अगर वो है कहीं तो अपने अस्तित्व का सबूत दिखाये

यदि वो वाकई इतना ही महान है इस जहाँ में 'कुंदन'
तो शोषण करने वाले इन अमीरों को उनकी औकात बताये 

- कंचन ज्वाला कुंदन
   

मैंने तय कर लिया है त्याग पत्र दे दूंगा नौकरी से

मैंने तय कर लिया है त्याग पत्र दे दूंगा नौकरी से
केवल मेरी जिंदगी चल रही है इस चाकरी से

मुझे कुछ बड़ा करना है जिंदगी का अंधेरा मिटाने
वो अब तक दूर क्यों है मैं खुद जाकर पूछूंगा रौशनी से

- कंचन ज्वाला कुंदन

मैं अच्छी तरह से जानता हूँ उस कमीने दल्ले चप्पू को

खून-पसीने एक करा लो फूटी कौड़ी ना दो अप्पू को 

मैं अच्छी तरह से जानता हूँ उस कमीने दल्ले चप्पू को



बद्दुआ है जब भी मरे वो किसी बड़ी बीमारी से 

सैकड़ों शख्स की हाय लगे हरामखोर टकले टप्पू को



एक-दूसरे को मोहरा बनाना फितरत है हरामी की 

सच्चे बनकर गच्चे देना यही भाता है उस गप्पू को



नेताओं के तलुवे चाटकर जगह-जगह जमीन दबाना 

कारनामों का कला आता है उस कलूटे कप्पू को



मुझे मेरे दर्द का हिसाब चाहिए, कोई उसे बता दे 

कुंडली मारकर बैठने वाले उस सपोले सप्पू को



-कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

चलो निकलो तुम भी अमीरी के सफ़र पर

कब तक चलते रहोगे गरीबी के डगर पर
चलो निकलो तुम भी अमीरी के सफ़र पर

अमीरी कोई हौव्वा नहीं जो हासिल नहीं होगा
अमीरी ही रखो तुम हर पल नजर पर

अमीर से पूछो वो अमीर कैसे बना
किस्मत पर नहीं कर्म के असर पर

कठिन राह पर निकलो तो भरोसा रखो
खुदा पर नहीं खुद के जिगर पर

पैसा कमाना भी एक कला है 'कुंदन'
निर्भर है ये अपने-अपने हुनर पर

- कंचन ज्वाला कुंदन 

रविवार, 4 नवंबर 2018

टॉयलेट वाले कितने हैं और लोटा वाले कितने हैं

मेरी पत्नी बोली-
ये जी...!
मैं किसे वोट दूंगी
मैंने कहा-
तुम्हारा वोट
तुम जानो
वो आगे बोली-
मैं किसी को नहीं दूंगी वोट
मैंने कहा-
वोट देने जरूर जाना
भले ही बटन नोटा में दबाना
तभी तो पता चलेगा
हमारे लोकतंत्र में आखिर
नोटा वाले कितने हैं
साथ ही यह भी पता चल जाएगा
टॉयलेट वाले कितने हैं
और लोटा वाले कितने हैं 

- कंचन ज्वाला कुंदन 

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

आओ दिमाग का दीया जलाएँ


           01
इस बार ऐसा दिवाली मनाएँ
आओ दिमाग का दीया जलाएँ

सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन से
एक कदम आगे बढ़ जाएँ

फोड़ना नहीं पटाखा एक भी
बत्ती बुझाकर सो जाएँ 

         02

व्यापारियों ने रचा दिवाली है
अपना जेब तो खाली है

इसे इसी तरह मनाने का
बताओ आदत किसने डाली है

पटाखा फोड़ने का रिवाज
सच कहूँ तो जाली है

          03

बिना कोई पटाखा फोड़े
दिवाली क्यों अधूरा होगा

क्या पटाखा फोड़ने से ही
तुम्हारा दिवाली पूरा होगा

इस कुचक्र को नहीं समझे
तो बहुत बुरा होगा 

- कंचन ज्वाला कुंदन 

सोमवार, 29 अक्टूबर 2018

जरा भी कम लगा दम तो हारना पड़ेगा

जीत के लिए तो जान भी वारना पड़ेगा
जरा भी कम लगा दम तो हारना पड़ेगा
-कंचन ज्वाला कुंदन

जिसमें लगन लग जाये उसमें पूरा खून निचोड़ दो

बेमन के काम से सफलता के झूठे भ्रम तोड़ दो
जिसमें तुम्हारा मन ही न लगे वो काम छोड़ दो

क्या तुम नहीं जानते सफलता का मूलमंत्र यही है
जिसमें लगन लग जाये उसमें पूरा खून निचोड़ दो

-कंचन ज्वाला कुंदन

बाहर बदलना है तो पहले अंदर ही बदलाव करें

लक्ष्य के काबिल है जरूरी हम अपना स्वभाव करें
बाहर बदलना है तो पहले अंदर ही बदलाव करें

ये सोच लो जो बनना है वो बन चुके हो अभी से
चलो आज से वैसा ही हम अपना हाव-भाव करें

सफलता में जो बाधा है बहा दें उन विचारों को
लक्ष्य के खातिर जो मुकम्मल उन विचारों का जमाव करें

चलने से पहले सोच लें भले ही सौ बार मगर
फिर अपने बढ़ते कदम को हरगिज नहीं ठहराव करें

बुरी आदतों पर जरूरी है कोई सर्जिकल स्ट्राइक
समय-समय पर आगजनी घड़ी-घड़ी पथराव करें

- कंचन ज्वाला कुंदन

उतार फेंको ये खुद्दारी तुम भी गद्दार बनो

जो जैसा है उसके लिए वैसा ही किरदार बनो
कभी जरूरत पड़े तो गुरेज नहीं मक्कार बनो

कोई शहरी बाबू तुम्हें गधा बनाके न निकल ले
अरे! कम से कम इतना तो होशियार बनो

बेईमानों का बोलबाला है इस बस्ती में
मैं बिल्कुल नहीं चाहता तुम ईमानदार बनो

संवेदना-सहानुभूति शब्दकोष में ही अच्छे हैं
तुम आदमी के भेष में हथियार बनो

मेरे तजुर्बा से तुम्हें एक सलाह है 'कुंदन'
उतार फेंको ये खुद्दारी तुम भी गद्दार बनो 

- कंचन ज्वाला कुंदन 

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

चिथड़ेपन की सादगी

ये चमक-दमक
ये चकाचौंध
हमारे लिए नहीं है

ये तड़क-भड़क
ये चमक चाँदनी
हमारे लिए नहीं है

हमारे लिए बनी है
चिथड़ेपन की सादगी

हमारे लिए बनी है
ख़ामोशी की जिंदगी 

-कंचन ज्वाला कुंदन

बीमार था मैं

हर बुखार उतर गया
पैसे के कारण

जाने किस-किस चीज का
बुखार था मुझे

जाने किस-किस चीज के लिए
बीमार था मैं

-कंचन ज्वाला कुंदन

17/07/013

चुकाना होगा सौ आँसू देकर

चाँदनी है सब
चार दिनों की
दिखावा है
फरेब है
मैं जानता हूँ मुझे
ये खुशियाँ देने की कोई योजना नहीं
बल्कि खून के आँसू रूलाने की साजिश है
अंततः वही होगा
मुझे एक हँसी की कीमत
चुकाना होगा सौ आँसू देकर

-कंचन ज्वाला कुंदन 

माँ-बाबूजी क्या करते हैं?

माँ-बाबूजी क्या करते हैं?
इस सवाल का सामना
बार-बार हो जाता है
मैं हर जगह जवाब
अलग-अलग देता हूँ
क्योंकि मैं खुद असमंजस में हूँ
कि आखिर पिताजी क्या करते हैं
सवाल के वक्त
जवाब चाहे मैंने
कुछ भी दिया हो
मगर इस सवाल का
जेहन में जवाब
बस एक ही गूंजता है
पिताजी क्या करते हैं
दारू पीते हैं जुआ खेलते हैं
माँ को मारते हैं माँ को पीटते हैं
माँ क्या करती है...?
नौकरानी-सी काम करती है
जुल्म सहती है
30/07/013

जीने का मोह है ना मरने का डर है

जीने का मोह है ना मरने का डर है
प्रदूषित समाज है प्रदूषित शहर है

शहर ने बख्शी है जिंदगी भीख की तरह
पूरा शहर चिल्लाता है जिंदगी कहर है

पानी भी यहाँ कहाँ मिलता है साफ-सुथरा
पानी भी विषाक्त है धीमा जहर है

अब लगने लगा है लोगों को वो गांव में ही ठीक था
अरे कहाँ आ गए सब ये कैसा शहर है

कोल्हू की बैल की तरह घूम रहे हैं लोग सारे 
जिन्हें खबर ही नहीं क्या दिन-रात क्या दोपहर है

शुद्ध हवा तक बचा नहीं जीने के वास्ते
जितना भी साँस लो सबका सब जहर है

वाहनों की धूल चिमनियों की धुआं
इसीलिए चिलचिलाती लू की लहर है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

रोते हुए हँसने का हुनर रखते हैं

रोते हुए हँसने का हुनर रखते हैं
दर्द में भी जीने का जिगर रखते हैं

मरीज ठीक हो जाये बिना दवा के
दुआ में इतना हम असर रखते हैं

जैसा जो बिता बीत गया कल
आने वाले कल पे नजर रखते हैं

हम क्या हैं हम जानते हैं हुजुर
तुम भी क्या चीज हो खबर रखते हैं

मंजिल पाने की हमें जिद है और यकीं भी
इसीलिए दिल में इतना सबर रखते हैं

- कंचन ज्वाला कुंदन 

सोमवार, 22 अक्टूबर 2018

लड़ो आदमियों अब जात के लिए

मुद्दा नहीं रहा अब बात के लिए
लड़ो आदमियों अब जात के लिए

शांति ढंग का आंदोलन बहुत हो चुका
आगे बढ़ो अब घुसा-लात के लिए

रुपयों के चक्कर में मारामारी दिन गुजरा
रहने दो आदमियों जरा कुछ रात के लिए

फल-फूल, डाल-तना सबके लिए झगड़ा
झगड़ा-दर-झगड़ा हर पात के लिए

दोष किसका है किसे दोगे कुंदन
जैसे-तैसे आज के हालात के लिए

-कंचन ज्वाला कुंदन 

शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

हथियार बनना चाहता हूँ मैं

कड़वा हूँ मैं, कांटा भी हूँ
अंगार बनना चाहता हूँ मैं 
तुम भी चाहो तो इस्तेमाल कर लो मेरा 
हथियार बनना चाहता हूँ मैं 

