तुम्हें कभी बुरा लगता हूँ, कभी भला लगता हूँ
कभी मुंहफट कभी दोगला लगता हूँ
मैं हंस हूँ मगर, तुम आकर देख लो
तुम्हारी नजर का फरेब है , मैं बगुला लगता हूँ
मैं बीकानेर का सीलबंद मिठाई हूँ
तुम कहती हो बाजारू हूँ, खुला लगता हूँ
अरे मैं तो साबुत-साबुत चना हूँ
फिर क्यों कहती हो ढुलमुला लगता हूँ
-कंचन ज्वाला 'कुंदन'
कभी मुंहफट कभी दोगला लगता हूँ
मैं हंस हूँ मगर, तुम आकर देख लो
तुम्हारी नजर का फरेब है , मैं बगुला लगता हूँ
मैं बीकानेर का सीलबंद मिठाई हूँ
तुम कहती हो बाजारू हूँ, खुला लगता हूँ
अरे मैं तो साबुत-साबुत चना हूँ
फिर क्यों कहती हो ढुलमुला लगता हूँ
-कंचन ज्वाला 'कुंदन'
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