बुधवार, 22 अप्रैल 2020

तो डूब मरना चाहिए हमें चुल्लू भर पानी में...

तो डूब मरना चाहिए हमें चुल्लू भर पानी में...
आज के समय में
सबसे बड़ा लुटेरा है व्हाट्सएप
ये रोज लूट रहा है
हम सबका कीमती वक्त
सबसे बड़ा डकैत है फेसबुक
ये रोज डाका डाल रहा है
हमारे कीमती समय पर
कोई थाना है क्या...?
जहाँ मैं इसका रिपोर्ट लिखा सकूँ
कोई अदालत है क्या...?
जहाँ इस केस पर सुनवाई हो
फेसबुक और व्हाट्सएप
वाकई कुसूरवार हो तो
लटका दो दोनों को
एक ही रस्सी से फांसी पर
और...
यदि हम ही गुनहगार हैं
तो डूब मरना चाहिए हमें
चुल्लू भर पानी में...
- कंचन ज्वाला कुंदन

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

लद गए दिन लाठियों के, गोली दागो का समय है ये...

सोये रहे तो शिकार बनोगे
उठो जागो का समय है ये
रेंगने से मर जाना बेहतर
तेज भागो का समय है ये
लद गए दिन लाठियों के
गोली दागो का समय है ये
-कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 19 अप्रैल 2020

और बेमौत मारा गया पहले की तरह...

मैं अपने अस्तित्व के लिए
मैं अपने वजूद के लिए
लड़ाई लड़ रहा था
बरसों की तरह...
कई लोग मसलने में लगे थे
कई लोग कुचलने में लगे थे
कई लोग रौंदने में लगे थे मुझे
सदियों की तरह...
ना मैं दाम में बिका
ना मैं दंड में झुका
ना मैं भेद से हारा
मगर मैं साम में फंसा फिर से
और बेमौत मारा गया
पहले की तरह...
- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

तैं रोथस काबर रे...रो-रो के जिनगी खोथस काबर... (छत्तीसगढ़ी गीत)

सबो संगवारी मन ल मोर डहर ले जय जोहार. संगवारी हो आज में एक ठन छत्तीसगढ़ी गीत सुनाना चाहत हंव...मोर लिखे गीत, गजल, कविता कोनो भी रचना के आपमन ल कोई उपयोगिता समझ म आही त जरुर सुझाव दुहु...बिना कोई लाग-लपेट बात के अब सीधा सुनव मोर ये गीत... रचना के शीर्षक हे " तैं रोथस काबर रे..."
तैं रोथस काबर रे...
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
पढ़-लिख के भईया, सपना सिरजाले
अपन जिनगानी ल उज्ज्वल बनाले
अजगर कस अल्लर सोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
तैं जिनगी ल अब तक बदल नई पाय
का बात हे मोरे समझ नई आय
गदहा कस बोझा ढोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
जांगर के भरोसा म जिनगी हे भईया
करम नई करबे त डूब जाही नईया
अइसन भी कोढ़िया होथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
चाहबे त जिनगी फुलवारी हो जाही
नई त आंखी म चुभही भारी हो जाही
काँटा के बीजा बोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 12 अप्रैल 2020

ये कहर क्यों है बरपा इधर हमीं पर, मस्ती में हूँ फिर भी अपनी कमी पर...

ये कहर क्यों है बरपा इधर हमीं पर
मस्ती में हूँ फिर भी अपनी कमी पर
तुम ही उड़ो जीभर आसमां मुबारक हो
अरे बेहतर हूँ मैं यहाँ इधर जमीं पर
और तेज भागो तुम बुलंदी के छोर तक
ठहरना है तुमको तो सीधा वहीं पर
इसी हाल पर ही छोड़ दो मुझे तुम
हाँ ठीक हूँ अकेला मैं इधर यहीं पर
पहुँचो तुम कहीं भी पीछे नहीं आऊंगा
मुझे जाना नहीं है जब उधर कहीं पर
- कंचन ज्वाला कुंदन


शनिवार, 11 अप्रैल 2020

मेरी मर्जी हो तो झूठ भी बोलूँगा, मैं चाहता नहीं पूरा सच्चा ही रहूँ...