नहीं बनना मुझे 
केजरीवाल जैसा ईमानदार 
नहीं करना मुझे 
अन्ना जैसा आंदोलन 
मैं मोदी की तरह 
भाषण में ही ठीक लगता हूँ 
किसी प्लेसमेंट कंपनी से 
नीयतखोर चौकीदार बनना चाहता हूँ मैं  
मैं इस धरती का बोझ ही सही 
और अधिक भार बनना चाहता हूँ मैं  

-कंचन ज्वाला कुंदन 

बनना चाहता हूँ नायाब


लिखना चाहता हूँ बहुत
पढ़ना चाहता हूँ किताब 

होना चाहता हूँ कामयाब 
बनना चाहता हूँ नायाब 

-कंचन ज्वाला कुंदन 

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018

आओ ऐसे बादल बनें

आओ ऐसे बादल बनें

बिना किसी स्वार्थ के ऐसी उपकार
हमने कभी देखे नहीं
ना शायद कभी सुने हैं
धूप से तप्त पर्वतों को
दावाग्नि से पीड़ित वनों को
जो शीतल दे खुश होते हैं
आओ ऐसे बादल बनें
नदी नालों को
खेत खलिहानों को
जलमग्न कर
भूमंडल को जैवमंडल को
हरियाली दे
जो बरस-बरस कर खाली हो जाये
पर बरसना ना छोड़े
ऐसे उपकारी बादल बनें
आओ ऐसे बादल बनें

- कंचन ज्वाला कुंदन 

प्यार, प्रेरक और परिवार, तीनों की तलाश

प्यार, प्रेरक और परिवार, तीनों की तलाश
जो सुकून दे, शांति दे
बिन मांगे
जो शीतल दे जाये
मुझे तलाश है
ऐसे चाँद की

राह में रौशनी बिखेरे
मुझे राह दिखाये
मुझे तलाश है
ऐसे सूरज की

जो बिन गरजे बरसे
खुशियाँ बरसाये
मुझे तलाश है
ऐसे बादल की

-कंचन ज्वाला कुंदन 

किस भूमिका में लूटी वाहवाही

चल राही चल

समय ने हमें पुत्र-पौत्र-बंधुभाई
पिता-पितामह-गुरुभाई
ना जाने क्या-क्या कहा है
पर सोचें प्रक्रति के इस नाटक में
अपनी भूमिका कैसा रहा है
किस भूमिका को हमने खरा पाया
किस भूमिका को हमने ठीक निभाया
किस भूमिका में हमने चूक की
किस भूमिका में हमने भूल की
किस भूमिका को पूरा किया
किस भूमिका को अधूरा किया
आज सोचें और बोलेन
अपना मुंह खोलें
किस भूमिका में पाई सम्मान
किस भूमिका में खाई अपमान
समय आ गया चलने का
महरूम कुछ बातों से खलने का
पड़ाव अंतिम है सत्य कहो राही
किस भूमिका में लूटी वाहवाही

-कंचन ज्वाला कुंदन 

कहाँ बढ़ रहा निरर्थक

आज के भारतीय युवा
केश राशि बिखरा हुआ
चेहरा क्रीम से निखरा हुआ
जींस-टाउजर से जकड़ा हुआ
मोबाइल हाथ में पकड़ा हुआ
टीशर्ट शॉर्ट कट
पारदर्शी भी बट
पश्चिमी सभ्यता से संलिप्त
फूहड़ फैशन से ओत-प्रोत
ऐ देश के आधार स्तंभ
छोड़ दे मद छोड़ दे दंभ
ऐ वीरव्रत आर्य संतान
तू हिंद का स्वाभिमान
तू राष्ट्र की रीढ़
मेरे देश की धड़कन
ऐ क्रांति के समर्थक
कहाँ बढ़ रहा निरर्थक

-कंचन ज्वाला कुंदन 

आओ एकांत में बातें करें

एकांत वरदान है हमारे लिए
आओ एकांत में बातें करें

ये खुदा का एहसान है हमारे लिए
आओ एकांत में बातें करें

ये समय महान है हमारे लिए
आओ एकांत में बातें करें

-कंचन ज्वाला कुंदन 

अंदर अमीरी का नूर करो

बढ़ने से रोके जो
आदत वो दूर करो

किस बात की चिंता तुम्हें
चिंता चकनाचूर करो

तुम किसी से कम नहीं
खुद पे खूब गुरुर करो

अँधेरा गरीबी का आप ही मिटेगी
अंदर अमीरी का नूर करो

- कंचन ज्वाला कुंदन 

आओ खुद से बातें करें

कल की चिंता कल पे छोड़ें
आओ खुद से बातें करें

रूख मंजिल की तरफ ही मोड़ें
आओ खुद से बातें करें

अपने मन की गांठें तोड़ें
आओ खुद से बातें करें

टूटे दिल को फिर से जोड़ें
आओ खुद से बातें करें

- कंचन ज्वाला कुंदन 

धीरे-धीरे-हौले-हौले जीवन गढ़ो

साहस रखो
आगे बढ़ो

ऊपर देखो
ऊपर चढ़ो

आप देखो अपना ही
चेहरा पढ़ो

धीरे-धीरे-हौले-हौले
जीवन गढ़ो

- कंचन ज्वाला कुंदन 

खाओ-पीओ और मर जाओ क्या इसलिए आये हैं

उड़ेलकर अमृत को
विष लिए आये हैं

खाओ-पीओ और मर जाओ
क्या इसलिए आये हैं

फिर कहो दुनिया में हम
किसलिए आये हैं

- कंचन ज्वाला कुंदन 

वासना का दलदल क्यों उसकी स्वीकृति है

इंसान तो खुदा की
अनमोल कृति है

जहर से भरा फिर
क्यों आकृति है

पाप की पूंज क्यों
उसकी स्मृति है

जानवर सरीखा क्यों
उसकी प्रकृति है

वासना का दलदल क्यों
उसकी स्वीकृति है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

भीड़ और भेड़ चाल

भीड़ और भेड़ चाल कतई पसंद नहीं मुझे
मैं अकेले ही चलता हूँ किसी कारवां की तरह...

सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

कुछ कथनी है कुछ करनी है अंदर-बाहर अंतर है

बाहर क्यों भटकते हो
सारा चीज तो अंदर है

अपने अंदर जाकर खोजो
दुनिया मस्त कलंदर है

बेवजह यूँ तिकड़मबाजी
मन का क्यों पटंतर है

कुछ कथनी है कुछ करनी है
अंदर-बाहर अंतर है

हम ही हम को समझ ना पाये
चंचल मन तो बंदर है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

आज का देखो भ्रांतिराम

क्रोध में ही पलता है
क्रोध लेके चलता है
आज का देखो शांतिराम

बूझा-बूझा लटका-लटका
उतरा-उतरा चेहरा है
आज का देखो कांतिराम

गाँधी का है अनुगामी
चंद्र बोस का फिर भी नामी
आज का देखो भ्रांतिराम

शांति दूत है खूनी शातिर
खून-खराबा जिसके खातिर
आज का देखो क्रांतिराम

- कंचन ज्वाला कुंदन 

जिसने सबकी लुटिया डुबाया

क्रोध ने मेरा घर ढहाया
क्रोध ने मेरा घर बहाया

घर-आँगन की दूरियां बढ़ गई
क्रोध ने ऐसा जाल बिछाया

मैंने दिल अपनों का तोड़ा
क्रोध ने कितने बार फँसाया

क्रोध अचूक हथियार है कुंदन
जिसने सबकी लुटिया डुबाया

- कंचन ज्वाला  कुंदन 

आदमी अकेला है उलझन की ढेर में

शाम को सुकून नहीं
शांति नहीं सबेर में

आया तो आया होश
आया बहुत देर में

आदमी अकेला है
उलझन की ढेर में

फँस चुका है जाल में
रिश्तों की फेर में

कुंदन तुम देखते रहो
बैठे हुए मुंडेर में

- कंचन ज्वाला कुंदन 

आओ दिल की बातें करें

गले मिलें दुश्मनी भुलाएँ
आओ दिल की बातें करें

गम भूलें खुशियाँ मनाएं
आओ दिल की बातें करें

चलो चलें हम फूल खिलाएं
आओ दिल की बातें करें

- कंचन ज्वाला कुंदन 

उत्साह जिसका प्रबल है

वह हमेशा ऊपर है
सिद्धांत जिसका अटल है

वह हमेशा आगे है
उत्साह जिसका प्रबल है

वह हमेशा ऊँचा है
मन जिसका सबल है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

आओ दृढ़ निश्चय करो

राह के काँटों से
क्यों भला तुम भय करो

कैसे पार होओगे उससे
देखो तुरंत निर्णय करो

रुक-रुक कर राहों में तुम
यूँ ना साहस क्षय करो

मंजिल तुम्हारी राह देख रही
आगे बढ़ो विजय करो

एक ही तो काम है यारों
आओ दृढ़ निश्चय करो

- कंचन ज्वाला कुंदन  

गौर करो जो तुमने किया वायदा यहाँ क्या है

खुद पे विश्वास से
ज्यादा यहाँ क्या है

सोचो कि सबसे बड़ा
फायदा यहाँ क्या है

नीति-नियम तुम्हारे अपने
कायदा यहाँ क्या है

गौर करो जो तुमने किया
वायदा यहाँ क्या है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

हे मनुष्य! तुम अपने आपको कब जानोगे...?

हे मनुष्य! तुम अपने आपको
कब जानोगे...?

अंदर छुपी हुई आत्मशक्ति को
कब पहचानोगे...?

तुम जन्म से महान हो इस बात को
कब मानोगे...?

- कंचन ज्वाला कुंदन 

कामयाबी की खीर कब बाँटोगे...?

