बरसी है आज उस पहली मुलाकात की
बरसी है आज जलाये हुए जज्बात की
बरसी है आज जलाये हुए जज्बात की
ये वार्षिक श्राद्ध की फिर आ गई तिथि
बरसी है आज उस बीती हसीं रात की
बरसी है आज उस बीती हसीं रात की
अकेले ही ढो रहा हूँ बोझ कई सालों से
ख़ुशनुमा मंज़र और गम-ए-हालात की
ख़ुशनुमा मंज़र और गम-ए-हालात की
आज के दिन मैं रो पड़ता हूँ हर साल
पूछना मत मुझे पीड़ा है किस बात की
पूछना मत मुझे पीड़ा है किस बात की
जिसकी बांहों में हो वही शख्स ठीक है
रंग उसी ने जमाया मंडप पे बारात की
रंग उसी ने जमाया मंडप पे बारात की
सही फैसला था तुम्हारा मुझे छोड़ने का
मिला जो सिला मेरी घटिया औकात की
मिला जो सिला मेरी घटिया औकात की
- कंचन ज्वाला कुंदन
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