मेरी मर्जी हो तो झूठ भी बोलूँगा
मैं चाहता नहीं पूरा सच्चा ही रहूँ
यूँ चुटकी भर अंदर बुराई भी रहे
मैं चाहता नहीं पूरा अच्छा ही रहूँ
मैं पकना नहीं चाहता पूरी तरह
मैं चाहता हूँ थोड़ा कच्चा ही रहूँ
किसी से खुद को बड़ा न कहूँ
मैं चाहता हूँ जरा बच्चा ही रहूँ
- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

मैदान में आते ही बनूँगा भीगी बिल्ली, फेसबुक में गुर्रा रहा हूँ मैं ही चीता हूँ...

तीन बार खाना चार बार चाय पीता हूँ
कुछ भी हो अपने उसूलों पर जीता हूँ
और ये उसूल क्या है तो कुछ भी नहीं
कभी आलू कभी अंडा कभी पपीता हूँ
मैं आंदोलन चला रहा हूँ व्हाट्सएप पर
इधर फटे जूते का टूटा हुआ फीता हूँ
मैदान में आते ही बनूँगा भीगी बिल्ली
फेसबुक में गुर्रा रहा हूँ मैं ही चीता हूँ
मैं टिकता नहीं हूँ एक ही विचार पर
मैं खुद ही खुद पर लगाता पलीता हूँ
- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

इधर चलता है हर वक्त जंगल-सा नियम...

आग लगा दो तुम्हारे सैकड़ों बहानों को
ये सारा खेल भीतर लगी आग का है
जिद से ही पूरा होगा अमीरी का सफ़र
मैं जानता हूँ ये सारा खेल दिमाग का है
मेरी मानो उसे छोड़ो मत तुम भी डसो
अरे तुम्हारा भी फन जहरीले नाग का है
इधर चलता है हर वक्त जंगल-सा नियम
यहाँ हर आदमी का पंजा बाघ का है
मैं तो कहता हूँ 'कुंदन' तू और भी तेज भाग
अरे ये कमीना वक्त ही भागमभाग का है
- कंचन ज्वाला कुंदन

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

और क्या चाहिए था कुछ गम है क्या, जितना भी मिला उतना कम है क्या

और क्या चाहिए था कुछ गम है क्या
जितना भी मिला उतना कम है क्या
वो आबरू है फ़क़त कोई तमाशा नहीं
तू छीन करके ले लेगा ये दम है क्या
उसने जो दिया तू उतना ही मंजूर कर
उसकी पप्पी-वप्पी भी रहम है क्या
तू उसकी चाहत का पूरा सम्मान कर
लगता है तेरे मन में कुछ वहम है क्या
वो मिलने का पल था या बिछड़ने का
लो देखो मेरी आँखें जरा नम है क्या
रिलैक्स हो जा कुंदन कोई बात नहीं
कल का थोड़ा बचा हुआ रम है क्या
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 5 अप्रैल 2020

पैसा कमाना भी एक कला है 'कुंदन', निर्भर है ये भी अपने-अपने हुनर पर...

कब तक चलते रहोगे गरीबी के डगर पर
चलो निकलो तुम भी अमीरी के सफ़र पर
अमीरी कोई हौव्वा नहीं जो हासिल नहीं होगा
अमीरी ही रखो तुम हर पल नजर पर
अमीर से पूछो वो अमीर कैसे बना
किस्मत पर नहीं कर्म के असर पर
कठिन राह पर निकलो तो भरोसा रखो
खुदा पर नहीं खुद के जिगर पर
पैसा कमाना भी एक कला है 'कुंदन'
निर्भर है ये भी अपने-अपने हुनर पर
- कंचन ज्वाला कुंदन