बुराई का गर्त
कब पाटोगे...?

सफलता का शर्त
कब छांटोगे...?

जेहन की जंजीर
कब काटोगे...?

कामयाबी की खीर
कब बाँटोगे...?

- कंचन ज्वाला कुंदन 

मन से मिन्नत करो कि मन मगन हो जाये

अपना ये जुनून यारों
अगन हो जाये

मन से मिन्नत करो कि
मन मगन हो जाये

और काम करो ऐसा कि
लगन हो जाये

- कंचन ज्वाला कुंदन 

सारी शक्तियां लक्ष्य में निचोड़ दो

सारी शक्तियां लक्ष्य में
निचोड़ दो

अंदर जो भी क्षमता है
झिंझोड़ दो

राहों के फरेब सारे
तोड़ दो

कमियां एक किनारा करो
छोड़ दो

वह चलके इधर आये, उसकी दिशा कि
मोड़ दो

मंजिल से ऐसा रिश्ता कि
जोड़ दो

- कंचन ज्वाला कुंदन 

आसमां में नाम अपना लिखा दो

मन को हुनर
सिखा दो

एक जगह उसे
टिका दो

फिर तुम क्या हो
दिखा दो

आसमां में नाम अपना
लिखा दो

- कंचन ज्वाला कुंदन

मन क्यों दुखी मन से पूछो निराशा समझो

अपने मन की
भाषा समझो

है क्या उसकी
अभिलाषा समझो

मन की हमसे उम्मीद क्या हिया
आशा समझो

मन क्यों दुखी मन से पूछो
निराशा समझो

- कंचन ज्वाला कुंदन

फिर कहो भाग्य कैसे संवर पाएगी

मन की शक्तियां अगर
बिखर जाएगी

फिर कहो भाग्य कैसे
संवर पाएगी

बिना तराशे तक़दीर कैसे
निखर जाएगी

और कहो कि किस्मत कैसे
शिखर पाएगी

- कंचन ज्वाला कुंदन 

इस तरह ऐ दोस्त अगर हार जाओगे

इस तरह ऐ दोस्त अगर
हार जाओगे

आगे का सफ़र कैसे
पार पाओगे

पतझड़ से जब तक नहीं
मार खाओगे

फिर कहो कैसे कि
बहार लाओगे

- कंचन ज्वाला कुंदन 

कुंदन यूँ कब तक भला दोपाया रहेगा

सफलता में कब तक
साया रहेगा

बदली यूँ कब तक
छाया रहेगा

कुंदन यूँ कब तक भला
दोपाया रहेगा

-कंचन ज्वाला कुंदन 

ऐसा क्यों स्वभाव है

हम गरीब हैं
अभाव है

और तो ये कुछ भी नहीं
मन का केवल भाव है

खुद को तुम दोषी कहते
ऐसा क्यों स्वभाव है

आत्मविश्वास और आत्मशक्ति का
आखिर क्यों नहीं प्रभाव है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

और अच्छी तरह जान लो स्वत्व क्या है...?

तुम ही सोचो तुम्हारा कि
महत्व क्या है...?

तुम ही कहो तुम्हारे अंदर
तत्व क्या है...?

और अच्छी तरह जान लो
स्वत्व क्या है...?

- कंचन ज्वाला कुंदन  

खून के हर बूंद को

हौसला करो हासिल और
लक्ष्य का हरण करो

जुनून करो शामिल और
मंजिल का वरण करो

खून के हर बूंद को
कामयाबी के शरण करो

- कंचन ज्वाला कुंदन 

रविवार, 14 अक्टूबर 2018

इतना तो रहम करो मुझे जिला दो

देखो मैं बेचैन हूँ
मंजिल से मुझे मिला दो
यदि वह किसी पेड़ पर है
गिराने को उसे हिला दो
दिल मेरा चाहता है कि
जल्दी मुझे दिला दो
यदि वह पानी में घुला हिया
लाओ वह पानी मुझे पिला दो
यदि मंजिल जहर में मिले
जरा भी गम नहीं पिला दो
उसके बिना वैसे भी मरा हुआ हूँ
इतना तो रहम करो मुझे जिला दो 
-कंचन ज्वाला कुंदन 

सवाल अपने आप से...

सवाल अपने आप से...

क्या हम मंजिल तक
जा सकेंगे...?

क्या हम अपने लक्ष्य को
पा सकेंगे...?

क्या हम खुद से किये हुए वादे
निभा सकेंगे...?

क्या हम अपना असली स्वरुप
दिखा सकेंगे...?

क्या हम अपनी सोई हुई शक्ति को
जगा सकेंगे...?

-कंचन ज्वाला कुंदन 

करना कठिन पर करके देखें आओ ऐसा यार करें

हम कैसा व्यवहार करें
आओ जरा विचार करें

गम में डूबकर खुशियाँ बांटें
आओ ऐसा आचार करें

ईर्ष्या-नफरत अपने खाते
हम दूसरों को प्यार करें

करना कठिन पर करके देखें
आओ ऐसा यार करें

- कंचन ज्वाला कुंदन 

सफल कैसे होओगे चिंतन करो

सफल कैसे होओगे
चिंतन करो

धनी कैसे बनोगे
मंथन करो

कामयाबी के लिए खुदा का
वंदन करो

- कंचन ज्वाला कुंदन 

देखो कि अंदर क्या पल रहा है

सोचो कि अंदर
क्या चल रहा है

देखो कि अंदर
क्या पल रहा है

बताओ कि अंदर
क्या गल रहा है

जानो कि अंदर
क्या जल रहा है

मानो कि अंदर
क्या ढल रहा है -

- कंचन ज्वाला कुंदन 

तुम जो सोचोगे

तुम जो सोचोगे
करोगे...
तुम जो करोगे
बनोगे...
अगर आग में कूदोगे
मरोगे...

पहले अपना परिचय करें

मन की शक्तियों का
संचय करें

लक्ष्य अवश्य पूरा होगा
निश्चय करें

एक ही शर्त है, पहले अपना
परिचय करें

- कंचन ज्वाला कुंदन 

बुराईयों का विग्रह हो

हे प्रभो! मुझ पर
आपकी अनुग्रह हो

चंचल मेरे मन की
निग्रह हो

अच्छाईयों का संधि हो
बुराईयों का विग्रह हो
 
-कंचन ज्वाला कुंदन 

धीरे-धीरे चलते जाओ

दिल में आगे बढ़ने की
आग लगाओ
मन उलझन में
ना डुबाओ
तुम्हें राह में रोके जो
दिवार गिराओ
बैठे रहने से अच्छा है
धीरे-धीरे चलते जाओ
- कंचन ज्वाला कुंदन 

बस इतना ही फिक्र करें

सफलता हाथ लगेगी यारों
काम करें बेफिक्र करें

जुनून जलती रहे जरुर
जरुरी नहीं कि जिक्र करें

नजर हटे ना मंजिल से कि
बस इतना ही फिक्र करें

- कंचन ज्वाला कुंदन 

बचपन बीत जाती है

बचपन बीत जाती है
माँ की गोद में
जवानी बीत जाती है
बीवी की बांहों में
और बुढ़ापा सिमट जाता है
टूटे हुए खाट तक
जिंदगी की इस रोटी का
तीन टुकड़े का विधान है
ये हम पर ही निर्भर है
हम कौन सा टुकड़ा छोटा करें
ये हम पर ही निर्भर है
हम कौन सा टुकड़ा बड़ा करें
मगर बाँटने का अधिकार हमें
केवल तीन टुकड़ों का मिला है

-कंचन ज्वाला कुंदन 

धीरे-धीरे...

मेरे सपने
होंगे अपने
धीरे-धीरे...

मेरे ख्वाब
होंगे नायाब
धीरे-धीरे...

हर एक अरमान
पायेगा पहचान
धीरे-धीरे...

- कंचन ज्वाला कुंदन 

प्रतिकूल परिस्थिति नापती है स्थिति

प्रतिकूल परिस्थिति
नापती है स्थिति

जो पार हो ना पाये
वो होते वहां इति

चलती कब से आ रही
यहीं एक रीति

बढ़ने वाले गगन चुमते
सबसे सुंदर नीति

-कंचन ज्वाला कुंदन 

हे प्रभो! इसे पूरा कर होने से पहले दमन

इच्छाएं उबलती है मेरे मन में
ईश्वर को मेरा नमन

क्यों करूँ उपेक्षा उनकी
इसे क्यों करूँ शमन

हे प्रभो! इसे पूरा कर
होने से पहले दमन

-कंचन ज्वाला कुंदन 

मौत से क्या मतलब अगर जिंदगी गढ़ रहे हो

नीचे क्यों देखना
अगर ऊपर चढ़ रहे हो

पीछे क्यों देखना
अगर आगे बढ़ रहे हो

मौत से क्या मतलब
अगर जिंदगी गढ़ रहे हो

- कंचन ज्वाला कुंदन 

अब तुम कहो तुम्हारी कि आगाज क्या है

हुए जो सफल उनसे पूछो
राज क्या है

वो केवल इतना जानते थे
आज क्या है

वो अपने दिल की सुनते थे
आवाज क्या है

अब तुम कहो तुम्हारी कि
आगाज क्या है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

भाग्य भी आएगा अपने पैर चलकर

अवसर भी आएगा
रूप बदलकर

भाग्य भी आएगा
अपने पैर चलकर

तुम हमेशा तैयार रहना
कमर कसकर

वरना वो निकल जायेगा
नजदीक से ही बचकर

- कंचन ज्वाला कुंदन 

अगर तेरी मानसिकता ही बेंड है

जीवन भर का अपना साथी
टेन फिंगर्स टू हेंड है
सफलता की सच्चाई दोस्त
सोच पर डिपेंड है
तेरा कुछ भी नहीं होगा कालिया यहाँ
अगर तेरी मानसिकता ही बेंड है 

अंजाम दो

अपने नाम को नया फिर
नाम दो
दुनिया भूल ना पाये कि
काम दो
बढ़ते हुए कदम को कभी ना
विराम दो
अपनी शक्ति को सार्थक
आयाम दो
क्या करना है ठान लो
अंजाम दो 

