कभी उड़ गया धुआं में
कभी गिर गया कुआँ में
कभी मन को बहला लिया
दो टके के गुब्बारे में
मन में जो आया करता रहा
सालों तक भटकता रहा
फिर लौट आया हूँ अब
मैं अपने ही धारे में
मुझे नहीं पता था
लक्ष्य के बारे में
वो कब से खड़ा ही था
मेरे किनारे में
-कंचन ज्वाला कुंदन
कभी गिर गया कुआँ में
कभी मन को बहला लिया
दो टके के गुब्बारे में
मन में जो आया करता रहा
सालों तक भटकता रहा
फिर लौट आया हूँ अब
मैं अपने ही धारे में
मुझे नहीं पता था
लक्ष्य के बारे में
वो कब से खड़ा ही था
मेरे किनारे में
-कंचन ज्वाला कुंदन
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