रविवार, 14 अक्टूबर 2018

हसरत तो और भी हरी हो रही है

हसरत तो और भी हरी हो रही है
ख्वाब तो और भी खरी हो रही है

आहिस्ता-आहिस्ता अरमान बढ़ रहा है
रातों की सपने रसभरी हो रही है

चौखट में उपेक्षा सा पड़ा हुआ पायदान
जाने किस मकसद से दरी हो रही है

ख्वाहिश उड़ चले हैं, आसमां को ने
पंख आ रहा है, परी हो रही है

कुंदन अब कभी भी कैद नहीं होगा
जिंदगी बाइज्जत बरी हो रही है

-कंचन ज्वाला कुंदन 

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