आओ पड़ोसी का अर्थ खोजें

शब्दकोष में
पड़ोसी का अर्थ बदलना पड़ेगा
सार्थक कोई अर्थ
खोजना पड़ेगा
क्योंकि
पूरा का पूरा
अब ढांचा बदल चुका है
पड़ोसी रहने का
और
पड़ोसी होने का
आओ पड़ोसी का अर्थ खोजें
आओ पड़ोसी का अर्थ तलाशें

-कंचन ज्वाला कुंदन 

हसरत तो और भी हरी हो रही है

हसरत तो और भी हरी हो रही है
ख्वाब तो और भी खरी हो रही है

आहिस्ता-आहिस्ता अरमान बढ़ रहा है
रातों की सपने रसभरी हो रही है

चौखट में उपेक्षा सा पड़ा हुआ पायदान
जाने किस मकसद से दरी हो रही है

ख्वाहिश उड़ चले हैं, आसमां को ने
पंख आ रहा है, परी हो रही है

कुंदन अब कभी भी कैद नहीं होगा
जिंदगी बाइज्जत बरी हो रही है

-कंचन ज्वाला कुंदन 

जिंदगी किताब है- पढ़ते चलो

जिंदगी किताब है- पढ़ते चलो

फूल भी आयेंगे
कांटे भी आयेंगे
जिंदगी की हार में
जड़ते चलो
जिंदगी किताब है
पढ़ते चलो

दुश्मनों से ज्यादा
दोस्तों से तुम
जिंदगी जंग है
लड़ते चलो
जिंदगी किताब है
पढ़ते चलो

टूटते-बिखरते
उठते-गिरते
जिंदगी के रास्ते
गढ़ते चलो
जिंदगी किताब है
पढ़ते चलो

उनके चरणों में अर्पित मेरी माँ को समर्पित


पुस्तक का प्रथम पृष्ठ

मेरे खून का हर कतरा मेरी स्याही की हर बूंद
उनके चरणों में अर्पित मेरी माँ को समर्पित

सर्वस्व मेरा जीवन कविता के हर पन्ने
उनके चरणों में अर्पित मेरी माँ को समर्पित

मेरी हरेक कोशिश मेरी हरेक रचना
उनके चरणों में अर्पित मेरी माँ को समर्पित

- कंचन ज्वाला कुंदन 

जिंदगी एक चिड़ी जैसा ही है

जिंदगी तो कब से ऐसा ही है
पर्यायवाची नाम पैसा ही है

तुम भी देख रहे हो हम भी देख रहे हैं
जैसा का तैसा वैसा ही है

तुम्हें भी गम है हमें भी गम है
जिंदगी की बात ऐसा ही है

जाने कब फंस जाये बहेलिये की जाल में
जिंदगी एक चिड़ी जैसा ही है

अपना-अपना देख लो जीने का ढंग
हमें क्या कहोगे कैसा भी है

-कंचन ज्वाला कुंदन 

बन जाने दो जरा हमें कल का दबंग

पारित प्रस्ताव है कैसे करें भंग
जिंदगी की मौत से समझौते का ढंग

तुम कैसे अलग करोगे हम अलग कैसे करेंगे
जिंदगी में शामिल है मौत का ही रंग

तुम बीच में ना पड़ो उसे चलने ही दो
जिंदगी जांबाज का मौत से है जंग

तुम नाम का विजय पताका फहरा दो
मौत से विजय कर दुनिया करो दंग

कुछ करने चले हैं यहाँ हम भी कुंदन
बन जाने दो जरा हमें कल का दबंग

- कंचन ज्वाला कुंदन 

आदमी के भेष में घुमते रहे भेड़िये जो उनके सर इंसानियत का ताज आया

ऐसा कहाँ हुआ कोई फितरत से बाज आया
आदमी के हर काम में कोई ना कोई राज आया

आदमी में बदलाव बनता गया नासूर होता गया काफूर
मगर उसमें बदलाव ना कल आया ना आज आया

आदमी के भेष में घुमते रहे भेड़िये जो
उनके सर इंसानियत का ताज आया

आधुनिकता की दौड़ में जब खाई तक लोग पहुंचे
उन्हें लौट जाने का क्योंकर आवाज आया

यहाँ आदमी अद्भुत है और समाज बहुत सुंदर
नक्काशी के नक़्शे पे कुंदन को नाज आया

- कंचन ज्वाला कुंदन 

कुंदन का सफ़र आसमान से है

ना खौफ खुदा से ना भय भगवान से है
दिल डर गया बहुत इंसान से है

धरम का धंधा फल-फूल रहा है
मंदिर-मस्जिद भी दुकान से है

उठाकर फेंक दो कभी यहाँ-कभी वहां
पत्थर दिल आदमी सामान से है

हर मुआमले में कर लो मुआयना
दुनिया में वतन ना हिंदुस्तान से है

नाउम्मीदी है मगर मंजिल मिल जाएगी
कुंदन का सफ़र आसमान से है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

जाने किस क्रम में कुंदन का नाम आये

असल में जिंदगानी वही जो औरों के काम आये
कुछ ऐसा करो दोस्तों सितारों के बीच नाम आये

जिंदगी का बस अर्थ इतना चलते चलो बढ़ते चलो
आंधी आये तूफान आये बाधाएं तमाम आये

मंजिल का धून लिए दिल में जुनून लिए
तुम कदम ना मोड़ना अगर कोई आयाम आये

महफ़िल तो सदा ही सजी रहेगी जमी रहेगी
अभी और सुनो गीत-गजल, दुष्यंत गए खय्याम आये

आज बज्म में आये हैं नए-नए फनकार
जाने किस क्रम में कुंदन का नाम आये

- कंचन ज्वाला कुंदन 

नाम मगर नेस्तनाबूद नहीं होता

आदमी खोखला बम है जिसमें बारूद नहीं होता
आदमी हरदम आम है क्यों अमरुद नहीं होता

करना पड़ता है काम लिखना पढ़ता है नाम
इतिहास के पन्ने यूँ खुद नहीं होता

मिली जिंदगी मूलधन है यहाँ ब्याज भी चुकाओगे
कौन कहता है दिए रकम का सूद नहीं होता

लोग खुले हाथ आते हैं और खुले हाथ जाते हैं
नाम मगर नेस्तनाबूद नहीं होता

टूटे खंडहर सा धूल के बवंडर सा दिखता ये जहाँ कुंदन
अगर दुनिया में प्यार का वजूद नहीं होता

- कंचन ज्वाला कुंदन 

तुम मर जाओ तुम्हारा अंजाम यही है

तुम मर जाओ तुम्हारा अंजाम यही है
अगर दिल में कोई इंतकाम नहीं है

हरेक की जिंदगी किसी मौत का बदला है
ये जन्म जो मिला है इनाम नहीं है

एहसास रखो सर पे नफरत रखो दिल में
ये दुनिया दुलराने का नाम नहीं है

त्रेता में सीताहरण द्वापर में चीरहरण
कलियुग के आचरण में राम नहीं है

कुंदन जीवन झोंक दो बीज-बीज रोप दो
क्या मिलेगा क्या फलेगा ये सोचना तेरा काम नहीं है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

जुबां जो खोलो वो सवाल कर दो

कमर जो टेढ़ी है सीधी नाल कर दो
हाथ उठाओ ऊपर मशाल धर दो

फिर निकल जाओ जिधर निकलना है तुम्हें
लोग वाह-वाह कहें ऐसा कमाल कर दो

हर एक कदम एक चिराग बनके उभरे
ऐसा ही दोस्तों कुछ धमाल कर दो

लोगों का सरेराह सिर चकरा जाये
जुबां जो खोलो वो सवाल कर दो

नेताओं के नियत पे कुंदन को क्रोध है
गाहें-बगाहें कोई बवाल कर दो

-कंचन ज्वाला कुंदन 

गुल गुलशन में गुलजार होगी जिस तरह

गुल गुलशन में गुलजार होगी जिस तरह
दर्दे-गम में गजल बहार होगी उस तरह

मुये का सनम से प्यार होगी जिस तरह
उये अंदाज में इनकार होगी उस तरह

जीत में जश्ने बहार होगी जिस तरह
हार में हस्रे सरोकार होगी उस तरह

दिल का खुशियों में दरकार होगी जिस तरह
ग़मों का सामना भी साकार होगी उस तरह

तेज धूप सर पे सवार होगी जिस तरह
उतना ही छांव तलबगार होगी उस तरह

रात यदि डर का गुबार होगी जिस तरह
दिन मसीहा सा मददगार होगी उस तरह

-कंचन ज्वाला कुंदन 

बच्चों को लुभाने वाला जिंदगी झुनझुना नहीं

अभी आपने क्या कहा मैंने कुछ सुना नहीं

क्योंकर कि आखिर तुमने मंजिल अब तक चुना नहीं

जीने का कोई जल्दी से मकसद तलाशो

बच्चों को लुभाने वाला जिंदगी झुनझुना नहीं


तुम तय करो तुरंत ही लक्ष्य जिंदगी का

ये तमुरे की तार का तुनतुना नहीं


ग्राफ बनाओ दोस्त तुम्हें कहाँ तक चढ़ना है

अफ़सोस है कि क्यों तुमने सपने कुछ बुना नहीं


उड़ते रहो कुंदन अभी आना ना जमीं पे

जब तक कि आसमां को हाथ से छूना नहीं

- कंचन ज्वाला कुंदन 

शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

पागलों की फ़ौज में...

दुनिया में मशहूर कौन...?
सब पागल और जिद्दी हैं
बाकी सब तो चौसर के
छोटे-छोटे पिद्दी हैं

नाम लिखाओ आप भी
पागलों की फ़ौज में...
जुट जाओ जो करना है फिर
अपनी-अपनी मौज में...

- कंचन ज्वाला कुंदन 

मंगलवार, 25 सितंबर 2018

लोगों को कडुवा सच भाता ही नहीं


मुझे मीठा झूठ बोलना आता ही नहीं
लोगों को कडुवा सच भाता ही नहीं
जब मैंने ख़ामोशी की लिबास ओढ़ ली
अब चाहने पर भी कुछ बोल पाता ही नहीं

- कंचन ज्वाला कुंदन 

अब गिरते समय गहराई क्या देखूं...

