मैं तो जा ही रहा था
ये मत पूछना कि कहाँ
किन्तु राह में एक
गुलाब के पौधे को देख
मरने के बुरे विचार से झिझक गया
मैं वहीँ ठिठक गया
देखा की भौंरें आज भी
गुलाब के इर्द- गिर्द मंडरा रहे हैं
क्योंकि उन्हें आशा है
बीता बहार जरूर आएगा
मन फिरा मैं फिर गया
वहीँ से मैं मुड़ गया
और जिंदगी को...
एक नए सिरे से जीने लगा
- कंचन ज्वाला 'कुंदन'
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