मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

तुम्हारी नजर का फरेब है , मैं बगुला लगता हूँ

तुम्हें कभी बुरा लगता हूँ, कभी भला लगता हूँ
कभी मुंहफट कभी दोगला लगता हूँ

मैं हंस हूँ मगर, तुम आकर देख लो
तुम्हारी नजर का फरेब है , मैं बगुला लगता हूँ

मैं बीकानेर का सीलबंद मिठाई हूँ
तुम कहती हो बाजारू हूँ, खुला लगता हूँ

अरे मैं तो साबुत-साबुत चना हूँ
फिर क्यों कहती हो ढुलमुला लगता हूँ

-कंचन ज्वाला 'कुंदन'

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