गधे जैसा जीवन ढोता है किसलिए
रातभर चाँद नहीं सोता है किसलिए
आँखों में नींद नहीं होता है किसलिए
सूरज यूँ दिनभर जलता है किसलिए
किरणों को इस तरह खोता है किसलिए
सारे प्राणियों का सरताज होकर आदमी
गधे जैसा जीवन ढोता है किसलिए
मिटाने का मसला तो बेकार ही होगा
कलंक क्या मिटेगा धोता है किसलिए
अवसर बीत गया तो अकल आ रही है
हासिल क्या होगा रोता है किसलिये
- कंचन ज्वाला 'कुंदन'
रातभर चाँद नहीं सोता है किसलिए
आँखों में नींद नहीं होता है किसलिए
सूरज यूँ दिनभर जलता है किसलिए
किरणों को इस तरह खोता है किसलिए
सारे प्राणियों का सरताज होकर आदमी
गधे जैसा जीवन ढोता है किसलिए
मिटाने का मसला तो बेकार ही होगा
कलंक क्या मिटेगा धोता है किसलिए
अवसर बीत गया तो अकल आ रही है
हासिल क्या होगा रोता है किसलिये
- कंचन ज्वाला 'कुंदन'
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