रातों की सपने रसभरी हो रही है
हसरत तो और भी हरी हो रही है
ख्वाब तो और भी खरी हो रही है
आहिस्ता-आहिस्ता अरमान बढ़ रहा है
रातों की सपने रसभरी हो रही है
चौखट में उपेक्षित सा पड़ा हुआ पायदान
जाने किस मकसद से दरी हो रही है
ख्वाहिश उड़ चलें हैं आसमाँ को छूने
पंख आ रहा है परी हो रही है
'कुंदन' अब कभी भी कैद नहीं होगा
जिंदगी बाइज्जत बरी हो रही है
-कंचन ज्वाला 'कुंदन'
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