इधर वो आया, वो आया बहुत
हकीकत कम वो साया बहुत
मैं मुर्ख था उसे मेरा समझा
महज थी वो माया बहुत
मैं अब भी करता हूँ महसूस उसे
हवा ने खुशबु लाया बहुत
उमड़-उमड़ कर, घुमड़- घुमड़ कर
यादों में वो छाया बहुत
वह रूह नहीं जिस्म थी
देखा करीब से वो काया बहुत
नहीं जानता मैं कोई गीत-गजल
मैंने क्या गुनगुनाया, क्या गाया बहुत
क्यों मैंने पीछा किया
वक्त का हुआ जाया बहुत
हुस्न का ही ये हस्र है जनाब
मैंने वो चोट खाया बहुत
क्या पाया मुझे पता नहीं 'कुंदन'
पर जो भी पाया, मैं पाया बहुत
- कंचन ज्वाला 'कुंदन'
हकीकत कम वो साया बहुत
मैं मुर्ख था उसे मेरा समझा
महज थी वो माया बहुत
मैं अब भी करता हूँ महसूस उसे
हवा ने खुशबु लाया बहुत
उमड़-उमड़ कर, घुमड़- घुमड़ कर
यादों में वो छाया बहुत
वह रूह नहीं जिस्म थी
देखा करीब से वो काया बहुत
नहीं जानता मैं कोई गीत-गजल
मैंने क्या गुनगुनाया, क्या गाया बहुत
क्यों मैंने पीछा किया
वक्त का हुआ जाया बहुत
हुस्न का ही ये हस्र है जनाब
मैंने वो चोट खाया बहुत
क्या पाया मुझे पता नहीं 'कुंदन'
पर जो भी पाया, मैं पाया बहुत
- कंचन ज्वाला 'कुंदन'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें