शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

मंसूबा तो कुछ और भी ज्यादा था, मालूम नहीं उसे क्या फायदा था...

मंसूबा तो कुछ और भी ज्यादा था
मालूम नहीं उसे क्या फायदा था

मीठा जहर घोलती रही चुपके से
भले मिश्री घोलने का वायदा था

बिछड़के मिली वो सही मायने में
उल्टा ही मोहब्बत का कायदा था

- कंचन ज्वाला कुंदन

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