सोमवार, 7 नवंबर 2016

चीख रहा है हर आदमी आज मुस्कुराते हुए

रो रहा है हर आदमी आज गाते हुए
चीख रहा है हर आदमी आज मुस्कुराते हुए
मैं क्या कहूं मेरे लोकतंत्र का फसाना
मैं झुकना नहीं चाहता शरमाते हुए
मुझे ऐसा लगता है ये मक्खन-मखमली भाषण
जैसे कोड़े बरसा रहें हों कोई फूल बरसाते हुए
थन से खून आते तक दुहा नेताओं ने इसे
फिर लोकतंत्र है कम्बख्त आज भी इठलाते हुए
विकास हो रहा है बेतरतीब मौत के मुहानों पर
कब तक चुप रहोगे 'कुंदन' इस बात को झुठलाते हुए
- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

जिस्म हो जिस्म सही, कभी तो लगो रुहानी भी

जिस्म का मंडी कहीं, जिस्म का बाजार भी
अंग-अंग बिकता जिस्म का, जिस्म का औजार भी

जिस्म के लिए कहीं चल गया चाकू, कहीं तलवार भी
गोलियां चलने को आतुर कहीं तमंचे तैयार भी

जिस्म कहीं नजरबंद है तो कहीं बाजारु भी
झमेले-दर-झमेले कहीं जान पे उतारु भी

एकाध कोई आदमी भी समझ ले तो अच्छा है
वरना मैं जानता हूं मेरी बात है बहुत गंवारु भी

जिस्म लूट गया कहीं सरेआम, कहीं लग गया बोली भी
खूब हुआ खून-खराबा कहीं खून की होली भी

कहीं नोंचा गया तंग कपड़े नाबालिग का जिस्म
इत्ते से मन न भरा तो चला धांय-धांय गोली भी

जिस्म बन गया कभी आग तो कभी बाढ़ का पानी भी
जिस्म के कारण जेल में सड़ रही कई जवानी भी

जिस्म हो जिस्म सही, कभी तो लगो रुहानी भी
लिखना चाहता हूं फिर से 'कुंदन' एक मीरा की कहानी भी

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

बुधवार, 2 नवंबर 2016

इसके आगे भी संसार है

बुरे विचारों के इर्द-गिर्द
कामुक संवेगों के आस-पास
हे मानव!
तेरी जीवन घेरे में है
तोड़ दे ये चक्र
और उबर जा
बाहर आ जा
वरना ये काम की लपट
तेज तप्त ज्वाला
तुझे ले डूबेगी-2
एक बार इस कुएं से
बाहर आकर देख

इसके आगे भी संसार है
इसके आगे भी संसार है

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

छण दुखों का , छण सुखों का है गजब संसार भला

छण दुखों का , छण सुखों का
है गजब संसार भला

पर निरंतर ही दुखों में
किसका जीवन है पला

आज गम तो कल ख़ुशी है
प्रकृति नाटक में ढला

चाहे प्रसन्न हों या निराश
हो अँधेरा या प्रकाश

दोनों में ही ढलने की आदत
है मनुज जीवन कला

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

मुकद्दर के सिर्फ इशारे होते हैं


  • अनजाने रिश्ते भी प्यारे होते हैं
  • जितने नए उतने  न्यारे होते हैं

  • जिन्हें छूटना था छूट जाता है 
  • तुम्हें मिला जो तुम्हारे होते हैं

  • जो चाहते हैं पाते नहीं , जो मांगते हैं मिलता नहीं 
  • किस्मत  भी अजीब हमारे होते हैं

  • कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं लोग 
  • वक्त के कैसे नज़ारे होते हैं 

  • तुम हर पल तैयार रहो 'कुंदन' 
  • मुकद्दर के सिर्फ इशारे होते हैं 

  • - कंचन ज्वाला 'कुंदन' 

बुधवार, 26 अक्टूबर 2016

टूट जाते हैं बहुत लोग संभल नहीं पाता है हर कोई

तुम सचमुच में चाहते हो अमन तो वापस गांव चल दो
इस दुनिया में नहीं है अमन का शहर कोई

काँटों का, अंधेरों का और भी बहुत डर है सफर में
ये जान लो की बिना डर का नहीं डगर कोई

लड़खड़ाने का दौर चलता है हरेक की जिंदगी में
टूट जाते हैं बहुत लोग संभल नहीं पाता है हर कोई

भटकने का दौर अक्सर होता ही ऐसा है
कोई हो जाता है बेघर , पहुँच जाता है अपना घर कोई

तुम्हारा भी नाम फलक पर सितारा बनकर चमके
अरे! तू भी तो 'कुंदन', काम ऐसा कर कोई

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

जो आज भी तने-तनहा है 'कुंदन'


  • जिंदगी का पिटारा खोलो जरा 
  • क्या-क्या किये बोलो जरा 

  • हम भी डूब जाएँ, सराबोर हो जाएँ 
  • प्यार का कुछ ऐसा रस घोलो जरा 

  • ऐसा क्या हो गया कोई अंदर से रो गया 
  • तुमने क्या कह दिया था तोलो जरा

  • किसी को कुछ भी कह देने की आदत छोडो
  • अपनी गिरेबान भी टटोलो जरा

  • जो आज भी तने-तनहा है 'कुंदन'
  • उसका किसी साअतें  हो लो जरा

  • -कंचन ज्वाला 'कुंदन'
  •  

कभी शबनम कभी शोले कभी गोले बन गए लोग

  • कभी वाचक कभी पाठक कभी लेखक बन गए लोग
  • कभी मगर कभी मछली कभी मेंढक बन गए लोग
  • कभी रेत कभी खेत कभी लकीर बन गए लोग
  • कभी शराबी कभी संत कभी फ़क़ीर बन गए लोग
  • कभी नेक कभी बद कभी लोभी बन गए लोग
  • कभी आलू कभी अंडा कभी गोभी बन गए लोग
  • कपडे की तरह बदलते हुए चोले बन गए लोग
  • कभी शबनम कभी शोले कभी गोले बन गए लोग
  • - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

यह संसार आग की भट्ठी है 'कुंदन'

  • दूर खड़ा कोई राह क्यों रोकता है
  • उन्हें क्या गरज है कि टोकता है
  • तुम चलो अपने राह इतना ही ठीक है
  • कुत्ते की आदत है कुत्ता है भौंकता है
  • अतीत जो आवाज कर करके कहती है
  • जो आया है वो जायेगा, बात यहीं पुख्ता है
  • यह संसार आग की भट्ठी है 'कुंदन'
  • यहाँ जिंदगी हर कोई आग में ही झोंकता है
  • - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

छोटी सी फुंसी कभी फोड़ा बन जायेगा सोचा न था

जिंदगी घोड़ा बन जायेगा सोचा न था
जिंदगी भगोड़ा बन जायेगा सोचा न था

हे मालिक ! तेरे बन्दों पर तो रहम कर
सब तेरे हाथों का हथौड़ा बन जायेगा सोचा न था

इस जिंदगी को जहन्नुम कहूँ या जन्नत
हर आदमी को पीटने कोड़ा बन जायेगा सोचा न था

जिन्दगी मेरी मवाद की मानिंद बहती है 'कुंदन'
छोटी सी फुंसी कभी फोड़ा बन जायेगा सोचा न था