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

ऑनलाइन मिले और ऑफ़लाइन बिछड़ गए, एक-दूसरे के पते पर पैगाम तक नहीं पहुंचा

शुक्र है कि सफर मकाम तक नहीं पहुंचा
अच्छा हुआ रिश्ता अंजाम तक नहीं पहुंचा

हमारे दरमियाँ जो था मैं उसे क्या नाम दूँ
सुबह जो शुरू हुआ शाम तक नहीं पहुंचा

ऑनलाइन मिले और ऑफ़लाइन बिछड़ गए
एक-दूसरे के पते पर पैगाम तक नहीं पहुंचा

ख़ैर मनाओ तुम भी ख़ैर मना रहा हूँ मैं भी
बिछड़ने का दर्द भी जाम तक नहीं पहुंचा

हम अजनबी थे, हैं, और रहेंगे अजनबी ही
अच्छा है रिश्ता किसी नाम तक नहीं पहुंचा

- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

जिसे तू दल्ले कहता है उसकी सोने की सवारी है

पहले पूरा इसे साफ कर जो खून में खुद्दारी है
मुझे पकड़ में आ गया तेरी यही बड़ी बीमारी है
आंखें गड़ाके देख ले 5 रुपये है तेरे अकाउंट में
क्या खुद्दारी छोड़ने को ये बात भी नहीं भारी है
तू कहता है कि हर जगह दलाली चल रहा है
मैं तुम्हें फिर पूछता हूँ तुम्हारी क्या तैयारी है
तेरे 5 रुपये वाले खाते में मेरी बात नोट कर ले
जिसे तू दल्ले कहता है उसकी सोने की सवारी है
कलम घसीटना है तो घसीटते रहो भैया जी
मेरे पैसे बस लौटा देना तुमने लिया जो उधारी है
बहुत कड़वे तज़ुर्बों के बाद बता रहा हूँ ये बात
तू चाहे तो कह सकता है अनमोल जानकारी है
कुछ शब्द तो साले शब्दकोश में ही अच्छे हैं
उनमें से दो कठिन शब्द सच्चाई और ईमानदारी है
इन कठिन शब्दों से कोसों दूरियां बना लो तुम
अगर जरा भी तुम्हें अपनी जिंदगी प्यारी है
आजकल बड़े ही पूजनीय हो गए हैं कुछ शब्द
जिनमें चमचागिरी, स्वार्थ, दलाली और गद्दारी है
भिखमंगे ही रहना है या आगे भी बढ़ना है तुम्हें
धन बटोरना भी साहब गजब की कलाकारी है
मैं रायचंद का भतीजा बस राय देते फिरता हूं
मेरा ज्ञान-ध्यान, कागज-कलम सब सरकारी है
ये आज मेरे मुंह से जितने भी शब्द फूटे हैं
कुछ समेट भी लो बे सब जनहित में जारी है
- कंचन ज्वाला कुंदन

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

गुम रहो अभी खांसना भी मत, भूलकर भी भीड़ में छींकना नहीं...

जब तक इतिहास लिखना नहीं
अपने ही नजरों में दिखना नहीं
गुम रहो अभी खांसना भी मत
भूलकर भी भीड़ में छींकना नहीं
ओढ़ लो अभी ख़ामोशी की चादर
मंजिल मिलने तक चीखना नहीं
कीमत बढ़ने का इंतजार करो
अरे सस्ते में अभी बिकना नहीं
- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 31 मार्च 2020

मिलने के बाद ही हम दम लेते ऐसा कि, हम दोनों में इरादा अटल नहीं मिला...

हम दोनों एक-दूसरे से चाहते थे मिलना
मिलने का मगर कोई हल नहीं मिला
बमुश्किल हमें जब हल कोई मिला
मिलने का मगर तब पल नहीं मिला
समय की संयोग से हाथ लगा पल जब
तब मिलने का बराबर बल नहीं मिला
यूँ टलती ही रही तारीख हमारे मिलन की
पर मिल सकें ऐसा कोई कल नहीं मिला
मिलने के बाद ही हम दम लेते ऐसा कि
हम दोनों में इरादा अटल नहीं मिला
- कंचन ज्वाला कुंदन


सोमवार, 30 मार्च 2020

बोलने में पंचमुखी नजरिया षडकोण रहे, अरे दौलत के लिए भैया दशभुज बनो...

द्विबाहु पैदा हुए हो ये बात तो नैसर्गिक है
मैं चाहता हूँ तुम मेहनत में त्रिभुज बनो
खुद के खातिर बनो, बड़े शातिर बनो
माहिर हो जाओ चालाकी में चतुर्भुज बनो
येन-केन-प्रकारेण पूरा करो स्वार्थ अपना
अपने मतलब की आदतों में अष्टभुज बनो
बोलने में पंचमुखी नजरिया षडकोण रहे
अरे दौलत के लिए भैया दशभुज बनो
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 29 मार्च 2020

अभी अंधेरे में रह ले, गुमनामी में जी ले, सब्र रख बड़े जोरों से सवेरा भी आएगा...

हर कुत्ते का दिन आता है तेरा भी आएगा
मैं सब्र रखा हूँ क्योंकि दिन मेरा भी आएगा
तू सच्चा है तो सौदा कर अपने ईमानों का
खुद ही चलके साला कोई डेरा भी आएगा
मुसीबतों से लड़ने हथियार जुटाके रख
तुम्हें घेरने को संकट का घेरा भी आएगा
धूप से तिलमिला कर तू निकलेगा बाहर
तभी मुसीबत बनकर अंधेरा भी आएगा
अभी अंधेरे में रह ले, गुमनामी में जी ले
सब्र रख बड़े जोरों से सवेरा भी आएगा
- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

वो आबरू है फ़क़त कोई तमाशा नहीं, तू छीन करके ले लेगा ये दम है क्या...

