शनिवार, 17 सितंबर 2016

रातों की सपने रसभरी हो रही है

रातों की सपने रसभरी हो रही है


हसरत तो और भी हरी हो रही है

ख्वाब तो और भी खरी हो रही है


आहिस्ता-आहिस्ता अरमान बढ़ रहा है

रातों की सपने रसभरी हो रही है


चौखट में उपेक्षित सा पड़ा हुआ पायदान

जाने किस मकसद से दरी हो रही है


ख्वाहिश उड़ चलें हैं आसमाँ को छूने

पंख आ रहा है परी हो रही है


'कुंदन' अब कभी भी कैद नहीं होगा

जिंदगी बाइज्जत बरी हो रही है


                                                    -कंचन ज्वाला 'कुंदन'

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