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

तुम्हारी नजर का फरेब है , मैं बगुला लगता हूँ

तुम्हें कभी बुरा लगता हूँ, कभी भला लगता हूँ
कभी मुंहफट कभी दोगला लगता हूँ

मैं हंस हूँ मगर, तुम आकर देख लो
तुम्हारी नजर का फरेब है , मैं बगुला लगता हूँ

मैं बीकानेर का सीलबंद मिठाई हूँ
तुम कहती हो बाजारू हूँ, खुला लगता हूँ

अरे मैं तो साबुत-साबुत चना हूँ
फिर क्यों कहती हो ढुलमुला लगता हूँ

-कंचन ज्वाला 'कुंदन'

वह रूह नहीं जिस्म थी... देखा करीब से वो काया बहुत

इधर वो आया, वो आया बहुत
हकीकत कम वो साया बहुत

मैं मुर्ख था उसे मेरा समझा
महज थी वो माया बहुत

मैं अब भी करता हूँ महसूस उसे
हवा ने खुशबु लाया बहुत

उमड़-उमड़ कर,  घुमड़- घुमड़ कर
यादों में वो छाया बहुत

वह रूह नहीं जिस्म थी
देखा करीब से वो काया बहुत

नहीं जानता मैं कोई गीत-गजल
मैंने क्या गुनगुनाया, क्या गाया बहुत

क्यों मैंने पीछा किया
वक्त का हुआ जाया बहुत

हुस्न का ही ये हस्र है जनाब
मैंने वो चोट खाया बहुत


क्या पाया मुझे पता नहीं 'कुंदन'
पर जो भी पाया, मैं पाया बहुत

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

रविवार, 23 अक्टूबर 2016

इंसाँ की बुलंदी

मेरे पैरों में पर आ चुके हैं
मैं आसमां में उड़ता हूँ
ये सोच मन मचलते हैं

यकीं नहीं होगा तुझे
देख मेरे कदम
अब हवा में चलते हैं

मेरी बुलंदी तुझे क्या मालूम
मैंने धरती को
आसमां से जोड़ दिया

देख मैं कितना ऊँचा हूँ
 मेरे सीने कितने चौड़े हैं

मेरे हाथ कितने लंबे हैं
मेरे पैर कितने दौड़े हैं

देख मैंने दुनिया को
एक कर दिया

वसुधैव कुटुम्बकम का
उच्चतम भाव भर दिया

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

यहीं एक तरीका है बंधन से छूटने का

मोह रूपी चने को
जला डालो

ज्ञान रूपी अग्नि में
तपा डालो

फिर कभी न उगेगी
कभी न जनेगी

चाहे जितना भी
खपा डालो

यहीं एक तरीका है
बंधन से छूटने का

जीवन- मरण के चक्र से
 स्वतः ऊपर उठने का

_ कंचन ज्वाला 'कुंदन'

भौंरे से जीना सीखा


मैं तो जा ही रहा था
ये मत पूछना कि कहाँ

किन्तु राह में एक
गुलाब के पौधे को देख

मरने के बुरे विचार से झिझक गया
मैं वहीँ ठिठक गया

देखा की भौंरें आज भी
गुलाब के इर्द- गिर्द मंडरा रहे हैं

क्योंकि उन्हें आशा है
बीता बहार जरूर आएगा

मन फिरा मैं फिर गया
वहीँ से मैं मुड़ गया

और जिंदगी को...
एक नए सिरे से जीने लगा

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

बेचारी ये कविता

मेरी इस कविता के
न हाथ है न पाँव

लड़खड़ाती क़दमों से
खोज रही है छाँव

सुखी नदियों में भी
जरुरत पड़ रही इसे नाव की

ये भटक रही है दर- दर
इसे तलाश अपने गाँव की

तपते इस मौसम में
हारी ये कविता

तड़पकर बिलखती
बेचारी ये कविता

कराहने को भी मुंह नहीं
दुर्भाग्य इसके पास

खड़ी है ये सबके सामने
बनकर जिन्दा लाश

सहानुभूतियाँ भी मेरी बेअसर
इसके  पास नहीं है कान

जलते मरुस्थल में
अधमरी है जान

भटक रही आजाद है
अपने चेहरे की तलाश में....


देख 'कुंदन' इसकी  दुर्दशा
आँखें भी नहीं पास में...

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

तो दलदल भरे संसार से जल्दी उबर जाता

तू सोये रह अहंकार मेरे भीतर ही
तेरी नींद न टूटे तो अच्छा है

लोरियां सुनाते, थपकियाँ देते
सुलाए रख अपने सुपुत्र क्रोध को भी

तेरी नींद उचट जाती है तो क्या करूँ
नींद की गोलियां जो बना नहीं पाया हूँ तेरे लिए

मेरी भूल थी कि मैंने गोलियां मेरे नींद के लिए बनाई
वो भी जो तेरे कारण काम नहीं आई
 मैं मानव होकर भी.....
जो जरुरी है उसे कर नहीं पाता हूँ
अनावश्यक उलझनों में शक्ति खपाता हूँ

काश! काम- क्रोध, मोह- माया, तृष्णा की दवा बना पाता
तो दलदल भरे संसार से जल्दी उबर जाता

- कंचन ज्वाला 'कुंदन' 

यूँ ही उम्रभर मानवी जीवन खोता रहा

कितना किया कोशिश
पर बच न सका

काम- क्रोध लोभ और मोह से
अहंकार- ईर्ष्या, विछोह से

लड़ता रहा बनाकर बहाना
पंथ- प्रान्त, भाषा- वेश को
भुला न सका पल भर
मद- मत्सर, राग- द्वेष को

जलता रहा काम में
अग्नि से तेज

किन्तु होता रहा सदा
अपना चेहरा निस्तेज

मरता रहा क्रोध के कारण
लोभ ने गिराया शत बार अकारण

मोह ने मोहकर बनाया संसारी
काटता रहा बद की बट्टा, बनकर पंसारी

यूँ ही उम्रभर
मानवी जीवन खोता रहा

इस चक्र में फंसकर
तकलीफ सदा ढोता रहा

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

लो थाम लो मशालें भूल सुधारो जीवन गढ़ो

लो थाम लो मशालें
अंधियारे से लड़ो

लो थाम लो मशालें
रास्ता देखो आगे बढ़ो

लो थाम लो मशालें
भूल सुधारो जीवन गढ़ो

लो थाम लो मशालें
समुद्र लाँघो पर्वत चढ़ो

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

लोमड़ी की चालाकी अभी टुटा नहीं है

लोग अब भी नादान हैं
लोग अब भी अंजान हैं

वह सबसे अलग है
सबसे सुपर है

हर प्राणियों से आगे है
हर प्राणियों से ऊपर है

मगर कुत्ते की तरह भौंकना
अभी छूटा नहीं है

लोमड़ी की चालाकी
अभी टुटा नहीं है

बन्दर जैसा लालच
अभी भी बाकी है

फिल्म अभी शुरू नहीं
ये तो पहली झांकी है

गधे का बोझ
अभी गया नहीं है

ये किस्सा पुराना है
नया नहीं है

हाथी सा घमंड
अभी घटा नहीं है

इसीलिए भव का चक्कर
अभी कटा नहीं है

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

मगर हम चाहें तो उड़ सकते हैं

चलना- फिरना तो
विरासत में शामिल है

दौड़ना- भागना भी
हमें हासिल है

मगर हम चाहें तो
उड़ सकते हैं

उड़ने की भी
माद्दा रखते हैं

जो पंखों से उड़े
उन्हें पक्षी कहते हैं

जो हौसलों से उड़े
उन्हें आदमी कहते हैं

   - कंचन ज्वाला 'कुंदन' 

