मंगलवार, 25 सितंबर 2018

चाहूँ तो दिवाली में पटाखे भी जला लूँ, चाहूँ तो ईद में गले भी लगा लूँ...

हर पल कोशिश रहती है मेरी
अपने आपको कुछ बदल पाऊं
मगर ये हरगिज़ मुझे मंजूर नहीं
किसी सांचे में ढल जाऊं
न किसी मजहब का मुझे लेबल चाहिए
न छुपने के लिए कोई टेबल चाहिए
जहाँ किसी जाति का कोई परकोटा न हो
जहाँ कोई बड़ा कोई छोटा न हो
मैं चाहता हूँ उस रास्ते निकल जाऊं
हर पल कोशिश रहती है मेरी
अपने आपको कुछ बदल पाऊं
मगर ये हरगिज़ मुझे मंजूर नहीं
किसी सांचे में ढल जाऊं
चाहूँ तो दिवाली में पटाखे भी जला लूँ
चाहूँ तो ईद में गले भी लगा लूँ
चाहूं तो मंदिर में घंटी भी बजा लूँ
चाहूं तो मजार में चादर भी चढ़ा लूँ
जहाँ आडंबर में औंधे मुंह गिरुं
मैं चाहता हूँ वहां संभल जाऊं
हर पल कोशिश रहती है मेरी
अपने आपको कुछ बदल पाऊं
मगर ये हरगिज़ मुझे मंजूर नहीं
किसी सांचे में ढल जाऊं

- कंचन ज्वाला कुंदन

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