मैंने चढ़ते समय ऊंचाई नहीं देखा
अब गिरते समय गहराई क्या देखूं
देख लिया जितना देखना था तेरा हुस्न
बेवफाई के बाद अब तेरी परछाई क्या देखूं

- कंचन ज्वाला कुंदन

चाहूँ तो दिवाली में पटाखे भी जला लूँ, चाहूँ तो ईद में गले भी लगा लूँ...

हर पल कोशिश रहती है मेरी
अपने आपको कुछ बदल पाऊं
मगर ये हरगिज़ मुझे मंजूर नहीं
किसी सांचे में ढल जाऊं
न किसी मजहब का मुझे लेबल चाहिए
न छुपने के लिए कोई टेबल चाहिए
जहाँ किसी जाति का कोई परकोटा न हो
जहाँ कोई बड़ा कोई छोटा न हो
मैं चाहता हूँ उस रास्ते निकल जाऊं
हर पल कोशिश रहती है मेरी
अपने आपको कुछ बदल पाऊं
मगर ये हरगिज़ मुझे मंजूर नहीं
किसी सांचे में ढल जाऊं
चाहूँ तो दिवाली में पटाखे भी जला लूँ
चाहूँ तो ईद में गले भी लगा लूँ
चाहूं तो मंदिर में घंटी भी बजा लूँ
चाहूं तो मजार में चादर भी चढ़ा लूँ
जहाँ आडंबर में औंधे मुंह गिरुं
मैं चाहता हूँ वहां संभल जाऊं
हर पल कोशिश रहती है मेरी
अपने आपको कुछ बदल पाऊं
मगर ये हरगिज़ मुझे मंजूर नहीं
किसी सांचे में ढल जाऊं

- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 23 सितंबर 2018

मुक्तक...

मुक्तक - 01
पुरानी मोहब्बत का कसक सीने में उठेगा
उसकी याद का अंकुर जब दिल में फूटेगा
हकीकत ख़तम अब सिर्फ एक एहसास है बाकी
ये मालूम होगा तुझको जब तेरा ये नींद टूटेगा

मुक्तक - 02
जिसकी तारीफ करता था हुआ क्या उस कहानी का
लगता है जिस्म ही निकली एहसास रूहानी का
आंसू बहा चुपके से करले याद भी मंजूर
मगर चर्चा नहीं करना कभी किस्सा पुरानी का

मुक्तक - 03
ये चाहता हूँ मैं चला जाऊं कहीं वन को
फिर क्यों ठिठक जाता हूँ रोककर मन को
हासिल नहीं होना यहाँ कुछ भी आखिर तो
मैं कर रहा बर्बाद क्यों अपने जीवन को

- कंचन ज्वाला कुंदन

अंधे हो जाओ फिर दिखाई दो

मैं तो इतना ही चाहता हूँ
अपनी असफलता का
मत कभी सफाई दो
अंधे हो जाओ फिर दिखाई दो
बहरे हो जाओ फिर सुनाई दो

- कंचन ज्वाला कुंदन 

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

हम तो 'झंडुबाम'

अप्रैल फूल की शुभकामनाएं

हम रोज मूर्ख बन जाते हैं
या रोज मूर्ख बनाते हैं
पूरे-पूरे साल भर
हम अप्रैल फूल मनाते हैं

आज सब्जी वाले ने तौला सौ ग्राम कम
हमें रत्ती भर भी नहीं इस बात का गम

कल पुलिस वाले ने कहा-
आपके माथे पर C लिखा है क्या
हमने कहा-लिखा होगा साहब!
आज देखे नहीं थे आईना
हमसे हो गई भूल

परसों अखबार के विज्ञापन ने
बनाया था अप्रैल फूल
तब भी हमने खुद को कहा-
डोंट माइंड....बेटा! कूल

टीवी में नेताजी का हम भाषण सुन रहे थे
वो भी झोंक रहे थे सबके आँखों में धूल

तभी दन्न से साला बिजली हो गया गूल
उसने भी कह दिया हैप्पी अप्रैल फूल

चुनावी सीजन में हमने
कई पार्टी से लिया था नोट
और नोटा दबाके आ गए
किसी को नहीं दिया वोट
तेरे मन में खोट तो मेरे मन में खोट
तुमने पहुँचाया चोट तो हमने भी दिया चोट

सौ आने सच है, नहीं जरा भी झूठ
शिक्षा तंत्र में पालकों से रोज-रोज की लूट

खाली हो गया जेब, पूरा नहीं हुआ इलाज
मेरी बूढ़ी माँ का डॉक्टर ने, डिस्चार्च कर दिया आज

चोरी का रिपोर्ट भी अब तो
नहीं लिखता थानेदार
हम भी अप्रैल फूल
और अप्रैल फूल सरकार

रोज लगाकर सोते हैं
हम तो 'झंडुबाम'
लोकतंत्र के डकैत से
साला जीना हो गया हराम

-कंचन ज्वाला 'कुंदन'
  97525-97297

हम सब मूर्खों को एक दूसरे की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं।।।हम ऐसे ही दिन दूनी, रात चौगुनी फलें- 'फूलें' और आगे बढ़ें।।।

कुंदन के कांटे : अंजुली भर समय...

कुंदन के कांटे
अनावश्यक Facebook और WhatsApp की दुनिया में घुसे पड़े लोग जो बाहर निकलना चाहते हैं वे नीचे लिखी मेरी कविता और लेख जरूर पढ़ लें...हालांकि यह मेरा भ्रम है, इससे बाहर न आप निकल सकते हैं और न मैं... हम दोनों की कुछ दिक्कतें हैं, कुछ मजबूरियां हैं, और कुछ अपनी-अपनी वजह भी.. Facebook और Whatsapp जैसी डिजिटल प्लेटफॉर्म आने के बाद बेरोजगारी पूरी तरह से मिट चुकी है। हम सबको काम मिल चुका है। हर हाथ को काम मिल चुका है। लगे रहो इंडिया Facebook और WhatsApp पर...तो मन लगाकर मेरी लेख और कविता भी पढ़ लीजिए...


मन में उधेड़बुन चल रहा है आज। कुछ कहना चाहता हूं किसी से। मगर किससे कहूं अपनी बात। अपनी धर्म पत्नी से। क्या वह मेरा उधेड़बुन सुलझा देगी। धर्म पत्नियां पतियों की बात सुलझाने वाली होतीं तो यह दुनिया इतना उलझा हुआ नहीं होता। कुछ उधेड़बुन के बीच मन को हल्का करने जेब से मोबाइल निकाला और Facebook खोल लिया। कुछ विद्वानों ने कहा है कि किताब सबसे अच्छा मित्र होता है। आजकल लोगों के लिए Facebook से अच्छा किताब कुछ हो भी नहीं सकता है। लोग 8-8 ,10-10 घंटे Facebook में बिताते हैं। Facebook किसी मर्डर मिस्ट्री उपन्यास की तरह लत देने वाली किताब से कम नहीं है।

Facebook खोला ही था कि मेरी उधेड़बुन ही छूमंतर हो गई
। देखा कि आज एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन अनजान महिला मित्रों का फ्रेंड रिक्वेस्ट आया है। मैं Facebook खोला बेमन से था। चाहता था 2 मिनट बाद बंद कर दूंगा। मगर अब डूबने लगा था। डुबकियां भी मारने लगा था। मैं आपको बता दूं कि घंटे 2 घंटे में Facebook और WhatsApp खोल कर देख लिया करता हूं। इसका क्या कारण हो सकता है यह अभी तक फिलहाल मुझे मालूम नहीं हो सका है। मालूम हो जाए तो जरुर बताऊंगा। आपको पहले मालूम चले तो आप मुझे Facebook पर पहले बताइएगा। एक मां अपने बच्चों की डाइपर चेक करती है बीच बीच में कहीं बच्चा पेशाब तो नहीं किया। कोई मां हगिस चेक करती है कहीं बच्चे ने पोट्टी तो नहीं कर दी। शायद कुछ ऐसा ही मैं भी बीच-बीच में अपना हगिस जैसा WhatsApp और डाइपर जैसा Facebook को चेक करते रहता हूं बिल्कुल किसी मां- बाप की तरह। मेरे दो अनमोल रतन Facebook और WhatsApp ही तो हैं।

रिक्वेस्ट आए महिला मित्रों को तुरंत कंफर्म किया। मित्र बनाया। इन्हें मित्र बनाने के 2 वजह थे। पहला वजह सनी लियोनी मेरा बेस्ट एक्ट्रेस है। दूसरी वजह अपने Facebook अकाउंट पर मित्रों की सूची को 5000 तक जल्दी-जल्दी पहुंचाना चाहता हूं। हालांकि मेरा पहला वजह बहुत बेतुका लग सकता है। मगर इसके पीछे भी कई कहानी है। जिसे और कभी शेयर करूंगा। मैंने महिला मित्रों का प्रोफाइल चेक किया। उनकी अच्छी-अच्छी तस्वीरों से खूब आंख सेंका। आंखों में चमक आ गई। कुछ लोगों का तो इस Facebook में आंख सेंकने की वजह से ही आंखों की रौशनी बढ़ चुकी है।चश्मा का नंबर भी उतर चुका है कुछ लोगों का। हालांकि बहुतों का इस Facebook की वजह से ही लगातार चश्मा का नंबर भी बढ़ रहा है। मेरी आँखों का नंबर घट रहा है या बढ़ रहा है। यह मैं ठीक से नहीं बता पाऊंगा। यह तो डॉक्टर ही ज्यादा बेहतर बता पाएंगे। हां आप भी अपना आंख चेक जरुर करवा लेना कभी जब इस Facebook से थोड़ी फुर्सत मिल जाए तो...