बुधवार, 21 सितंबर 2016

राहें खोजो-राहें खोजो आसमां तक जाने की.. राही सोचो-राही सोचो तारें तोड़कर लाने की

राहें खोजो-राहें खोजो
आसमां तक जाने की

राही सोचो-राही सोचो
तारें तोड़कर लाने की

बातें करो-बातें करो
मंजिल तक जाने की

जुगत भिड़ाओ-साधन जुटाओ
मंजिल को पाने की

वादा करो-वादा करो
कीमत चुकाने की

सामने आओ-आदत छोडो
छुपने-छुपाने की

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

Find Find ways-ways
To go to the sky

Think Think-Rahi Rahi
Breaking bringing wires

Talk-talk
To floor

Bhidhao-tool gadget Jutao
To get to the floor

Promise-Promise
To pay

Come face-habit quit
Hide-hide

- Kanchan Jwala 'kundan'

एकांत वरदान है हमारे लिए आओ एकांत में बातें करें

एकांत वरदान है हमारे लिए
आओ एकांत में बातें करें

ये खुदा का एहसान है हमारे लिए
आओ एकांत में बातें करें

ये समय महान है हमारे लिए
आओ एकांत में बातें करें

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

Solitude is the gift to us
Lets speak in solitude

The favor of God for us
Lets speak in solitude

This time is great for us
Lets speak in solitude

- Kanchan Jwala 'kundan'

हवा का हर झोंका लोरी जैसा लगेगा... मेंढक का टर्र-टर्र गीत नजर आएगा

नजर बदल लो नज़ारे बदल जायेगा
प्रकृति का कोना-कोना मुस्काते नजर आएगा

हर नजर 'कुंदन' हमारी सोच पर टिकी है
कोई जाते हुए आदमी भी आते नजर आएगा

हवा का हर झोंका लोरी जैसा लगेगा
मेंढक का टर्र-टर्र गीत नजर आएगा

बारिश की हर बूँद खुशियों सी लगेगी
कौआ का काँव-काँव मीत नजर आएगा

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

Change eye views will change
Nook-nook of nature seems to be a smile

Every eye 'kundan' our thinking is based on
On the way we will see a man come

Every gust of wind would feel like a lullaby
The song will appear frog croaking

Every drop of rain will be little happiness
Crow's caw will appear Meet

- Kanchan Jwala 'kundan'

उसे पाने के लिए खुद को 'कुंदन' तिल-तिल जला दो सारा खून निचोड़ दो

उलझनों का कुचक्र तोड़ दो
ओछे-थोथे कामों को छोड़ दो

जन्म महान कार्य के लिए हुआ है
अपना कदम महानता से जोड़ दो

मन उधर लगाओ ऊर्जा उधर खपाओ
अपना रुख मंजिल की ओर मोड़ दो

उसे पाने के लिए खुद को 'कुंदन'
तिल-तिल जला दो सारा खून निचोड़ दो

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

Break the vicious cycle of confusion
Leave frivolous, superficial things

For the great work is born
Add your step from greatness

The mind and give energy therefrom Kpao
Your attitude toward the floor, turn

To get him to 'kundan'
Burn all the blood squeeze two mole-mole

- Kanchan Jwala 'kundan'

साथ में रखो माचिस हाथ में रखो बीड़ी

कर देगा सिगरेट
जिंदगी मटियामेट

नशा के नाम पे दारू
मेरी जान पे उतारू

करती है भांग
मौत की मांग

ड्रग्स हीरोइन और कोकिन
मौत की महबूब मौत के शौकीन

देगा एक दिन धोखा देगा एक दिन फटका
खाते रहो-खाते रहो बड़े चाव से गुटखा

साथ में रखो माचिस हाथ में रखो बीड़ी
मौत तक पहुँचने की ये भी है एक सीढ़ी

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

Will make cigarettes
Vanquishing life

Drug name on the liquor
Bent on my life

Does cannabis
Seeking death

Drugs, heroine and cocaine
Mehboob death fond of death

Shot a day will one day will cheat
Be Be-account account fondly Ghutka

Put Put the pot in hand with matches
Death is also a ladder to reach

- Kanchan Jwala 'kundan'

धैर्य रखो 'कुंदन' मंजिल के पाने तक

बीज डाल दो चुनकर
चुनिन्दा जमीन में

इंतज़ार करो
कोंपल के आने तक

इंतज़ार करो
उन्हें बढ़ जाने तक

इंतज़ार करो
फूल खिल  जाने तक

इन्तजार करो
फल लद जाने तक

धैर्य रखो 'कुंदन'
मंजिल के पाने तक

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

Dump by choosing seeds
Selected in the ground

Wait
Springer until

Wait
Inflate them until

Wait
Flowers bloom until

Wait
Fruit until paradigms

Patience 'kundan'
Floor up to

- Kanchan Jwala 'kundan'

तुम तैयार रहो 'कुंदन' मूरत बन जाओगे...

एक शिल्पकार ने
हथौड़ी और छेनी से

जैसे ही एक पत्थर को मारा
वह टूट गया

दूसरे पत्थर को मारा
वह रूठ गया

तीसरे पत्थर को मारा
उसका पसीना छुट गया

चौथे पत्थर को मारा
वह मार खाने में जुट गया

उस पत्थर की तो पूजा हो चली
उस शिल्पी ने उसे
ऐसे सूरत ख़ास दी

उस पत्थर की
मूरत तराश दी

छेनी हथौड़ी से जो डरोगे
ठोकर खाते फिरोगे

तुम तैयार रहो 'कुंदन'
मूरत बन जाओगे

समय की हथौड़ी
संघर्स की छेनी से
खूबसूरत बन जाओगे

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

By a craftsmanHammer and chiselAs soon as a stone hithe breaksAnother stone hitHe was angryThe third stone hitHis sweat was leftThe fourth stone hitHe spearheaded beatenThe stone toward worshipThe craftsman himThe appearance of such specialThat stoneThe statue carvingChisel hammer which frightenedStumble ye returnBe prepared you 'kundan'The image will becomeHammer timeThe chisel SngrsBecome beautiful- Kanchan jwala 'kundan'

