चन्दन घिस रहा है जहर घोल रहा है
आदमियों के जात को जाने क्या हुआ है
जितना भी विश्वास किया सब झोल रहा है
छलिया है आदमी बहरूपिया है आदमी
गिरगिट की तरह आदमी का रोल रहा है
ठगा गया मैं ठनाठन के लालच में
शाही ठाठ भी टके मोल रहा है
आलू का अंडे का जलेबी का कंडे का
इनकी क्या गारंटी ये गोल रहा है
पुलिस पंसारी न्यायिक नेता पेशेवर लोग हैं
इन पेशेवरों की पेशों में सदा पोल रहा है
मैं जानता हूँ आज का आदमी किस तरह है
चन्दन घिस रहा है जहर घोल रहा है
'कुंदन' काले मन का गाँठ खोल रहा है
तुम कहते हो सिर्फ गजल बोल रहा है
-कंचन ज्वाला 'कुंदन'
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