मैंने आज मेरी छुट्टी Facebook और WhatsApp के साथ बिता दी। कई दोस्तों से ऑनलाइन चैट कर लिया। एक और बात बता दूं सैकड़ों दोस्त मेरे टच मोबाइल के टच में है पर मेरे टच में एक भी दोस्त नहीं है। मेरे पड़ोस में मेरा एक दोस्त है जिसके साथ आज छुट्टी के दिन घूमने जाना चाहता था। मगर अफसोस इस Facebook में ही उसके पोस्ट पर मजाक से मजाकिया कमेंट कर दिया तो वह भी पिछले हफ्ते से नाराज चल रहा है।

Facebook पर डूबा ही था कि एक लिंक दिखा जिसमें लिखा था इतिहास में आपका जुड़वां कौन है। मैंने क्लिक किया तो पता चला कि इतिहास में मेरा जुड़वा नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं। Facebook ने बताया कि बोस जी से मेरा शक्ल मिलता-जुलता है। खुशफहमी के लिए यह बात जरा अच्छा लगा। एक और लिंक नजर आया जो कह रहा था कि मुझे क्लिक करो तुम्हारा कुछ मिनट और बर्बाद करो। मैं तुम्हें बताऊंगा कि तुम्हारा चेहरा रामायण के किस पात्र के जैसा है। क्लिक करने पर उसने बताया कि मैं साक्षात राम जैसा दिखता हूं । हमारे सभी अपने और अपनेपन डिजिटल हो चुके हैं। किसी के पास किसी की प्रशंसा करने वक्त नहीं है। इसकी प्रतिपूर्ति के लिए यह सब लिंक हमारी चाटुकारिता करता है। चाटुकारिता से याद आया मैं पत्रकार भी हूँ। वैसे चाटुकारिता शब्द से पत्रकारिता की दुनिया मुझे क्यों याद आया यह कह पाना कठिन है। कहीं अब दोनों शब्द पर्यायवाची तो नहीं हो गए हैं??? यह सवाल अमिताभ बच्चन के कौन बनेगा करोड़पति में पूछे जाने लायक अब हो चुका है। अब फेसबुक से बोर होकर व्हाट्सएप्प खोल चुका था। इसमें भी भारी ज्ञान बरसने लगा था। मैं सब ज्ञान को समेट भी नहीं पा रहा था। और इस तरह अधकचरे कूड़े ज्ञान के बीच पुनः 2 घंटे का सार्थक सदुपयोग कर लिया। बस मित्रों आज इतना ही...लगे रहो इंडिया Facebook पर, WhatsApp पर....

Facebook और WhatsApp के ज्ञानबाजी से जरा बोर हो गया था इसलिए इसके खिलाफ में कुछ लिख दिया। इस घटिया आदमी के आनन-फानन में लिखी घटिया लेख के लिए कमेंट पर दो चार सभ्य गाली जरुर दे देना। वक्त बर्बाद करने के लिए यदि 1 मिनट और बचा हो तो मेरी यह कविता जरुर पढ़ लेना...

अंजुली भर समय...

बारिश की बूंदों को
अंजुली में सहेज कर
पी सकते हैं
मगर नाली में गिरे पानी से
नहीं धो सकते पैर भी
बारिश की बूंदों की तरह
समय बरस रहा है 24 घंटे हम पर
मगर बर्बाद हो रहा है नाली में बहकर
Facebook में फिसलकर
WhatsApp में पिघलकर
जाने कहां-कहां बिखरकर
अंजुली भर तो...
सहेज लो समय साथियों
अंजुली भर समय...
आपका जीवन बदल सकता है
अंजुली भर समय...
आपका जीवन बदल सकता है       

-कंचन ज्वाला कुंदन

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

सारा सिस्टम लूल है, यही तो ट्रैफिक रूल है...

सारा सिस्टम लूल है, यही तो ट्रैफिक रूल है

मेरे घर से निकलते ही
दस कदम दूरी पर
रिंग रोड में
एक चौराहा पड़ता है
वहां अक्सर ड्यूटी बजाने वाले
किसी ट्रैफिक पुलिस से
मेरी जान पहचान है
वह निहायत ईमानदार है
और बहुत पढ़ा-लिखा भी
आप बिना हेलमेट के
गंवईहिया हुलिया में
कभी मेरे चौराहे से गुजरिए
आपको वह मात्र सौ रुपए लेकर
अपनी ईमानदारी का सबूत देगा
और उनके बातचीत करने के
शऊर से वह, कसम से
पीएचडी धारी लगता है
वह कितना प्यार से समझाता है
हेलमेट का गुण गिनाता है
हाँ, ये बात अलग है
वह खुद हेलमेट नहीं लगाता है
और वहां का ट्रैफिक साइन
जैसे पीकर सरकारी वाइन
अक्सर मदमस्त जलता है
साला, अपने हिसाब से चलता है
कुल मिलाकर........
सारा सिस्टम लूल है
यही तो ट्रैफिक रूल है
ट्रैफिक में.....
कभी पुलिस गलत
कभी चालान फर्जी
ट्रैफिक में......
कभी मेरी मनमानी
कभी उसकी मर्जी
ट्रैफिक में.....
आप सारा कागजात लेकर निकले हैं
ये आपकी भूल है
ट्रैफिक में.......
जुर्माना वसूली एक कानून है
अपना एक वसूल है
भले ही सारा सिस्टम लूल है
पर यही तो ट्रैफिक रूल है

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

डॉक्टर ने कर दिया अधूरा ही डिस्चार्ज...

सवा आने सच है नहीं जरा भी झूठ
शिक्षा जगत में पालकों से रोज-रोज की लूट
मेरी बूढ़ी मां का पूरा हुआ नहीं इलाज
डॉक्टर ने कर दिया अधूरा ही डिस्चार्ज
रिपोर्ट भी लिखते नहीं अब तो थानेदार
हम भी अप्रैल फूल और अप्रैल फूल सरकार
सोते हैं हम तो अब लगाकर झंडू बाम
लोकतंत्र के डकैत से साला जीना हो गया हराम
- कंचन ज्वाला कुंदन 

बुधवार, 19 सितंबर 2018

क्यों मेरा मंदिर है, क्यों तेरा मस्जिद है...

अलग क्यों दिवाली है, अलग क्यों ईद है
क्यों मेरा मंदिर है, क्यों तेरा मस्जिद है
गीता-कुरान की लड़ाई का
कई खंडहर चश्मदीद है
कुल मिलाकर देखो तो इंसान ही मर रहे
लड़ने की जिद छोडो तो शांति की उम्मीद है
कोई तो लगा है हमें उकसाने में, फंसाने में
मेरा खून लाल तुम्हारा खून हरा बताने में
इंसानियत से नाता जोड़ो
अंधे धरम का कुचक्र तोड़ो
अगर तुम्हारे अंदर यह हौसला है
कुछ नहीं सब चोचला है
धरम का धंधा तो सबसे बड़ा ढकोसला है
दर लगा है कहीं दरबार लगा है
इसे बढ़ाने में पूरा सरकार लगा है
मजहबी मामले को तूल देने में
लगातार टीवी-अखबार लगा है
लोग कह रहे हैं देश बदल रहा है
मजहबी द्वेष धूं-धूं जल रहा है
हमें धर्म की पट्टी कौन पढ़ाता है
दो दिलों में दूरियां कौन बढ़ाता है
पूरा का पूरा सिस्टम ही खोखला है
कुछ नहीं सब चोचला है
धरम का धंधा सबसे बड़ा ढकोसला है
लोगों के मन में डर बिठाकर
चला रहे कारखाना
इसके ही वजह से मिल गया है
लोगों को बांटने का बहाना
हिंदू का मुर्दे को जलाना
मुस्लिम का मुर्दे को दफनाना
अलग-अलग रहने का
क्या गजब बहाना
बस इतनी-सी बात है
घोंसला है तो चिड़िया है
चिड़िया है तो घोंसला है
कुछ नहीं सब चोचला है
धरम का धंधा तो सबसे बड़ा ढकोसला है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

तुझे जिंदगी बसाने का शौक है शहर में...

तुझे जिंदगी बसाने का शौक है शहर में
तो जीने से पहले ही मर ले
कल की नींद के लिए आज
समझौता करना पड़े तो कर ले
भागना बुरा नहीं है
इस भागम भाग शहर में
तू भी तेज भागने का
जतन कोई कर ले
मगर कब तक भागेगा भाई...!
सुकून से कहीं, कभी तो ठहर ले
किराए में रहना बंद कर मेरे दोस्त
जा पहले अपना एक घर ले

- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

जीवन-चक्र और लोक-तंत्र...शून्य बटे सन्नाटा, अंडा बटे पराठा...

