मंसूबा तो कुछ और भी ज्यादा था
मालूम नहीं उसे क्या फायदा था
मालूम नहीं उसे क्या फायदा था
मीठा जहर घोलती रही चुपके से
भले मिश्री घोलने का वायदा था
भले मिश्री घोलने का वायदा था
बिछड़के मिली वो सही मायने में
उल्टा ही मोहब्बत का कायदा था
उल्टा ही मोहब्बत का कायदा था
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें