रास्ता भी खुद को बनाना पड़ता है
और खुद ही चलकर जाना पड़ता है
और खुद ही चलकर जाना पड़ता है
कोई बताता भी नहीं है रास्ता यहाँ
धूल-धक्के धोखा-वोखा खाना पड़ता है
धूल-धक्के धोखा-वोखा खाना पड़ता है
यही नियम यही नियति है यहाँ का
खुद ही खुद को जलाना पड़ता है
खुद ही खुद को जलाना पड़ता है
तेज तप्त धूप में और धधकती आग में
खुद ही खुद को तपाना पड़ता है
खुद ही खुद को तपाना पड़ता है
आम तुम्हें मिलेगा या तुम्हारे बच्चों को
मगर बाग़ तो अभी से लगाना पड़ता है
मगर बाग़ तो अभी से लगाना पड़ता है
- कंचन ज्वाला कुंदन
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