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

हाथों में मेरी रेखाएं क्यों हैं

कभी-कभी ये सवाल उठता है
आँखों ने सपने सजाये क्यों हैं

कभी-कभी ये सवाल उठता है
हाथों में मेरी रेखाएं क्यों हैं

आदमी संसार में निकल क्यों है
खुदा ने आदमी बनाये क्यों हैं

जलने-जलाने में आखिर क्या मजा है
लोगों ने दिल जलाये क्यों हैं

मुसीबतों को मारने का मानव क्या मशीन है
अक्सर मैं सोचता हूँ बलाएं क्यों हैं

- कंचन ज्वाला 'कुंदन' 

Sometimes the question arises
Why are decorated eyes dreams

Sometimes the question arises
Why are my lines in the hands

Why in the world is the man out
Why God made the man

Have fun in the end burn-burn
Why are they burning heart

What is human killing machine woes
Often I wonder why Blaan

- Kanchan jwala 'kundan'


मानवता की आओ मधुशाला खोलें

लोगों में नफरत का आग बढ़ गया है
लोगों में नफरत का नशा चढ़ गया है

प्रेम का आओ पाठशाला खोलें
प्रेम ही पढ़ें और प्रेम ही पढ़ाएं

स्वार्थ की हर तरफ आंधियां चल रही है
शैतानपरस्त बिजलियाँ गिर रही है

मानवता की आओ मधुशाला खोलें
मानवता ही पिएं मानवता ही पिलाएं

आहत से लोग कमजोर हो रहे हैं
खुद में सिमट के कामचोर हो रहे हैं

नसीहत का आओ नया शाला खोलें
नसीहत ही सीखें नसीहत ही सिखाएं

भ्रम से भरे काँटों का राह कर दिया है
लोगों ने लोगों को गुमराह कर दिया है

मसीहत का आओ मल्लशाला खोलें
मसीहा ही बनें मसीहा ही बनाएं

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

Fire of hatred among people has increasedPeople hate is intoxicated
Come Love School OpenTeach love to read and love
Each side is being selfish stormsShaitanprst falling thunderbolts
Come humanity Open BarDrink humanity as humanity itself Feed
People are hurting vulnerableDoodle of a shell are
Let's open a new school adviceLearn how to teach only the edification edification
Path full of thorns made of illusionPeople have been misleading people
Let's open Christianity MallshalaCreate the Be Messiah the Messiah
- Kanchan jwala 'kundan'

जो दीवार तुम्हें आगे बढ़ने से रोकती है ढहा दो वो दीवार गिरा दो उसे

जो भी हुनर है निखारो उसे
जो भी कला है संवारो उसे

जो भी तुम्हें अच्छा लगे
जीवन में उतारो उसे

जो भी तुम्हें बुरा लगे
आज ही गोली मारो उसे

बुराईयां कभी उभरने न पाए
मौत की नींद सुला दो उसे

आज ये सबेरा कुछ खास है दोस्तों
जो बीत गई रात भुला दो उसे

मैं देखना चाहता हूँ तुम्हारा असली चेहरा
सामने के सारे पर्दे उठा दो उसे

जो दीवार तुम्हें आगे बढ़ने से रोकती है
ढहा दो वो दीवार गिरा दो उसे

हाथों के लकीरों की बातें न करो
जिन बातों की कीमत नहीं हटा दो उसे

नाकामयाबी भी 'कुंदन' कामयाबी हो जायेगा
जो आगे में ना है मिटा दो उसे

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

Her talent is also NikharoHer art is also Snwaro
Whatever you think is bestPut him in life
Whatever you feel badShoot him today
Evils shall never emergeLet falls dead
Today the sunrise is something special friendsLet him who passed away last night
I want to see your true faceLet him pick out all the scenes
A wall that prevents you from moving forwardThey demolished two wall drop him
Do not speak in the hands of ridgesTwo things that did not cost him
Fiasco also 'kundan' success will beWhich is not in the erase her
- Kanchan jwala 'kundan'

अंदर जो छुपा है बाहर निकालो...Which is hidden inside bring it out

कविता

अंदर जो छुपा है
बाहर निकालो

फिर जो चाहते हो
पा लो

अंदर छुपे कलाकार को
कला करने का मौका दो

समंदर से उसे बाहर निकलने
अभिव्यक्ति का  नौका दो

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

poem

Which is hidden inside
bring it out

Then whatever you want
You attain

Hidden artist inside
Art a chance to

Get him out of the ocean
Two of expression yacht

- Kanchan Jwala 'kundan'

और सबसे बड़ा मैजिक आदमी का पसीना है. And the biggest Magic Man's sweat

आज की तारीख में
सबसे बड़ा हुनर
जीवन जीना है

और सबसे बड़ा मैजिक
आदमी का पसीना है

तुम मानो या न मानो
मैं तो बस बताना चाहूँ
जो बात पता चला है

यहाँ कुछ कर जाना
और मर जाना
सबसे बड़ा जीने की कला है

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

in today's date
The biggest talent
life is live

And the biggest Magic
Man's sweat

You believe it or not
I just want to tell
What is revealed

Here are a few go
And to die
The largest is the art of living

- Kanchan Jwala 'kundan'

उड़ान हौसलों से भरी जाती है पंखों से नहीं दोस्त

अच्छी सोच और अच्छे स्रोत
यूँ ही नहीं मिलते दोस्त

इन्हें हासिल किया जाता है
इन्हें जो चाहता है वहीँ पाता है

यदि चाहते हो उड़ने की स्रोत
तो ऊंचा कर दो अपनी सोच

उड़ान हौसलों से भरी जाती है
पंखों से नहीं दोस्त

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

Good thinking and good sources
Not just meet a friend

They are used to gain
He who seeks finds, while

If you want to fly Source
If your thinking of two tall

Is filled with flying Huslon
No friend of the wings

- Kanchan Jwala 'kundan'

भागो भागो भागो........

दुनिया सो जाये तो सो जाये
जिसे सोना है सोने दो

मगर तुम जागो

मंजिल बहुत दूर है
चलो नहीं अब भागो

जूनून जागती रहे
कदम भागती रहे

भागो भागो भागो........

                             kanchan jwala kundan

So, when the world should sleep
Gold is the gold two

But you wake up

The floor is too far
Let's now run

Passions are awake
Steps are running

Run Run Run ........

