सोमवार, 19 सितंबर 2016

चन्दन घिस रहा है जहर घोल रहा है

चन्दन घिस रहा है जहर घोल रहा है


आदमियों के जात को जाने क्या हुआ है

जितना भी विश्वास किया सब झोल रहा है


छलिया है आदमी बहरूपिया है आदमी

गिरगिट की तरह आदमी का रोल रहा है


ठगा गया मैं ठनाठन के लालच में

शाही ठाठ  भी टके मोल रहा है


आलू का अंडे का जलेबी का कंडे का

इनकी क्या गारंटी  ये गोल रहा है 

पुलिस पंसारी न्यायिक नेता पेशेवर लोग हैं
इन पेशेवरों की पेशों में सदा पोल रहा है 



मैं जानता हूँ आज का आदमी किस तरह है

चन्दन घिस रहा है जहर घोल रहा है


'कुंदन' काले मन का गाँठ खोल रहा है

तुम कहते हो सिर्फ गजल बोल रहा है


                                                       -कंचन ज्वाला 'कुंदन'

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