ऐसा कहाँ हुआ कोई फितरत से बाज आया
आदमी के हर काम में कोई ना कोई राज आया
आदमी में बदलाव बनता गया नासूर होता गया काफूर
मगर उसमें बदलाव ना कल आया ना आज आया
आदमी के भेष में घुमते रहे भेड़िये जो
उनके सर इंसानियत का ताज आया
आधुनिकता की दौड़ में जब खाई तक लोग पहुंचे
उन्हें लौट जाने का क्योंकर आवाज आया
यहाँ आदमी अद्भुत है और समाज बहुत सुंदर
नक्काशी के नक़्शे पे कुंदन को नाज आया
- कंचन ज्वाला कुंदन
आदमी के हर काम में कोई ना कोई राज आया
आदमी में बदलाव बनता गया नासूर होता गया काफूर
मगर उसमें बदलाव ना कल आया ना आज आया
आदमी के भेष में घुमते रहे भेड़िये जो
उनके सर इंसानियत का ताज आया
आधुनिकता की दौड़ में जब खाई तक लोग पहुंचे
उन्हें लौट जाने का क्योंकर आवाज आया
यहाँ आदमी अद्भुत है और समाज बहुत सुंदर
नक्काशी के नक़्शे पे कुंदन को नाज आया
- कंचन ज्वाला कुंदन
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