और क्या चाहिए था कुछ गम है क्या
जितना भी मिला उतना कम है क्या
वो आबरू है फ़क़त कोई तमाशा नहीं
तू छीन करके ले लेगा ये दम है क्या
उसने जो दिया तू उतना ही मंजूर कर
उसकी पप्पी-वप्पी भी रहम है क्या
तू उसकी चाहत का पूरा सम्मान कर
लगता है तेरे मन में कुछ वहम है क्या
वो मिलने का पल था या बिछड़ने का
लो देखो मेरी आँखें जरा नम है क्या
रिलैक्स हो जा कुंदन कोई बात नहीं
कल का थोड़ा बचा हुआ रम है क्या
- कंचन ज्वाला कुंदन

बुधवार, 18 मार्च 2020

खुद्दारी का परकोटा त्यागो, सांप-सा केंचुल बदलना सीखो...

समय के साथ चलना सीखो
समय के साथ ढलना सीखो
समय की मांग है शातिर बनो
छलिया बनकर छलना सीखो
जो जले उसे और जलाओ
गरम तवे पर तलना सीखो
खुद्दारी का परकोटा त्यागो
सांप-सा केंचुल बदलना सीखो
तुम भी चलो कुचलना सीखो
तुम भी चलो मसलना सीखो
- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 17 मार्च 2020

मैं जागकर बेचैन हूँ सारी-सारी रात, तुम्हें चैन से सोकर सिर्फ ख्वाब चाहिए...

तुम्हें अपनी नींद का पूरा हिसाब चाहिए
मैं क्यों जाग रहा हूँ मुझे जवाब चाहिए
मैं जागकर बेचैन हूँ सारी-सारी रात
तुम्हें चैन से सोकर सिर्फ ख्वाब चाहिए
आखिर ये कैसा प्यार करती हो मुझसे तुम
मैं चाहता हूँ सूरज तुम्हें महताब चाहिए
ऐसा लगता है दर्द की दुकां ही खोल लूँ
बैठकर बेचता रहूँगा जिसे अज़ाब चाहिए
घुटकर नहीं अब डूबकर मरूँगा कुंदन
इन आँखों में आंसुओं का सैलाब चाहिए
- कंचन ज्वाला कुंदन

सोमवार, 16 मार्च 2020

यूँ रात-रात जागना और लंबी-लंबी बातें वहीं, समय खोने पर भी लगता है कुछ पाने जैसा

मेरी दूसरी मोहब्बत का नाम है पुराने जैसा
मैं फिर हो गया हूँ दीवाना वही दीवाने जैसा
यूँ रात-रात जागना और लंबी-लंबी बातें वही
समय खोने पर भी लगता है कुछ पाने जैसा
कभी कुछ भूल जाना, कभी कुछ छूट जाना
हो रहा है लगभग वही बीते अफसाने जैसा
महसूस कर रहा हूँ नए तरानों से ऐसा कि
दिल के तड़प में भी ख़ुशी से इतराने जैसा
चलो जी लेते हैं इस नए मोहब्बत को भी
अरे अंजाम तो वही होगा चोट खाने जैसा
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 15 मार्च 2020

मैं काला क्यों करता हूँ रोज-रोज पन्ने, उसे लिखने की इतनी जरूरत क्या है...

अरे कोई तो बता दो ये मोहब्बत क्या है
उसे रोज याद करता हूँ ये आदत क्या है
वो भूल गई होगी मुझे भूल जाना चाहिए
यूँ याद में तड़पने की मेरी चाहत क्या है
कभी बंद कमरे के मायने तलाशता हूँ
कभी खोजता हूँ ये खुली छत क्या है
मैं काला क्यों करता हूँ रोज-रोज पन्ने
उसे लिखने की इतनी जरूरत क्या है
मैं जानता हूँ कुंदन इसे तूने बिगाड़ा है
अब तू ही सुधार ये तेरी सोहबत क्या है
- कंचन ज्वाला कुंदन

शनिवार, 14 मार्च 2020

यूँ तरस से न देख मुझे बेचारा नहीं हूं, तंज न मार किस्मत का मारा नहीं हूं...