पैदा होने के बाद
पंद्रह किलो होते ही
स्कूल जाओ
सरकारी स्कूल में
नाम लिखाओ
पढ़ाई कम टीचर की डांट ज्यादा खाओ
गधे टीचर की वजह से
आप भी खच्चर बन जाओ
परीक्षा में पास होने
मंदिर जाओ, घंटा बजाओ
आरती करो, भोग चढ़ाओ
बोर्ड एक्जाम में में फेल हो गए तो
फांसी लगाओ
फंदे से बचकर बड़े हो गए तो
लड़की पटाओ
गलियों में चक्कर लगाओ
देश के दामाद बाबू
अंबानी का जियो फोन ले आओ
फ़ोकट में दिन-रात बतियाओ
कॉलेज की डिग्री लेकर
रोजगार कार्यालय में पंजीयन कराओ
जगह-जगह चप्पल घिसने के बाद भी
जब कोई जॉब न लगे
तो खडूस बाप कहेगा- इस नालायक की शादी कराओ
शादी होने पर पंजीयन
बच्चे होने पर पंजीयन
गाड़ी खरीदने पर पंजीयन
रोजगारी का पंजीयन
बेरोजगारी का पंजीयन
एक-एक पंजीयन के लिए
पांच-पांच दिन का चक्कर लगाओ
कभी इस दफ्तर जाओ
कभी उस दफ्तर जाओ
आधार कार्ड बनाओ
पैन कार्ड बनाओ
राशन कार्ड बनाओ
वोटर लिस्ट में नाम लिखाओ
पासपोर्ट बनाओ
चालान कट जाएगा
जल्दी से गाड़ी का लाइसेंस दिखाओ
मार्कशीट में माँ का नाम गलत है
इसे जल्दी सुधरवाओ
यहाँ आओ, वहां जाओ
बच्चे को बुखार है
झोलाछाप डॉक्टर के पास ले जाओ
झोलाछाप डॉक्टर के गलती के कारण
बच्चे को बड़े डॉक्टर के पास ले जाओ
महंगे इलाज कराओ
मोटी फ़ीस चुकाओ
बाद में पता चला
इलाज के दौरान बच्चे की मौत
बिल भरो, डेड बॉडी ले जाओ
अब नहीं मिल रहा है मुक्तांजलि वाहन तो
पत्रकार को फोन लगाओ
डॉक्टर पर आरोप लगाओ
पत्रकार के मदद का भी
छोटा-मोटा कीमत चुकाओ
वैज्ञानिक बनते जा रहे पत्रकार बताएगा-
बच्चे की मौत दवाई के ओवरडोज से हुई है
जाओ तत्काल थाने में रिपोर्ट लिखाओ
थाने में बड़े तोंद के कांस्टेबल कहेगा
आज थानेदार साहब नहीं हैं
कल आओ
कल गए तो परसों आओ
परसों गए तो नरसों आओ
रिपोर्टर भैया को फिर फोन लगाओ
उसके आने पर उसकी गाड़ी में पेट्रोल भरवाओ
लंच टाइप का नाश्ता कराओ
सदियों से भूखे उस पत्रकार को खाना खिलाओ
मुर्गा बनाओ, दारू पिलाओ
मैंने कहा- भैया यही तो जीवन है
जीवन में ये सब करना ही पड़ता है
उसने गरियाते हुए कहा-
ज्ञान मत झाड़ो, अपना काम करो
मुझे कल फिर यहाँ आना है
परसों वहाँ जाना है
अभी ना जाने क्या-क्या बनवाना है
ये बनाओ-वो बनाओ
ये दिखाओ-वो दिखाओ
हर अधिकारियों की डांट सुनो
यहाँ-वहाँ धक्के खाओ
दुनियाभर के कार्डों की गलतियां सुधरवाने
कई-कई दिनों तक चक्कर लगाओ
हर कार्ड में एक न एक गलती करना
भारतीय ऑपरेटर का जन्म सिद्ध अधिकार है
भारत में ऐसा कोई एक भी काम नहीं
जिसका एक बार में ही नैया पार है
ढूंढने पर भी ऐसा कोई काम नहीं है
जो एक बार में ही आर-पार है
हर काम में पैसों का पेंच है
हर काम में रुपयों की दरकार है
दुनिया में सबसे बढ़िया मेरा लोकतंत्र है
और सबसे अच्छा भारत सरकार है
मित्रों...! सबसे अच्छा मोदी सरकार है
जीवन-चक्र ऐसे ही चलता रहेगा
गरीब के दिन दुर्दिन है
जीवन बहुत कठिन है
कुल मिलाकर बात कहूं तो
यही अच्छे दिन है
वोट देते समय लगा
कि RSS का मोदी है
अब जाकर पता चला
ये केवल चश्मुद्दीन है 
टीवी में मोदी के चेहरे और चश्मे को देखता हूँ
तो मुझे पूरी तरह फेल हो चुके
नोटबंदी की याद आती है
नोटों का केवल रंग बदलने
नोटों का केवल आकार बदलने
नोटबंदी में लाइन लगाओ
पैसे नहीं है तो भूखे मर जाओ
गुल्लक तोड़कर बिटिया की शादी कराओ
बिना कोई उपहार दिए विदा कराओ
नहीं चल रहा छोटा दुकान तो बंद करो
निठल्ले बैठे बैंक वालों को जाकर तंग करो
देश के लिए नोटबंदी है मित्रों...!
आओ मिलकर जंग करो
अंत में नोटबंदी की सफलता क्या...?
शून्य बटे सन्नाटा...
अंडा बटे पराठा...

-कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 16 सितंबर 2018

पहले सफाया उस सत्ता का जो इसका जिम्मेदार भी है ...

ठीक है मान लिया हर नक्सली गद्दार भी है
दिमाग से पंगु मानसिक बीमार भी है

कैसे जुटाते हैं कहां से आते हैं इतनी मोटी रकम
सुना है उनके पास बड़े-बड़े हथियार भी है

हमारे शहर की हलचल कैसे पहुंचती है उन तक
जंगल से जुड़ा इस शहर में कोई तार भी है

ठीक है आप पूरी तरह उन्हें खोखले साबित कर लो
मगर नेटवर्क से लगता है इनका ठोस विचार भी है

पढ़े-लिखे लोग जुड़े हैं किसी मुहिम की तरह
मुमकिन है इसके पीछे कोई सरकार भी है

बेवजह नहीं भड़की होंगी घातक ये चिंगारियां
पहले सफाया उस सत्ता का जो इसका जिम्मेदार भी है

- कंचन ज्वाला कुंदन

अहंकार के उस घड़े को फोड़ दिया है मैंने ...

जीवन का एक नया तराना छेड़ दिया है मैंने
जीवन का बेसुरा गाना छोड़ दिया है मैंने

भटकाव के सौरास्तों से एक रास्ता चुना मैंने
सफर सुहाना की तरफ रुख मोड़ दिया है मैंने

फंसा हुआ था अलग-अलग सौ कामों के बीच में
जीवन के अब सारे उलझन तोड़ दिया है मैंने

जीवन के इस रास्ते पर रोड़ा था वह बहुत बड़ा
अहंकार के उस घड़े को फोड़ दिया है मैंने

अपने ही बेसुरेपन से नीरस पड़ा था जीवन-वीणा
मधुर वीणा के टूटे तार को अब जोड़ दिया है मैंने

- कंचन ज्वाला कुंदन

दशरथ मांझी जैसा आओ पर्वत पर आघात करें...

आज करूंगा कल करूंगा यह ना केवल बात करें
करने के लिए बस इतना ही एक छोटी शुरुआत करें

बड़े इरादे लेकर साथियों फौलादी चट्टानें तोड़ें
दशरथ मांझी जैसा आओ पर्वत पर आघात करें

- कंचन ज्वाला कुंदन

जब घुटन के भीतर कोई सपना पलेगा...

आपके पूंछ में आग नहीं लगी तो लंका कैसे जलेगा
केवल उछल-कूद से बिल्कुल काम नहीं चलेगा

जागना है तो जागो अभी सूर्योदय है
जागने का क्या मतलब जब सूरज ढलेगा

हस्र यही होगा वह मर जाएगा अंदर ही
जब घुटन के भीतर कोई सपना पलेगा

मूंद लोगे आंखें तो बड़ा होता जाएगा
सामना करने से ही मुसीबत टलेगा

पत्ते-पत्ते सिंचोगे तो पौधे मर जाएगा
जड़ को दो खाद-पानी वह खूब फलेगा

- कंचन ज्वाला कुंदन

वह मिलेगा तभी जब पागल हो जाओगे...

अभी कहां हो, जाना कहां है, कैसे जाओगे
बस इसी पर फोकस करो सफल हो जाओगे

पास क्या है, पाना क्या है, कैसे पाओगे
यह तुम्हें उकसाएगा अगर कहीं रुक जाओगे

देख लिए सपने, मगर मुझे यह बताओ
सपने को सच आखिर कैसे कर पाओगे

कोसे के कीड़े का कंफर्ट जोन तोड़ो
अरे बंद दड़बे से बाहर कब आओगे

लक्ष्य नहीं मिलेगा बुद्धिमानी से तय है
वह मिलेगा तभी जब पागल हो जाओगे

शनिवार, 15 सितंबर 2018

ओ छोटू कहाँ है तू...

ओ छोटू कहाँ है तू...
सिर्फ एक शब्द नहीं पूरी किताब है छोटू
बीते हुए सुनहरे लम्हों का पूरा हिसाब है छोटू
छोटू मेरा दोस्त है जिगरी यार है छोटू
मेरे दिल का टुकड़ा छोटा संसार है छोटू
छोटू और मेरे बीच एक लंबी कहानी है
हमारी दोस्ती की फ़लसफ़ा बहुत पुरानी है
दोनों के दिलों में आज भी जिंदा है प्यार
दूरियों और दरारों के बावजूद दोस्ती है बरकरार
- कंचन ज्वाला कुंदन

आज के जो युवा...

आज के जो युवा
देश बदलना चाहते हैं
समाज बदलना चाहते हैं
Facebook में
WhatsApp में
उनसे गुजारिश है मेरी
पहले वे अपना
मोबाइल से उखड़ रहे
कीपैड को बदल लें
खराब हो चुके
बैटरी को बदल लें
पुराने हो चुके
जूते को बदल लें
टूट रहे
बेल्ट को बदल लें
कलाई में बंद पड़ी
घड़ी को बदल लें
पूरे 75 रुपए वाली
चश्मे को बदल लें
संडे मार्केट से खरीदा हुआ
टोपी को बदल लें
साथियों...
केवल सोशल मीडिया में
देश और समाज बदलने से पहले
आप अपनी गधे जैसी जिंदगी को बदल लें
मेरे ख्याल से
यही अच्छा होगा...
यही बेहतर होगा...
-कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 2 सितंबर 2018

ख्वाहिश एक ही यही तमन्ना है... मुझे मरके भी जिंदा रहना है...

कुछ शख्सियतों की चर्चा में
अपनी भी कुछ बात चले
मेरी जरूरत उन्हें महसूस हो
कुछ ऐसा उनका साँस चले
सांसें अंतिम तक मेरा यही कहना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है
ख्वाहिश एक ही यही तमन्ना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है

लोगों के दिलों में छाप रहे
पक्का रहे अपने आप रहे
करना सच है ये ख्वाब कुंदन
भूलना नहीं यह याद रहे
यादें लेकर कुछ यादों संग बहना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है
ख्वाहिश एक ही यही तमन्ना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है

चाहता हूं कोई याद कर ले
भींच मुट्ठी याद भरले
अमीरी न सही टूटा खाट सही
मेरी याद मगर ठाट-बाट कर ले
मेरे लिए सबसे बड़ी यही गहना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है
ख्वाहिश एक ही यही तमन्ना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

शोषण-कुपोषण मेरे जीवन की कुंदन...

यह न कहना कि बेकार है
मेरी जिंदगी की यही सार है

तंगहाली-बदहाली, गरीबी-कंगाली
मेरा सच्चा यार है प्यार है

ऊपर खामोशी का लिबास है मेरे
अंदर आंसू की लहर है धार है

हंसने का हुनर ये श्वांग भी है जान लो
अंदर गम का गुबार है अंबार है

शोषण-कुपोषण मेरे जीवन की कुंदन
बारहमासी साथी सदाबहार है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

बस कर लिया इतना कभी तू मर नहीं सकता...

