इंसान तो खुदा की
अनमोल कृति है
जहर से भरा फिर
क्यों आकृति है
पाप की पूंज क्यों
उसकी स्मृति है
जानवर सरीखा क्यों
उसकी प्रकृति है
वासना का दलदल क्यों
उसकी स्वीकृति है
- कंचन ज्वाला कुंदन
अनमोल कृति है
जहर से भरा फिर
क्यों आकृति है
पाप की पूंज क्यों
उसकी स्मृति है
जानवर सरीखा क्यों
उसकी प्रकृति है
वासना का दलदल क्यों
उसकी स्वीकृति है
- कंचन ज्वाला कुंदन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें