रविवार, 23 अक्टूबर 2016

तो दलदल भरे संसार से जल्दी उबर जाता

तू सोये रह अहंकार मेरे भीतर ही
तेरी नींद न टूटे तो अच्छा है

लोरियां सुनाते, थपकियाँ देते
सुलाए रख अपने सुपुत्र क्रोध को भी

तेरी नींद उचट जाती है तो क्या करूँ
नींद की गोलियां जो बना नहीं पाया हूँ तेरे लिए

मेरी भूल थी कि मैंने गोलियां मेरे नींद के लिए बनाई
वो भी जो तेरे कारण काम नहीं आई
 मैं मानव होकर भी.....
जो जरुरी है उसे कर नहीं पाता हूँ
अनावश्यक उलझनों में शक्ति खपाता हूँ

काश! काम- क्रोध, मोह- माया, तृष्णा की दवा बना पाता
तो दलदल भरे संसार से जल्दी उबर जाता

- कंचन ज्वाला 'कुंदन' 

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