शनिवार, 4 अप्रैल 2020

ऑनलाइन मिले और ऑफ़लाइन बिछड़ गए, एक-दूसरे के पते पर पैगाम तक नहीं पहुंचा

शुक्र है कि सफर मकाम तक नहीं पहुंचा
अच्छा हुआ रिश्ता अंजाम तक नहीं पहुंचा

हमारे दरमियाँ जो था मैं उसे क्या नाम दूँ
सुबह जो शुरू हुआ शाम तक नहीं पहुंचा

ऑनलाइन मिले और ऑफ़लाइन बिछड़ गए
एक-दूसरे के पते पर पैगाम तक नहीं पहुंचा

ख़ैर मनाओ तुम भी ख़ैर मना रहा हूँ मैं भी
बिछड़ने का दर्द भी जाम तक नहीं पहुंचा

हम अजनबी थे, हैं, और रहेंगे अजनबी ही
अच्छा है रिश्ता किसी नाम तक नहीं पहुंचा

- कंचन ज्वाला कुंदन

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