गधे जैसा जीवन ढोता है किसलिए

गधे जैसा जीवन ढोता है किसलिए

रातभर चाँद नहीं सोता है किसलिए
आँखों में नींद नहीं होता है किसलिए

सूरज यूँ दिनभर जलता है किसलिए
किरणों को इस तरह खोता है किसलिए

सारे प्राणियों का सरताज होकर आदमी
गधे जैसा जीवन ढोता है किसलिए

मिटाने का मसला तो बेकार ही होगा
कलंक क्या मिटेगा धोता है किसलिए

अवसर बीत गया तो अकल आ रही है
हासिल क्या होगा रोता है किसलिये

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

सीना छिल जाये ऐसा कि बात कहिये

सीना छिल जाये ऐसा कि  बात कहिये


गुलशन खिल जाये ऐसा कि बात कहिये

खुशियां मिल जाये ऐसा कि बात कहिये


लोग उंगलियां उठाते फिर रहे हैं तुम्हारी दामन में

जुबाँ सील जाये ऐसा कि बात कहिये


लोग हंसते फिर रहे हैं तुम्हें देख-देखकर

आँखें गिल जाये ऐसा कि बात कहिये


हौसले बढ़ रहे हैं लोगों के तुम्हारी ख़ामोशी से

सीना छिल जाये ऐसा कि बात कहिये


लोग सन्न रह जाये सन्नाटा छा जाये

जिगर हिल जाये ऐसा कि बात कहिये


आँखें गिलना = नम होना
(शब्द का नया प्रयोग)

                                                         - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

#आदमी आदमखोर है 'कुंदन'

#मानव मंसूबा फल-फूल रहा है     

#ठीक ही है वो ठूंठ नहीं                    (दिशाहीन उन्नति)



#आदमी आँख का अँधा मगर

#आठ पैर है झूठ नहीं                         (घोर स्वार्थी)

            

#लोग व्रत रखा करते हैं

#जिस दिन जिसे भूख नहीं               (खोटा नियत)



#आदमी आदमखोर है 'कुंदन'

#इस बात का दुःख नहीं                   (वास्तविकता)



                                                                                              - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

सोमवार, 19 सितंबर 2016

कहीं बेमतलब खलल डालो बाकी सब ठीक है

कहीं बेमतलब खलल डालो बाकी सब ठीक है


आदत आज बदल डालो बाकी सब ठीक है

कहीं बेमतलब खलल डालो बाकी सब ठीक है


कातिल को फूलों का स्वागत करो मंजूर

नक्कालों का नक़ल पालो बाकी सब ठीक है


आतंक को शह दो आ जाओ कह दो

दिमाग में कुछ अकल डालो बाकी सब ठीक है


बात बढ़ रहा है बढ़ने दो मजहबों को लड़ने दो

आग में घी का दखल डालो बाकी सब ठीक है


जब भी जिधर चाहो सर्र से फिसल जाओ

नेचर में यूँ कुछ तरल पालो बाकी सब ठीक है


देश का हाल अगर देखा नहीं जा रहा

ये लो गरल खा लो बाकी सब ठीक है


                                                      - कंचन ज्वाला 'कुंदन'


चन्दन घिस रहा है जहर घोल रहा है

चन्दन घिस रहा है जहर घोल रहा है


आदमियों के जात को जाने क्या हुआ है

जितना भी विश्वास किया सब झोल रहा है


छलिया है आदमी बहरूपिया है आदमी

गिरगिट की तरह आदमी का रोल रहा है


ठगा गया मैं ठनाठन के लालच में

शाही ठाठ  भी टके मोल रहा है


आलू का अंडे का जलेबी का कंडे का

इनकी क्या गारंटी  ये गोल रहा है 

पुलिस पंसारी न्यायिक नेता पेशेवर लोग हैं
इन पेशेवरों की पेशों में सदा पोल रहा है 



मैं जानता हूँ आज का आदमी किस तरह है

चन्दन घिस रहा है जहर घोल रहा है


'कुंदन' काले मन का गाँठ खोल रहा है

तुम कहते हो सिर्फ गजल बोल रहा है


                                                       -कंचन ज्वाला 'कुंदन'

शनिवार, 17 सितंबर 2016

बच्चों को लुभाने वाली जिंदगी झुनझुना नहीं

बच्चों को लुभाने वाली जिंदगी झुनझुना नहीं


अभी आपने क्या कहा मैंने कुछ सुना नहीं

किसलिए आखिर तुमने मंजिल अब तक चुना नहीं


जीने का जल्दी से कोई मकसद तलाशो

बच्चों को लुभाने वाली जिंदगी झुनझुना नहीं


तुम तय करो तुरंत ही लक्ष्य जिंदगी का

ये तमुरे की तार का तुनतुना नहीं


ग्राफ बनाओ तुम्हें कहाँ तक चढ़ना है

अफ़सोस है कि क्यों तुमने सपने कुछ बुना नहीं


उड़ते रहो 'कुंदन' अभी आना न जमीं पे

जब तक की आसमाँ को हाथ से छूना नहीं


                                                         - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

दिन मसीहा-सा मददगार होगा उस तरह

दिन मसीहा-सा मददगार होगा उस तरह


गुल गुलशन में गुलजार होगा जिस तरह

दर्द ए-गम में गजल बहार होगा उस तरह


मुये का सनम से प्यार होगा जिस तरह

उए अंदाज में इनकार होगा उस तरह


जीत में जश्ने-बहार होगा जिस तरह

हार से हस्रे सरोकार होगा उस तरह


दिल का खुशियों में दरकार होगा जिस तरह

ग़मों का सामना भी साकार होगा उस तरह


तेज धूप सर पे सवार होगा जिस तरह

उतना ही छांव तलबगार होगा उस तरह


रात यदि डर का गुबार होगा जिस तरह

दिन मसीहा-सा मददगार होगा उस तरह


                                                                 -कंचन ज्वाला 'कुंदन'


गाहें-बगाहें कोई बवाल कर दो

गाहें-बगाहें कोई बवाल कर दो 


कमर जो टेढ़ी है सीधी नाल कर दो

हाथ उठाओ ऊपर मशाल धर दो


फिर निकल पड़ो जिधर निकलना है तुम्हें

लोग वाह-वाह कहें ऐसा कमाल कर दो


हर-एक कदम एक चिराग बनके उभरे

ऐसा दोस्तों कुछ धमाल कर दो


लोगों का सरेराह सर चकरा जाये

जुबाँ जो खोलो वो सवाल कर दो


नेताओं के नियत पे 'कुंदन' को क्रोध है

गाहें-बगाहें कोई बवाल कर दो


                                                          - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

तुम मर जाओ तुम्हारी अंजाम यहीं है

तुम मर जाओ तुम्हारी अंजाम यहीं है


तुम मर जाओ तुम्हारी अंजाम यहीं है

अगर दिल में कोई इंतकाम नहीं है


हरेक की जिंदगी किसी मौत का बदला है

जन्म जो मिला है इनाम नहीं है


एहसास रखो सर पे नफरत रखो दिल में

ये दुनिया दुलराने का नाम नहीं है


त्रेता में सीताहरण द्वापर में चीरहरण

कलियुग के आचरण में राम नहीं है


'कुंदन' जीवन झोंक दो बीज-बीज रोप दो

क्या मिलेगा क्या फलेगा ये सोचना तेरा काम नहीं है


                                                                             - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

आदमी खोखला बम है जिसमें बारूद नहीं होता

 आदमी खोखला बम है जिसमें बारूद नहीं होता


आदमी खोखला बम है जिसमें बारूद नहीं होता

आदमी हरदम आम है क्यों अमरुद नहीं होता


करना पड़ता है काम लिखना पड़ता है नाम

इतिहास के पन्ने यूँ खुद नहीं होता


मिली जिंदगी मूलधन है यहाँ ब्याज भी चुकाओगे

कौन कहता है दिए रकम का सूद नहीं होता


लोग खुले हाथ आते हैं और खुले हाथ जाते हैं

नाम मगर नेस्तनाबूद नहीं होता


टूटे खँडहर सा धूल के बवंडर सा दिखता ये जहाँ 'कुंदन'

