मंगलवार, 20 सितंबर 2016

गधे जैसा जीवन ढोता है किसलिए

गधे जैसा जीवन ढोता है किसलिए

रातभर चाँद नहीं सोता है किसलिए
आँखों में नींद नहीं होता है किसलिए

सूरज यूँ दिनभर जलता है किसलिए
किरणों को इस तरह खोता है किसलिए

सारे प्राणियों का सरताज होकर आदमी
गधे जैसा जीवन ढोता है किसलिए

मिटाने का मसला तो बेकार ही होगा
कलंक क्या मिटेगा धोता है किसलिए

अवसर बीत गया तो अकल आ रही है
हासिल क्या होगा रोता है किसलिये

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

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