तीन बार खाना चार बार चाय पीता हूँ
कुछ भी हो अपने उसूलों पर जीता हूँ
कुछ भी हो अपने उसूलों पर जीता हूँ
और ये उसूल क्या है तो कुछ भी नहीं
कभी आलू कभी अंडा कभी पपीता हूँ
कभी आलू कभी अंडा कभी पपीता हूँ
मैं आंदोलन चला रहा हूँ व्हाट्सएप पर
इधर फटे जूते का टूटा हुआ फीता हूँ
इधर फटे जूते का टूटा हुआ फीता हूँ
मैदान में आते ही बनूँगा भीगी बिल्ली
फेसबुक में गुर्रा रहा हूँ मैं ही चीता हूँ
फेसबुक में गुर्रा रहा हूँ मैं ही चीता हूँ
मैं टिकता नहीं हूँ एक ही विचार पर
मैं खुद ही खुद पर लगाता पलीता हूँ
मैं खुद ही खुद पर लगाता पलीता हूँ
- कंचन ज्वाला कुंदन
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