यूँ तरस से न देख मुझे बेचारा नहीं हूं
तंज न मार किस्मत का मारा नहीं हूं

हार को बदल दूंगा जीत में ये जिद है
जरा-सा टूटा जरूर हूं पर हारा नहीं हूं

मुगालता न पाल कि निगल लेगा मुझे
तेरा निवाला नहीं हूं तेरा चारा नहीं हूं

मैं मीठा नहीं ये तेरे जीभ का खोट है
मुझे पक्के से पता है मैं खारा नहीं हूं

- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

उसी ने कहा सफर के लिए तैयार हूँ चलो, फिर अंजाम का ख़्याल आते ही डर गई...

बंदिशों के बावजूद भी मुझ पर मर गई
थोड़ी आजादी क्या मिली प्यार कर गई

उसी ने कहा सफर के लिए तैयार हूँ चलो
फिर अंजाम का ख़्याल आते ही डर गई

मैं अधूरे मिलन पर आवारा हूँ आज भी
वो चेहरे पर कुछ पोतकर निखर गई

मैं खुद को समेटने में लगा हूँ अब तक
मेरी सारी उम्मीदें अचानक बिखर गई

- कंचन ज्वाला कुंदन

बुधवार, 4 मार्च 2020

उसने फेंका था नदी में कि डूब मरूं, मगर डूबकर मछली निकाला मैंने...

जो करना नहीं था कर डाला मैंने
बिल्कुल भी तनाव नहीं पाला मैंने

मैं नोंचकर आया हूँ आज जिस्म को
निकाल दिया दिल का दिवाला मैंने

पहले फ़ितूर था पाक मोहब्बत का
अब साफ़ कर दिया सब ज़ाला मैंने

उसने फेंका था नदी में कि डूब मरूं
मगर डूबकर मछली निकाला मैंने

इस बार रख दी जिस्म की डिमांड
खोल दिया मुंहफट का ताला मैंने

अच्छा है मान गई एक ही झटके में
कि बॉडी नीड का दिया हवाला मैंने

अब ये नहीं होगा कि उलझा ही रहूँ
सॉरी बना लिया आखिर निवाला मैंने

मैं पहले नहीं था बिल्कुल कुछ ऐसा
समय के सांचे में खुद को ढाला मैंने

इतना तो याद रख ये हवस नहीं था
ये किस्सा लम्बे समय तक टाला मैंने

- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 3 मार्च 2020

याद कर लेना 24 घंटों में चंद पल, इतना ही तो तुझसे कहना चाहता हूँ...

तुझसे बात यही मैं कहना चाहता हूँ
मैं तेरा था तेरा ही रहना चाहता हूँ

तुम शादी कर लो उससे हँसी-ख़ुशी
तेरे लिए ये दर्द भी सहना चाहता हूँ

तुम शौहर की बांहों में लिपटी रहना
मैं तो तकिया बनके रहना चाहता हूँ

किचन में अकेली रहोगी तो बताना
खुसफुसा के कुछ कहना चाहता हूँ

मुझे मालूम है तेरे नहाने का अंदाज
शॉवर के पानी-सा बहना चाहता हूँ

याद कर लेना 24 घंटों में चंद पल
इतना ही तो तुझसे कहना चाहता हूँ

- कंचन ज्वाला कुंदन

सोमवार, 2 मार्च 2020

तल्खी तो देखो कि दिए हुए गुलाब मांग ली, जिसमें छुपाके रखा था वो किताब मांग ली...

तल्खी तो देखो कि दिए हुए गुलाब मांग ली
जिसमें छुपाके रखा था वो किताब मांग ली

मैं कई-कई रात जागा उसके लिए खामखां
उसने आज 20 मिनट का हिसाब मांग ली

बोली- चैट में बर्बाद हुआ है मेरा 20 मिनट
जबरदस्त ढिठाई से मुझसे जवाब मांग ली

मैंने कहा- माफ़ करना गलती हो गई मुझसे
इसके बावजूद कमबख्त ने ख़्वाब मांग ली

मैंने कहा- मेरी हसीन सपने आये सो जाओ
बस इतना ही कहा था कि महताब मांग ली

मेरे सितारे गर्दिश पर थे चाँद क्या लाक़े देता
ज़ख्म पे नमक छिड़कने को अज़ाब मांग ली

- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 1 मार्च 2020

याद करने में मेरा कल भी हुआ बर्बाद, देखो आज की शाम भी यूँ निकल गया...

