शनिवार, 1 सितंबर 2018

कुंदन के कुंडलियाँ... कहे कुंदन कविराय...

मन ही सबका मलिन है, कहते हैं सब लोग
भोगी भरे भरपेट हैं, भोगी की बड़भोग
भोगी की बड़भोग, अपनी है रोटी दाल
क्या बताएं आज की, हाल भाई बदहाल
कहे कुंदन कविराय, डूबे है चाशनी चोर
नंगा बदन शराफत देखो, घूम रहे चारों ओर

पैसे से सब होते हैं सिद्ध सकल सब काम
दिन-रात सबहि जपैं, पैसे की ही नाम
पैसे की ही नाम, रट रहे हैं लोग
करम निखट्टू भी रटैं, चाहैं छप्पन भोग
कहे कुंदन कविराय, क्या होगा संसार का
ढोया ही नहीं जा रहा, हिस्सा अपने भार का

पैसा केवल नाम में सकल शक्ति है भारी
कलियुग पैसा प्रभु, पैसा पुरुष अवतारी
पैसा पुरुष अवतारी, आया है कलिकाल में
भक्ति में रहो लीन, भक्तों तुम हर हाल में
कहे कुंदन कविराय, भक्ति बहुत जरूरी
पैसा प्रभु रीझ जाए तो, हर कामना होगी पूरी

है यदि पैसा पास में, होती है पहचान
वरना जानते लोग भी, कहते हैं अनजान
कहते हैं अनजान, यदि पैसा नहीं है पास
पॉकेट में पैसा रहे, तो लगते हैं कुछ खास
कहे कुंदन कविराय, खासमखास ही दिखिए
पैसा पाने का हुनर, अच्छे ढंग से सीखिए

पैसे का मानव पुतला, पैसे का नाटकबाज
पैसे से दब जाते हैं, बड़े-बड़े ही राज
बड़े-बड़े ही राज, है दफन तहखाने में
हरदम रहिए चौकन्ना, कहीं भी आने-जाने में
कहे कुंदन कविराय, माल न लेकर घूमिये
दारू के नशे में धुत्त, सफर में न झूमिये

रुपया को नमस्कार है, पैसा को प्रणाम
दम सबसे दमदार है, दौलत जिसका नाम
दौलत जिसका नाम, जैसे कोई भगवान
गरीब गुरबत में रहे. धन्य हैं धनवान
कहे कुंदन कविराय, आप भी दौड़ लगाइए
जीतने की जज्बा रहे, या पीछे हट जाइए

रुपया है भाई बहन, रुपया माई-बाप
रुपया नहीं पास तो, लगती जीवन शाप
लगती जीवन शाप, कंगाली बहुत कठिन
रोकर बीतै हर रात, रो-रो कटे सब दिन
कहे कुंदन कविराय, लगाओ कोई छलांग
सोए रहोगे कब तक भला, ऐसे खाकर भांग

रुपए की रुतबा दिखे, जब टकराए जाम से
शान बढ़ी शराब की, पीते हैं एहतराम से
पीते हैं एहतराम से, चोर-उचक्के बदमाश
बैठकर पीते ठेका में, लाइसेंस सबके पास
कहे कुंदन कविराय, मदिरा महिमा महान
दारू है भगवान, और भक्ति है रसपान

पैसे की ही कारण से, मची है भागमभाग
योगी-भोगी-रागिनी, अलापैं इसकी राग
अलापैं इसकी राग, पपीहे की जस टेर 
डूबे रहैं सब ध्यान में, जस माला की फेर
कहे कुंदन कविराय, आप भी ध्यान लगाइए
धन-मन के इस ध्यान में, तन-मन से खो जाइए

रग भी अब मिल जाते हैं, पैसे की बदले जान
पैसा तुझे पहचान न पाया, पैसा तू है महान
पैसा तू है महान. श्रीहरि भगवान सा
शास्वत सत्य सूरज के, रोज दमकता शान सा
कहे कुंदन कविराय, दमड़ी दम दमदार
मनी और माल खजाना का, महिमा अपरंपार

रे रुपया बहरूपिया के, सेठ धन्ना के धन
बहरूपिया सा रूप तेरा, रहता है बन-ठन
रहता है बन-ठन, नव दूल्हा-सा रूप
नया-नया संदूक में, बैठा रहता चूप
कहे कुंदन कविराय, संदूक खरीद ले आईये
अब संदूक को भरने की, कुछ तो जुगत भिड़ाईये

पैसा पतित पावनी, पैसा सीताराम
पैसा परमेश्वर प्रभु, पैसा है घनश्याम
पैसा है घनश्याम, ईसाईयों का ईसा भी
या करम सब कुछ यही, मुल्लाओं का मूसा भी
कहे कुंदन कविराय, करम को कम ना आंकिये
दूसरे की दौलत नहीं, अपनी करनी झांकिये

पैसा पाले पातकी, अवसर ना बारंबार
जनम सफल हो जाएगा, पैसा ही बस सार
पैसा ही बस सार, संसारी का सत्य
रुपया महिमा महान की, अलेखनी अकथ्य
कहे कुंदन कविराय, पैसा का सपना पालिए
हर दम हर-हर पैसा, रटने की आदत डालिए

पैसा पय गोकुल की, क्षीर की नीर नहीं
जे पैसा पहचान लैं, जान सुजान वही
जान सुजान वही, जे पैसा को जानै
इसके गुण गूढ़ को, जे ढंग से पहचानै
कहे कुंदन कविराय, पैसे की परख जरूरी
परख पूरी की पूरी, रह जाए न आधी-अधूरी

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