मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018

आओ ऐसे बादल बनें

आओ ऐसे बादल बनें

बिना किसी स्वार्थ के ऐसी उपकार
हमने कभी देखे नहीं
ना शायद कभी सुने हैं
धूप से तप्त पर्वतों को
दावाग्नि से पीड़ित वनों को
जो शीतल दे खुश होते हैं
आओ ऐसे बादल बनें
नदी नालों को
खेत खलिहानों को
जलमग्न कर
भूमंडल को जैवमंडल को
हरियाली दे
जो बरस-बरस कर खाली हो जाये
पर बरसना ना छोड़े
ऐसे उपकारी बादल बनें
आओ ऐसे बादल बनें

- कंचन ज्वाला कुंदन 

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