शाम को सुकून नहीं
शांति नहीं सबेर में
आया तो आया होश
आया बहुत देर में
आदमी अकेला है
उलझन की ढेर में
फँस चुका है जाल में
रिश्तों की फेर में
कुंदन तुम देखते रहो
बैठे हुए मुंडेर में
- कंचन ज्वाला कुंदन
शांति नहीं सबेर में
आया तो आया होश
आया बहुत देर में
आदमी अकेला है
उलझन की ढेर में
फँस चुका है जाल में
रिश्तों की फेर में
कुंदन तुम देखते रहो
बैठे हुए मुंडेर में
- कंचन ज्वाला कुंदन
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