मैं संभलने की उम्र में जब फिसल गया
तब अंजाम क्या होता है पता चल गया

याद करने में मेरा कल भी हुआ बर्बाद
देखो आज की शाम भी यूँ निकल गया

खोया रहा उसकी यादों में नदी किनारे
पहले की तरह आज भी सूरज ढल गया

अफ़सोस है मुझे उसके बदल जाने पर
कमबख्त मैं भी तो कितना बदल गया

तू सहेज ले कुंदन बचे कीमती पलों को
उसे छोड़ दे यार जो पल गया जल गया

- कंचन ज्वाला कुंदन

शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

परेम के पचरा म झन परबे ग... छत्तीसगढ़ी गीत

परेम के पचरा म झन परबे ग...
दू डोंगा के सवारी के भइया झन करबे ग...

कर डारे बिहा त खुस र सुवारी संग
अपन बारी-बिरता अपन दुवारी संग
लकरी कस कट जा भले चाहे आरी संग
टुरी सुघ्घर परोसी बर झन मरबे ग....। दू डोंगा के सवारी...

न ऐती के होबे न ओती के होबे
मुड़ी नवाके घूंट-घूंट के रोबे
जांता म दराके जिनगी ल खोबे
जरे सेती आगी ल झन धरबे ग....। परेम के पचरा म....

तैं बड़े भइया तोरे जोहार
कहना ल मान मैं करंव गोहार
फोकटे-फोकट म मत हो खोहार
जड़कल्ला के भूर्री कस झन बरबे ग....। दू डोंगा के सवारी...

रोज-रोज घर म झगरा झन मताबे
दारू घलो ल हाथ झन लगाबे
इज्जत के धनिया बोके झन आबे
घोलहा नरियर कस भइया तैं झन सरबे ग.....। परेम के पचरा म...

- कंचन ज्वाला कुंदन©®


शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

मंसूबा तो कुछ और भी ज्यादा था, मालूम नहीं उसे क्या फायदा था...

मंसूबा तो कुछ और भी ज्यादा था
मालूम नहीं उसे क्या फायदा था

मीठा जहर घोलती रही चुपके से
भले मिश्री घोलने का वायदा था

बिछड़के मिली वो सही मायने में
उल्टा ही मोहब्बत का कायदा था

- कंचन ज्वाला कुंदन

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

अरे तू भी हो गया दीवाना कुंदन, तेरा भी जीवन सत्यानाश लगता है...

बड़ा ही ताज्जुब एहसास लगता है
कभी-कभी हास-परिहास लगता है

जो पास है उससे फ़ासला बहुत है
कोई दूर रहकर भी पास लगता है

सैकड़ों मील दूरियों के बावजूद भी
उससे करीबी का आभास लगता है

मन में पाल लो मुगालता कोई भी
फिर तो बेकार भी खास लगता है

अरे तू भी हो गया दीवाना कुंदन
तेरा भी जीवन सत्यानाश लगता है

- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

पहली मोहब्बत के गम को भुलाने, दूसरी मोहब्बत में भी डूबना पड़ा

मैं टूटता नहीं था मगर टूटना पड़ा
दौड़ते हुए अचानक रूकना पड़ा

रूक भी जाता तब बात अलग थी
धक्के खाकर औंधेमुंह गिरना पड़ा

कब तक गिरा रहता यूँ सड़क पर
किसी ने हाथ थामा तो उठना पड़ा

पहली मोहब्बत के गम को भुलाने
दूसरी मोहब्बत में भी डूबना पड़ा

ये दिल की मजबूरी या जिस्म की
प्यार के लिए फिर से झुकना पड़ा

- कंचन ज्वाला कुंदन


सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

ये कहाँ सोचा था हम दोनों ने कभी, सिर्फ ख़्वाब में ही बादाम खाना होगा...

मोहब्बत की कीमत यूँ चुकाना होगा
ज्यादा खोकर जरा सा पाना होगा
जो जरा में ही जी लिया हो जीभर
वो और तो कोई नहीं दीवाना होगा
कहती थी कि बादाम बहुत महंगे हैं
किशमिश से ही काम चलाना होगा
बांहों में भरकर गालों पे किशमिश
बस इतना ही लेने तुम्हें आना होगा
तुम बादाम लेने तो कभी मत आना
केवल किशमिश लेकर जाना होगा
ये कहाँ सोचा था हम दोनों ने कभी
सिर्फ ख़्वाब में ही बादाम खाना होगा
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

कल की छोड़ो आगे की कहानी लिखो, अपने आज की शाम को सुहानी लिखो...

