सबो संगवारी मन ल मोर डहर ले जय जोहार. संगवारी हो आज में एक ठन छत्तीसगढ़ी गीत सुनाना चाहत हंव...मोर लिखे गीत, गजल, कविता कोनो भी रचना के आपमन ल कोई उपयोगिता समझ म आही त जरुर सुझाव दुहु...बिना कोई लाग-लपेट बात के अब सीधा सुनव मोर ये गीत... रचना के शीर्षक हे " तैं रोथस काबर रे..."
तैं रोथस काबर रे...
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
पढ़-लिख के भईया, सपना सिरजाले
अपन जिनगानी ल उज्ज्वल बनाले
अजगर कस अल्लर सोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
तैं जिनगी ल अब तक बदल नई पाय
का बात हे मोरे समझ नई आय
गदहा कस बोझा ढोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
जांगर के भरोसा म जिनगी हे भईया
करम नई करबे त डूब जाही नईया
अइसन भी कोढ़िया होथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
चाहबे त जिनगी फुलवारी हो जाही
नई त आंखी म चुभही भारी हो जाही
काँटा के बीजा बोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
- कंचन ज्वाला कुंदन
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