बुधवार, 4 मार्च 2020

उसने फेंका था नदी में कि डूब मरूं, मगर डूबकर मछली निकाला मैंने...

जो करना नहीं था कर डाला मैंने
बिल्कुल भी तनाव नहीं पाला मैंने

मैं नोंचकर आया हूँ आज जिस्म को
निकाल दिया दिल का दिवाला मैंने

पहले फ़ितूर था पाक मोहब्बत का
अब साफ़ कर दिया सब ज़ाला मैंने

उसने फेंका था नदी में कि डूब मरूं
मगर डूबकर मछली निकाला मैंने

इस बार रख दी जिस्म की डिमांड
खोल दिया मुंहफट का ताला मैंने

अच्छा है मान गई एक ही झटके में
कि बॉडी नीड का दिया हवाला मैंने

अब ये नहीं होगा कि उलझा ही रहूँ
सॉरी बना लिया आखिर निवाला मैंने

मैं पहले नहीं था बिल्कुल कुछ ऐसा
समय के सांचे में खुद को ढाला मैंने

इतना तो याद रख ये हवस नहीं था
ये किस्सा लम्बे समय तक टाला मैंने

- कंचन ज्वाला कुंदन

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