कल की छोड़ो आगे की कहानी लिखो
अपने आज की शाम को सुहानी लिखो
कोई साथ नहीं देगा ये लिखकर ले लो
तुम अकेले ही दरिया की रवानी लिखो
बनाओ कुछ अपना तुम ऐसा किरदार
अपने बारे में सबकी मुंह जुबानी लिखो
पत्थर पर पत्थर तो कोई भी लिख लेगा
मैं चाहता हूँ तुम पानी पर पानी लिखो
- कंचन ज्वाला कुंदन

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

रास्ता भी खुद को बनाना पड़ता है, और खुद ही चलकर जाना पड़ता है...

रास्ता भी खुद को बनाना पड़ता है
और खुद ही चलकर जाना पड़ता है

कोई बताता भी नहीं है रास्ता यहाँ
धूल-धक्के धोखा-वोखा खाना पड़ता है

यही नियम यही नियति है यहाँ का
खुद ही खुद को जलाना पड़ता है

तेज तप्त धूप में और धधकती आग में
खुद ही खुद को तपाना पड़ता है

आम तुम्हें मिलेगा या तुम्हारे बच्चों को
मगर बाग़ तो अभी से लगाना पड़ता है

- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

ये बार-बार बदलाव कहीं साजिश तो नहीं, हुक़ूमत ने संविधान में इतना दोष पाया है...

तूने बेहोश कर रखा था अब होश आया है
हक़ के लिए लड़ने का अब जोश आया है

तुम हुक़ूमत पर हो तो गलत हुक़्म मत दो
हमारे हिस्से ही हर बार अफ़सोस आया है

क्या हमारे शब्दों का कोई औचित्य नहीं है
तूने अपने ही शब्दों का शब्दकोश लाया है

संशोधन पर संशोधन कर रहे हैं किसलिए
हुक्मरां के घटिया नीयत पर रोष आया है

ये बार-बार बदलाव कहीं साजिश तो नहीं
हुक़ूमत ने संविधान में इतना दोष पाया है

क्रांति करूँगा प्रतिक्रांति के लिए तैयार हूँ
उबलने लगा है ख़ून अब आक्रोश आया है

- कंचन ज्वाला कुंदन


बेकार ही दोहराते हो अनेकता में एकता है, अरे कौन कहता है ये भारत की विशेषता है...

बेकार ही दोहराते हो अनेकता में एकता है
अरे कौन कहता है ये भारत की विशेषता है
इक्कीसवीं सदी में भी जाति-धर्म की लड़ाई
कड़वा सच यही है ये भारत की कुरूपता है
यहाँ पर गाय दूध कम वोट ज्यादा देती है
बताओ ये बात तुम्हें बिल्कुल नहीं चुभता है
अमीर भारत गरीब भारत कहते हो एक है
ये दोनों अलग-अलग है ये साफ़ दिखता है
हम एक हैं तो आये दिन दंगे क्यों, पंगे क्यों
कोरा अफवाह है ये भारत की विविधता है
- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

अरे छोड़ो भी कुंदन उसे जाने दो यार, किसी और को चुन ली है हमदम उसने...

गनीमत है खाई नहीं थी कसम उसने
अच्छा है वापस खींच ली कदम उसने
हाँ मैं बच गया मकड़जाल में फंसने से
मुझे छोड़कर की है मुझपे रहम उसने
उसी ने उलझाया उसके बाद आखिर में
उलझन धीरे-धीरे की है फिर कम उसने
मैं संभालकर रखूंगा, सहेजकर रखूंगा
मुझे जितना भी दी सफर में गम उसने
अरे छोड़ो भी कुंदन उसे जाने दो यार
किसी और को चुन ली है हमदम उसने
- कंचन ज्वाला कुंदन

सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

बरसी है आज उस बीती हसीं रात की...

बरसी है आज उस पहली मुलाकात की
बरसी है आज जलाये हुए जज्बात की
ये वार्षिक श्राद्ध की फिर आ गई तिथि
बरसी है आज उस बीती हसीं रात की
अकेले ही ढो रहा हूँ बोझ कई सालों से
ख़ुशनुमा मंज़र और गम-ए-हालात की
आज के दिन मैं रो पड़ता हूँ हर साल
पूछना मत मुझे पीड़ा है किस बात की
जिसकी बांहों में हो वही शख्स ठीक है
रंग उसी ने जमाया मंडप पे बारात की
सही फैसला था तुम्हारा मुझे छोड़ने का
मिला जो सिला मेरी घटिया औकात की
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 16 फ़रवरी 2020

मैं सोचता ही गलत था कि सीधी उंगली डाला जाए, सीधी उंगली से नहीं घी टेढ़ी उंगली से निकाला जाए...

