बुधवार, 2 नवंबर 2016

छण दुखों का , छण सुखों का है गजब संसार भला

छण दुखों का , छण सुखों का
है गजब संसार भला

पर निरंतर ही दुखों में
किसका जीवन है पला

आज गम तो कल ख़ुशी है
प्रकृति नाटक में ढला

चाहे प्रसन्न हों या निराश
हो अँधेरा या प्रकाश

दोनों में ही ढलने की आदत
है मनुज जीवन कला

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

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