सरहद से लेकर सीमा के पार तक
है बारूद की ढेर पे लहू की धार तक
शहादत पर शहादत की आए दिन खबरें
खून की आंसू से भीगा है अखबार तक
बताओ ये शहादत कब तक जारी रहेगा
जवानों की जीत या आतंकियों की हार तक
आखिर हमसे क्या चाहते हैं ये आतंकी
कोई क्यों नहीं पहुंचता उनके विचार तक
गहराई से सोचने पर शक गहरा होता है
शहादत में शामिल है ये गिरगिट सरकार तक
- कंचन ज्वाला कुंदन
है बारूद की ढेर पे लहू की धार तक
शहादत पर शहादत की आए दिन खबरें
खून की आंसू से भीगा है अखबार तक
बताओ ये शहादत कब तक जारी रहेगा
जवानों की जीत या आतंकियों की हार तक
आखिर हमसे क्या चाहते हैं ये आतंकी
कोई क्यों नहीं पहुंचता उनके विचार तक
गहराई से सोचने पर शक गहरा होता है
शहादत में शामिल है ये गिरगिट सरकार तक
- कंचन ज्वाला कुंदन
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