अगर तू खुद ना चाहे तो खुदा कुछ कर नहीं सकता
          तेरी बदरंग जीवन में नया रंग भर नहीं सकता


अगर तू ही न चाहे तो कोई कुदरत भी तुझ पर
कोशिश लाख करे लेकिन करिश्मा कर नहीं सकता

संघर्ष करने का हुनर तू सीख ले प्यारे
डरावनी राहों में भी तब तू डर नहीं सकता

रौशन नाम करने का जुनूं एक पाल भी कुंदन
बस कर लिया इतना कभी तू मर नहीं सकता
- कंचन ज्वाला कुंदन 

पहले चंडी थी आज रंडी है पहचानता हूं मैं...

अखबार को बेआबरू औरत मानता हूं मैं
हां यह दो रुपए में बिकता है जानता हूं मैं

मेरे शहर की हर घटना की नुमाइश करती है ये
मगर अधनंगी औरत है इसे पहचानता हूं मैं

लोगों को शौक है इसके बदन को खुली देखने का
पर ये कभी पूरी बदन नहीं खोलेगी मानता हूं मैं

कभी 'इसके' हाथों कभी 'उसके' हाथों बिकती रहेगी
अरे ये चीज ही बिकाऊ है जानता हूं मैं

हां ये कभी आजादी के लिए कूद पड़ी थी मेरे साथ
पहले चंडी थी आज रंडी है पहचानता हूं मैं

- कंचन ज्वाला कुंदन

मौत के मुहाने पर हूं आपसे क्या छुपाऊं...

दर्द कितना है क्या बताऊं
अंदर के खालीपन को क्या दिखाऊं

दर्द से पशोपेश में हूं इतना कि
दर्द कभी याद रहे कभी भूल जाऊं

सोचता हूं कहीं जाहिर कर दूं ये दर्द
मगर ये दर्द नहीं गर्द है क्या बताऊं

ये मेरी खामोशी है या घुटन नहीं जानता
मैं ही नहीं जानता आपसे क्या जताऊं

जमा हो रहा है मेरे अंदर ये बारूद की तरह
मौत के मुहाने पर हूं आपसे क्या छुपाऊं

- कंचन ज्वाला कुंदन 

परेम के पचरा म झन परबे ग...

परेम के पचरा म झन परबे ग...
दू डोंगा के सवारी के भइया झन करबे ग...

कर डारे बिहा त खुस र सुवारी संग
अपन बारी-बिरता अपन दुवारी संग
लकरी कस कट जा भले चाहे आरी संग
टुरी सुघ्घर परोसी बर झन मरबे ग....। दू डोंगा के सवारी...

न ऐती के होबे न ओती के होबे
मुड़ी नवाके घूंट-घूंट के रोबे
जांता म दराके जिनगी ल खोबे
जरे सीते आगी ल झन धरबे ग....। परेम के पचरा म....

तैं बड़े भइया तोरे जोहार
कहना ल मान मैं करंव गोहार
फोकटे-फोकट म मत हो खोहार
जड़कल्ला के भूर्री कस झन बरबे ग....। दू डोंगा के सवारी...

रोज-रोज घर म झगरा झन मताबे
दारू घलो ल हाथ झन लगाबे
इज्जत के धनिया बोके झन आबे
घोलहा नरियर कस भइया तैं झन सरबे ग.....। परेम के पचरा म...

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

शनिवार, 1 सितंबर 2018

कुंदन के कुंडलियाँ... कहे कुंदन कविराय...

मन ही सबका मलिन है, कहते हैं सब लोग
भोगी भरे भरपेट हैं, भोगी की बड़भोग
भोगी की बड़भोग, अपनी है रोटी दाल
क्या बताएं आज की, हाल भाई बदहाल
कहे कुंदन कविराय, डूबे है चाशनी चोर
नंगा बदन शराफत देखो, घूम रहे चारों ओर

पैसे से सब होते हैं सिद्ध सकल सब काम
दिन-रात सबहि जपैं, पैसे की ही नाम
पैसे की ही नाम, रट रहे हैं लोग
करम निखट्टू भी रटैं, चाहैं छप्पन भोग
कहे कुंदन कविराय, क्या होगा संसार का
ढोया ही नहीं जा रहा, हिस्सा अपने भार का

पैसा केवल नाम में सकल शक्ति है भारी
कलियुग पैसा प्रभु, पैसा पुरुष अवतारी
पैसा पुरुष अवतारी, आया है कलिकाल में
भक्ति में रहो लीन, भक्तों तुम हर हाल में
कहे कुंदन कविराय, भक्ति बहुत जरूरी
पैसा प्रभु रीझ जाए तो, हर कामना होगी पूरी

है यदि पैसा पास में, होती है पहचान
वरना जानते लोग भी, कहते हैं अनजान
कहते हैं अनजान, यदि पैसा नहीं है पास
पॉकेट में पैसा रहे, तो लगते हैं कुछ खास
कहे कुंदन कविराय, खासमखास ही दिखिए
पैसा पाने का हुनर, अच्छे ढंग से सीखिए

पैसे का मानव पुतला, पैसे का नाटकबाज
पैसे से दब जाते हैं, बड़े-बड़े ही राज
बड़े-बड़े ही राज, है दफन तहखाने में
हरदम रहिए चौकन्ना, कहीं भी आने-जाने में
कहे कुंदन कविराय, माल न लेकर घूमिये
दारू के नशे में धुत्त, सफर में न झूमिये

रुपया को नमस्कार है, पैसा को प्रणाम
दम सबसे दमदार है, दौलत जिसका नाम
दौलत जिसका नाम, जैसे कोई भगवान
गरीब गुरबत में रहे. धन्य हैं धनवान
कहे कुंदन कविराय, आप भी दौड़ लगाइए
जीतने की जज्बा रहे, या पीछे हट जाइए

रुपया है भाई बहन, रुपया माई-बाप
रुपया नहीं पास तो, लगती जीवन शाप
लगती जीवन शाप, कंगाली बहुत कठिन
रोकर बीतै हर रात, रो-रो कटे सब दिन
कहे कुंदन कविराय, लगाओ कोई छलांग
सोए रहोगे कब तक भला, ऐसे खाकर भांग

रुपए की रुतबा दिखे, जब टकराए जाम से
शान बढ़ी शराब की, पीते हैं एहतराम से
पीते हैं एहतराम से, चोर-उचक्के बदमाश
बैठकर पीते ठेका में, लाइसेंस सबके पास
कहे कुंदन कविराय, मदिरा महिमा महान
दारू है भगवान, और भक्ति है रसपान

पैसे की ही कारण से, मची है भागमभाग
योगी-भोगी-रागिनी, अलापैं इसकी राग
अलापैं इसकी राग, पपीहे की जस टेर 
डूबे रहैं सब ध्यान में, जस माला की फेर
कहे कुंदन कविराय, आप भी ध्यान लगाइए
धन-मन के इस ध्यान में, तन-मन से खो जाइए

रग भी अब मिल जाते हैं, पैसे की बदले जान
पैसा तुझे पहचान न पाया, पैसा तू है महान
पैसा तू है महान. श्रीहरि भगवान सा
शास्वत सत्य सूरज के, रोज दमकता शान सा
कहे कुंदन कविराय, दमड़ी दम दमदार
मनी और माल खजाना का, महिमा अपरंपार

रे रुपया बहरूपिया के, सेठ धन्ना के धन
बहरूपिया सा रूप तेरा, रहता है बन-ठन
रहता है बन-ठन, नव दूल्हा-सा रूप
नया-नया संदूक में, बैठा रहता चूप
कहे कुंदन कविराय, संदूक खरीद ले आईये
अब संदूक को भरने की, कुछ तो जुगत भिड़ाईये

पैसा पतित पावनी, पैसा सीताराम
पैसा परमेश्वर प्रभु, पैसा है घनश्याम
पैसा है घनश्याम, ईसाईयों का ईसा भी
या करम सब कुछ यही, मुल्लाओं का मूसा भी
कहे कुंदन कविराय, करम को कम ना आंकिये
दूसरे की दौलत नहीं, अपनी करनी झांकिये

पैसा पाले पातकी, अवसर ना बारंबार
जनम सफल हो जाएगा, पैसा ही बस सार
पैसा ही बस सार, संसारी का सत्य
रुपया महिमा महान की, अलेखनी अकथ्य
कहे कुंदन कविराय, पैसा का सपना पालिए
हर दम हर-हर पैसा, रटने की आदत डालिए

पैसा पय गोकुल की, क्षीर की नीर नहीं
जे पैसा पहचान लैं, जान सुजान वही
जान सुजान वही, जे पैसा को जानै
इसके गुण गूढ़ को, जे ढंग से पहचानै
कहे कुंदन कविराय, पैसे की परख जरूरी
परख पूरी की पूरी, रह जाए न आधी-अधूरी

तैं रोथस काबर रे...

सबो संगवारी मन ल मोर डहर ले जय जोहार. संगवारी हो आज में एक ठन छत्तीसगढ़ी गीत सुनाना चाहत हंव...मोर लिखे गीत, गजल, कविता कोनो भी रचना के आपमन ल कोई उपयोगिता समझ म आही त जरुर सुझाव दुहु...बिना कोई लाग-लपेट बात के अब सीधा सुनव मोर ये गीत... रचना के शीर्षक हे " तैं रोथस काबर रे..."
तैं रोथस काबर रे...
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर

पढ़-लिख के भईया, सपना सिरजाले
अपन जिनगानी ल उज्ज्वल बनाले
अजगर कस अल्लर सोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर

तैं जिनगी ल अब तक बदल नई पाय
का बात हे मोरे समझ नई आय
गदहा कस बोझा ढोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस  काबर

जांगर के भरोसा म जिनगी हे भईया
करम नई करबे त डूब जाही नईया
अइसन भी कोढ़िया होथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर

चाहबे त जिनगी फुलवारी हो जाही
नई त आंखी म चुभही भारी हो जाही
काँटा के बीजा बोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
- कंचन ज्वाला कुंदन