कहे कुंदन कविराय
शुक्रवार, 31 जनवरी 2020
आज भी उलझा हूँ कुछ सुलझाने के लिए, आकाश खो चुका हूँ मुट्ठीभर पाने के लिए...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें