रविवार, 11 नवंबर 2018

मैं अच्छी तरह से जानता हूँ उस कमीने दल्ले चप्पू को

खून-पसीने एक करा लो फूटी कौड़ी ना दो अप्पू को 

मैं अच्छी तरह से जानता हूँ उस कमीने दल्ले चप्पू को



बद्दुआ है जब भी मरे वो किसी बड़ी बीमारी से 

सैकड़ों शख्स की हाय लगे हरामखोर टकले टप्पू को



एक-दूसरे को मोहरा बनाना फितरत है हरामी की 

सच्चे बनकर गच्चे देना यही भाता है उस गप्पू को



नेताओं के तलुवे चाटकर जगह-जगह जमीन दबाना 

कारनामों का कला आता है उस कलूटे कप्पू को



मुझे मेरे दर्द का हिसाब चाहिए, कोई उसे बता दे 

कुंडली मारकर बैठने वाले उस सपोले सप्पू को



-कंचन ज्वाला कुंदन

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