शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

ये बार-बार बदलाव कहीं साजिश तो नहीं, हुक़ूमत ने संविधान में इतना दोष पाया है...

तूने बेहोश कर रखा था अब होश आया है
हक़ के लिए लड़ने का अब जोश आया है

तुम हुक़ूमत पर हो तो गलत हुक़्म मत दो
हमारे हिस्से ही हर बार अफ़सोस आया है

क्या हमारे शब्दों का कोई औचित्य नहीं है
तूने अपने ही शब्दों का शब्दकोश लाया है

संशोधन पर संशोधन कर रहे हैं किसलिए
हुक्मरां के घटिया नीयत पर रोष आया है

ये बार-बार बदलाव कहीं साजिश तो नहीं
हुक़ूमत ने संविधान में इतना दोष पाया है

क्रांति करूँगा प्रतिक्रांति के लिए तैयार हूँ
उबलने लगा है ख़ून अब आक्रोश आया है

- कंचन ज्वाला कुंदन


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