अगर दुनिया में प्यार का वजूद नहीं होता


                                                            - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

आदमी खोखला बम है जिसमें बारूद नहीं होता

 आदमी खोखला बम है जिसमें बारूद नहीं होता


आदमी खोखला बम है जिसमें बारूद नहीं होता

आदमी हरदम आम है क्यों अमरुद नहीं होता


करना पड़ता है काम लिखना पड़ता है नाम

इतिहास के पन्ने यूँ खुद नहीं होता


मिली जिंदगी मूलधन है यहाँ ब्याज भी चुकाओगे

कौन कहता है दिए रकम का सूद नहीं होता


लोग खुले हाथ आते हैं और खुले हाथ जाते हैं

नाम मगर नेस्तनाबूद नहीं होता


टूटे खँडहर सा धूल के बवंडर सा दिखता ये जहाँ 'कुंदन'

अगर दुनिया में प्यार का वजूद नहीं होता


                                                            - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

जाने किस क्रम में 'कुंदन' का नाम आये

जाने किस क्रम में 'कुंदन' का नाम आये

असल में जिंदगानी वही जो औरों के काम आये

कुछ ऐसा करो दोस्तों सितारों के बीच नाम आये


जिंदगी का बस अर्थ इतना चलते चलो-बढ़ते चलो

आंधी आये-तूफान आये बाधाएं तमाम आये


मंजिल का धुन लिए दिल में जुनून लिए

तुम कदम न मोड़ना अगर कोई आयाम आये


महफ़िल तो सदा ही सजी रहेगी जमी रहेगी

अभी और सुनो गीत-ग़ज़ल दुष्यंत गए ख़य्याम आये


आज बज्म में आएं हैं नए-नए फनकार भी

जाने किस क्रम में 'कुंदन' का नाम आये


                                                                 - कंचन ज्वाला 'कुंदन'


रातों की सपने रसभरी हो रही है

रातों की सपने रसभरी हो रही है


हसरत तो और भी हरी हो रही है

ख्वाब तो और भी खरी हो रही है


आहिस्ता-आहिस्ता अरमान बढ़ रहा है

रातों की सपने रसभरी हो रही है


चौखट में उपेक्षित सा पड़ा हुआ पायदान

जाने किस मकसद से दरी हो रही है


ख्वाहिश उड़ चलें हैं आसमाँ को छूने

पंख आ रहा है परी हो रही है


'कुंदन' अब कभी भी कैद नहीं होगा

जिंदगी बाइज्जत बरी हो रही है


                                                    -कंचन ज्वाला 'कुंदन'

'कुंदन' का सफर आसमान से है

'कुंदन' का सफर आसमान से है


न खौफ खुदा से न भय भगवान से है

दिल डर गया बहुत इंसान से है


धरम का धंधा फल - फूल  रहा है

मंदिर - मस्जिद भी दूकान से है


उठाकर फेंक दो कभी यहाँ कभी वहां

पत्थर दिल आदमी सामान से है


हर मुआमले में कर लो मुआयना

दुनिया में वतन न हिंदुस्तान से है


नाउम्मीदी है मगर मंजिल मिल जाएगी

'कुंदन' का सफर आसमान से है


                                                      - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

उनके सर इंसानियत का ताज आया

उनके सर इंसानियत का ताज आया


ऐसा कहाँ हुआ कोई फितरत से बाज आया

आदमी के हर काम में कोई न कोई  राज आया


आदमी में बदलाव बनती गई नासूर होती गई काफूर

मगर उसमें बदलाव न कल आया न आज आया


आदमी के भेष में घूमते रहे भेड़िये जो

उनके सर इंसानियत का ताज आया


आधुनिकता की दौड़ में जब खाई तक लोग पहुंचे

उन्हें लौट जाने का क्योंकर आवाज आया


यहाँ आदमी अद्भुत है और समाज बहुत सुन्दर है

नक्कासी के नक़्शे पे 'कुंदन' को नाज आया


                                                                         - कंचन ज्वाला 'कुंदन'

बन जाने दो जरा हमें कल का दबंग

बन जाने दो जरा हमें कल का दबंग


पारित प्रस्ताव है कैसे करें भंग
जिंदगी के मौत से समझौते का ढंग

तुम कैसे अलग करोगे हम अलग कैसे करेंगे
जिंदगी में शामिल है मौत का ही रंग

तुम बीच में न पड़ो उसे चलने ही दो
जिंदगी जांबाज का मौत से है जंग

तुम नाम का विजय पताका फहरा दो
मौत से विजयकर दुनिया करो दंग

कुछ करने चलें हैं यहां हम भी 'कुंदन'
बन जाने दो जरा हमें कल का दबंग

                                                             कंचन ज्वाला 'कुंदन'

पर्यायवाची नाम पैसा ही है

जिंदगी तो कब से ऐसा ही है 
पर्यायवाची नाम पैसा ही है 

तुम भी देख रहे हो हम भी देख रहें हैं 
जैसा का तैसा वैसा ही है 

तुम्हें भी गम है हमें भी गम है 
जिंदगी की बात ऐसा ही है 

जाने कब फंस जाये बहेलिये की जाल में 
जिंदगी एक चिड़ी जैसा ही है 

अपना- अपना देख लो जीने का ढंग 
हमें क्या कहोगे कैसा भी है 

                                                          कंचन ज्वाला 'कुंदन'

The man is the same man hurt


आदमी ही आदमी से हुआ है आहत


लोगों को छुपाने की लग गई है लत
आज आदमी हो गया है बड़ा ही गफलत

इन आदमियों की आज विश्वास क्या करें
हर एक जुबाँ की दूर हकीकत The man is the same man hurt

आदमी का दुश्मन यहां कोई भी नहीं
आदमी ही आदमी से हुआ है आहत

अब आदमी किसी दवा से ठीक नहीं होगा
मिलेगा लोगों को दुआ से राहत

बिगड़ा हुआ मसला अब ठीक कैसे होगा
आदमी कैसे सुधरेगा 'कुंदन' की चाहत

                                                          कंचन ज्वाला 'कुंदन'

Let's read the book of life

                                                        जिंदगी किताब है पढ़ते चलो 


 


फूल भी आएंगे

कांटे भी आएंगे

जिंदगी की हार में जड़ते चलो

जिंदगी किताब है पढ़ते चलो


दुश्मनों से ज्यादा

दोस्तों से तुम

जिंदगी जंग है लड़ते चलो

जिंदगी किताब है पढ़ते चलो



टूटते - बिखरते

उठते - गिरते

जिंदगी के रास्ते गढ़ते चलो

जिंदगी किताब है पढ़ते चलो


दूसरों को दोष

क्या दोगे भला

हर सितम अपने ही माथे मढ़ते चलो

जिंदगी किताब है पढ़ते चलो


रुकने को एक दिन

जिंदगी आवाज देगी

भर न सकेगी एक डग

जिंदगी जवाब  देगी


जब तक तेरे बस है मगर

बंदा हजीर बढ़ते चलो

जिंदगी किताब है पढ़ते चलो


                                                                                                                      Let's read the book of lifekundanjwalaकंचन ज्वाला 'कुंदन'

मेरी माँ को समर्पित

  1. मेरे खून का हर कतरा, मेरी स्याही की हर बूंद
    उनके चरणों में अर्पित, मेरी माँ को समर्पित

    सर्वस्व मेरा जीवन, कविता के हर पन्ने
    उनके चरणों में अर्पित, मेरी माँ को समर्पित

    मेरा हरेक कोशिश, मेरी हरेक रचना
    उनके चरणों में अर्पित, मेरी माँ को समर्पित

              कंचन ज्वाला 'कुंदन'

सोमवार, 12 सितंबर 2016

रिश्ता

कविता

रिश्ता वही...