मैं सोचता ही गलत था कि सीधी उंगली डाला जाए
सीधी उंगली से नहीं घी टेढ़ी उंगली से निकाला जाए

मेरा भ्रम था कि मेहनत से कुछ मुकाम हासिल होगा
अब सोचता हूं मुगालता बिल्कुल भी नहीं पाला जाए

बहुत कर लिया बेवकूफी मैंने तब जाकर समझ आया
जरा भी संवेदना नहीं विचारों को क्रूरता में ढाला जाए

नियम तो केवल एक है और शाश्वत है हर दफ्तरों का
जो बोझिल है पहले से उस पर और बोझ डाला जाए

गोरे अंग्रेजों के अवैध संतान बन बैठे हैं मालिक जब
सोच तो वही है शोषण का कहो बात कैसे टाला जाए

- कंचन ज्वाला कुंदन

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

गहराई से सोचने पर शक गहरा होता है, शहादत में शामिल है ये गिरगिट सरकार तक...

सरहद से लेकर सीमा के पार तक
है बारूद की ढेर पे लहू की धार तक

शहादत पर शहादत की आए दिन खबरें
खून की आंसू से भीगा है अखबार तक

बताओ ये शहादत कब तक जारी रहेगा
जवानों की जीत या आतंकियों की हार तक

आखिर हमसे क्या चाहते हैं ये आतंकी
कोई क्यों नहीं पहुंचता उनके विचार तक

गहराई से सोचने पर शक गहरा होता है
शहादत में शामिल है ये गिरगिट सरकार तक

- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

हफ्तेभर का प्यार और हफ्तेभर का व्यापार : तुम्हें गुलाब और गुलाबो इतना ही पसंद है तो...

ये हफ्तेभर का प्यार नहीं
ये हफ्तेभर का व्यापार है
इस हफ्तेभर में
क्या-क्या बिका
समान कितना बिका
जरा बिजनेस के गणित का भी
गुणा-भाग लगा लो
चॉकलेट और टेडी बियर
गुलाबों की बिक्री का भी
पूरा हिसाब लगा लो
मेरे बेरोजगार साथियों
तुम्हें गुलाब और गुलाबो
इतना ही पसंद है तो
इस साल गुलाब देने के बजाय
गुलाब की दुकान सजा लो
यदि तुमने
व्रत-पर्व
तीज-त्यौहार
खुशी के मौके
गमगीन माहौल
भारतीय दर्शन
पाश्चात्य सभ्यता
सबका बिजनेस मॉडल
सीख लिए न
तब तुम्हारे चाहने पर
कई गुलाबो तुम्हारे कदमों में होगी
अभी अपने आप से
बस इतना ही पूछो
अपने हाथ में ये गुलाब लेकर
तुम क्यों भटक रहे हो...?
- कंचन ज्वाला कुंदन

बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

4 सौ किसानों को अब तक नहीं मिला टोकन, आक्रोशित किसानों ने समिति प्रबंधक और पटवारियों को बनाया बंधक

कवर्धा. तरेगांव के 4 सौ पंजीकृत किसानों को अब तक टोकन नहीं मिला है. आक्रोशित किसानों ने आज समिति प्रबंधक और पटवारियों को बंधक बना लिया. किसानों ने तरेगांव धान उपार्जन केंद्र के बाहर जमकर नारेबाजी की. टोकन पर्ची की मांग को लेकर तरेगांव के किसान आज बेहद उग्र नजर आये. 

मतलब क्या है अब बताओ दिल्ली के इंकलाब का

मायने क्या है समझाना जरा इस करारा जवाब का
मतलब क्या है अब बताओ दिल्ली के इंकलाब का

चकनाचूर हुआ होगा तूफान, लहर जाने क्या-क्या
मजाक उड़ गया बेहद भद्दा मोदीजी के ख्वाब का

अचार डालो मर्तबान में सब अर्जी-फर्जी नारों का
स्वागत करो भक्तों अब इस राजनीति नायाब का

गाल पर बिना तमाचा मारे बदला ऐसे भी लेते हैं
अरे जवाब ही नहीं है दिल्ली वालों के हिसाब का

- कंचन ज्वाला कुंदन

गाल पर बिना तमाचा मारे बदला ऐसे भी लेते हैं, अरे जवाब ही नहीं है दिल्ली ...