जो रिश्ते की कीमत चुकाए

उसे ताउम्र निभाए

खून का रिश्ता भी फीका है

यदि मन के बीच दरार है

और वह रिश्ता बहुत ऊँचा है

जहाँ मन के बीच प्यार है

                                                                                                कंचन ज्वाला 'कुंदन'

रविवार, 28 अगस्त 2016

सरकारी कारिन्दे और आम परिन्दे


सरकारी कारिन्दे और आम परिन्दे

                               व्यंग्य

'रो रहा है हर परिन्दा गाते हुए
चीख रहा है हर परिन्दा मुस्कुराते हुए।

आजादी को 70 वर्ष पूर्ण हो गया। आजादी स"ाी परिभाषा आज भी अधूरी है। आम आदमी आजादी से आज भी कोसों दूर है। आम आदमी की आजादी ऐसी डगर पर है जहां मील के पत्थर नहीं नहीं लगे हंै। आम आदमी के लिए आजादी का सफर अंतहीन है।
गोरे चले गए तो इन काले नागों और कुटिल सांवरों के गुलाम हो गए। आपको यकीन न हो तो नजर डालिए परिन्दा पहले से Óयादा घायल है, फडफ़ड़ाती परों की विवशता को महसूस कीजिए जनाब! उडऩा चाहते हैं उड़ नहीं पा रहे हैं। पर तो पहले से और Óयादा कतर लिया गया है।

हर शख्श भीतर तक झुलसा हुआ लग रहा है। परिंदा के लिए आजादी के मायने यही है कि वह खुले आकाश में बेरोक-टोक उन्मुक्त उड़ सके। किसी साख पर आकर बैठे तो वह साख पलटकर यह न पूछे कि वह उस पर क्यों बैठ गया।
 डेनों में जान नहीं रही अब पहले की तरह। उडऩे की उत्कंठा भी खत्म होती जा रही है। अब घायल लहूलुहान पड़ा है वह असहाय। आज लोकतंत्र में हर शख्श की हालत कमोबेेश ऐसे ही किसी परिन्दे की तरह हो गया है।
शिक्षक आत्मकक्षा कर हरे हैं। आए दिन जवान खुद को गोली मार रहे हैं  और किसानों की खुदकुशी तो मानो शाश्वत परंपरा जैसी लगने लगी है। कहने का अभिप्राय है कि हर आदमी छटपटा रहा है।
महंगाई आसमान छू रहा है। परिन्दों को दाना मुहैया मुश्किल हो गया है। क्योंकि लोकतंत्र में हर परिन्दों को दाने-दाने के ऊंची दाम चुकाना पड़ता है। गरीब तबको के परिन्दे कुपोषण से मरे जा रहे हैं अमीर तबको के परिन्दे खा-खाकर फुल रहे हैं।
सरकारी कारिन्दे बैठे हैं वातानुकुलित कमरों पर। चल रहे है वातानुकुलित कारों पर। जुगाली कर रहे हैं गरीबों की लड़ाई के लिए संसद में, मंचों में, भाषणों में। उन्हें कोई-फर्क नहीं पड़ता कि कुछ परिन्दों के चप्पल घिस रहे हैं दफ्तर के चक्कर काटते-काटते।
एक परिन्दों की बड़ी झुण्ड में बेरोजगारी की महामारी फैल गई है। उन बेरोजगार परिन्दों  के लिए उनकी डिग्री पुलिसिया थर्डडिग्री साबित हो रही है। अभी पिछले दिनों विकलांग परिन्दे ने बेरोजगार की महामारी के कारण खुद को आग के हवाले कर दिया।
अस्पतालों में डॉक्टर व्हाटसअप में लगे है, कई परिन्दे फडफ़ड़ा रहे हैं, कराह रहे हैं बिस्तर पर। हर जगह सरकारी कारिन्दों की तूती बोल रही है। बेचारे आम परिन्दों को तो दाने भी मयस्सर नहीं हो रहा।

                                                              कंचन

शुक्रवार, 13 मई 2016

जस्टिफाई करो... सर्टिफाई करो...व्यंग्य


                                                       जस्टिफाई करो... सर्टिफाई करो...
                                                                        
व्यंग्य
    
     हुआ यों कि हमें हो गई ऑफिस जाने में तनिक देरी। संपादक जी हमें बुलाए और झल्लाए। वो देर तक गरियाते रहे हम चुपचाप निरीह गाय की तरह अंदर -ही -अंदर बातों का जुगाली करते रहे। हमने सोचा साहब की तो पुरानी आदत है, बात -बे- बात पर गरियाने की। आखिरकार हम भी अपनी स्पष्टीकरण की पुरानी आदत पर लौट आए और बड़ी सफाई के साथ लेट होने की सफाई दे डाले। अब हम अपने काम पर मशरूफ थे और अपनी कुर्सी पर चिपक चुके थे। परंतु अब भी  संपादक जी कहे शब्द 'अपने काम की रिपोर्ट डेली मेल करो और अपने काम को सौ प्रतिशत जस्टिफाई करो, खुद को सौ प्रतिशत सर्टिफाई करोÓ बार-बार गूंज रहे थे।
    
     'जस्टिफाई करो... सर्टिफाई करोÓ इसके बार-बार अनुगूंज से माथे पर बल पडऩे लगे थे, अब मैंने ठान लिया कि पहले इस कमबखत जस्टिफाई और सर्टिफाई का वैरिफाई कर सैटिस्फाई हुआ जाए। मैं मन ही मन ढूंढऩे लगा कि ऑफिस में ऐसे कौन हैं जो अपने काम के साथ सौ प्रतिशत जस्टिफाई कर रहा है और खांमखां कौन है जो खुद को सौ प्रतिशत सर्टिफाई करने में तुला है। पहली सुई घूमी स्वमेव संपादक की ओर... अरे कहां सौ प्रतिशत जस्टिफाई, सर्टिफाई भैया....और पेजों की तो छोड़ो, रोज फ्रंट पेज में ही बीसियों गलतियां रहती हैं। दूसरी सुई घूमी... शुक्ला जी की ओर... तीसरी सुई... वर्मा जी की ओर... किसी सुई में सौ प्रतिशत जस्टिफाई नहीं मिला।

     अब मुआयने की सुई तेजी से घूमते हुए देश के पुलिस, डॉक्टर, शिक्षक... तक गया। कहीं नहीं निकला सौ प्रतिशत जस्टिफाई और सौ प्रतिशत सर्टिफाई। सुई जब पुलिस तक पहुंची, पुलिस अपनी वर्दी के प्रभाव और डंडे के दबाब पर एक रोते हुए गरीब आदमी से पैसे ऐंठ रहा था। सुई डॉक्टर तक पहुंची, डॉक्टर रूम के अंदर व्हाट्सएप में बिजी रहे और मरीज बिस्तर पर कराहते नजर आए। शिक्षक ऊंघ रहे थे कुर्सी पर, बच्चे खेल रहे थे मैदानों पर। कांग्रेस कमर कसने में लगा था, भाजपा जुमलों में उलझा था। जनता बेचारी थैला पकड़कर सब्जियों के भाव पूछते नजर आया। सुई लालू के लाल टेन, बाबा जी की क्रीम के सफर करते हुए केजरी के देहरी से होते हुए मोदी के गोदी पर जा बैठी। पर कहीं नहीं निकला सौ प्रतिशत जस्टिफाई और सौ प्रतिशत सर्टिफाई।

     जब सुई केजरीवाल साहब के पास पहुंची तो काफी देर तक ठिठकी रही। केजरीवाल जी अरबों में अलग एक इकलौता आदमी हैं और यही बात केजरीवाल साहब आज पर्यंत जस्टिफाई और सर्टिफाई करने में लगे हैं। मानो केजरीवाल का तो 'मैं अरबों में अलग हंूÓयह सर्टीफाई करना ही एक मिशन बन गया है। मनमोहन बोले मैं मौन था तो जनता को रास नहीं आई। अब बड़बोले मोदी को झेलो। जब सुई मोदी तक पहुंची तो वहां भी रुक गई, मोदी जी तो मुआयने की सुई को ही कई घंटे तक भाषण की चमन घूंटी पिला दिए। अच्छे दिन आएंगे, न खाउंगा न खाने दूंगा, जैसे लच्छेदार जुमले पिरो-पिरो कर सुई के कान को छलनी कर दिया।

    अब हमारे मन के अंदर से इस जस्टिफाई और सर्टिफाई का गुब्बारा फूट चुका था। भूत उतर चुका था। हमने राहत का सांस लिया कि सौ प्रतिशत का ठीकरा श्रीमान संपादक के माथे पर ही रहे तो ठीक है। अब हम थोड़ी तंदुरुस्ती के साथ तेजी से अपने काम दुरुस्त करने में जुट चुके थे। हालांकि मन के अंदर सौ प्रतिशत जस्टिफाई और सर्टिफाई की बूटी काम करने लगा था। हम बार-बार इस चिंतन में डूब रहे थे कि यदि यह सौ प्रतिशत जस्टिफाई और सर्टिफाई की बूटी आदमी हर दिन लेने लगे तो देश का कायाकल्प ही हो जाएगा। अब हम आगे सौ प्रतिशत जस्टिफाई और सर्टिफाई करें न करें पर हम इस बात से सौ प्रतिशत शिद्दत के साथ सहमत हो चुके थे कि यह वाकई कमाल की बूटी है। हम जैसे मृतप्राय मरियलों के लिए तो साक्षात् संजीवनी है।


                                                                                                               -कंचन ज्वाला 'कुंदन'
                                                                                                               kundanjwala@gmail.com

डिग्री और थर्डडिग्री. व्यंग्य

                                                          डिग्री और थर्डडिग्री
 
                                                                 व्यंग्य

    आजकल बेरोजगारी सुरसा की मुख की तरह बढ़ता ही जा रहा है। ढंग की कोई नौकरी करने एमबीए और इंजीनियरिंग की डिग्री भी नाकाफी साबित हो रहा है। बेरोजगारी का आलम इस कदर बढ़ गया है कि हर डिग्रीधारी आदमी के लिए उसकी डिग्री जेल की थर्डडिग्री साबित हो रही है। जेल में मुजरिम से सही बात उगलवाने पुलिस थर्डडिग्री का सहारा लेती है। खूब मार पड़ती है, जख्म पर मिर्ची छिड़का जाता है, मुंह में कपड़ा ठूंसकर शॉक दिया जाता है...। कुल मिलाकर कहें तो जेल की थर्डडिग्री प्रताडऩा की इंतिहा होती है। थर्डडिग्री का एक कायदा रहता है कि कितना भी कूटो आदमी मरना नहीं चाहिए।

     बस कुछ इस तरह ही डिग्री को रखकर आदमी थर्डडिग्री झेलते रहता है कि उसे कभी न कभी अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी। इस डिग्री के चलते तो कई लोग गले में रस्सी डालकर धूप में कपड़े की तरह टंगकर सूख जाते हैं। आदमी इंतजार में मर रहा है। नौकरी है कि सरकार के घर के अंदर नौकरानी बन बैठी है। वह आम आदमी के दर्शन के लिए बाहर निकलती ही नहीं। आखिर सरकार को कोई कैसे समझाए कि डिग्री का दंश जेल की थर्डडिग्री से बड़ा है भैया...।

    अब केजरीवाल साहब को देख लीजिए, उनकी डिग्री की फिक्री इस कदर बढ़ गई कि मोदी की डिग्री पीछे पड़ गए हैं। डिग्री बता दिए तो उसे केजरीवाल ने फिर एक नया डिग्री करार दे दिया। फर्जी की डिग्री। मोदी की डिग्री का क्या करोगे केजरीवाल जी...। हम बेरोजगार युवाओं की भी कभी डिग्री पूछ लो। चपरासी के पद पर इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी युवक अर्जी लगा रहे हैं कि हमें इंजीनियर नहीं चपरासी बना दो। कभी-कभी तो अवसाद की स्थिति में मन होता है कि इन सभी डिग्री की बिक्री ही कर दूं।

    ये डिग्री का डगर भी बड़ा रोचक है जनाब। बचपन में चार अक्षर पढऩा क्या सीख गए, लोगों ने कहा- मुन्ना बहुत होशियार है। इसके पास बड़ी डिग्री होगी। बहुत ऊपर तक जाएगा। घर आए मेहमान अंकल को दो-चार पोयम क्या सुना दिए, घरवालों ने उसी बखत डिसाइड कर लिया कि मुन्ने को ऊंची शिक्षा और बड़ी डिग्री दिलवाएंगे।                                                                   

किसी ने कहा- पांचवी फस्र्ट डिवीजन से पास कर लो मुन्ना भविष्य सुधर जाएगा। कर लिया पांचवी पास पूरे जिला मे टॉप। फिर किसी ने कहा- 10वीं कर लो, 12 वीं कर लो। अब ये भी कर लिया तो कहीं से सुना कि ग्रेजुएट पर्सन बनने मेंं रुतबा और बढ़ जाएगाऔर साथ में डिग्री भी बढ़ जाएगी। फिर पोस्ट गे्रजुएशन, एमफिल और पीएचडी का चक्कर इस तरह डिग्रियांे का जखीरा बढ़ता गया। ये मालूम नहीं था कि यही डिग्रियां एक दिन जेल की थर्डडिग्री का एहसास कराएगी।

                                                                                कंचन ज्वाला 'कुंदन'
                                                                             kundanjwala@gmail.com