जाति बंधन से बिखरा प्यार
आज जरा सा रो लूं मैं
मीठा अनुभव हुआ नहीं तो
मिश्री कहाँ से घोलूं मैं
प्यार के लिए तरस गया तो
प्यार से कहाँ बोलूं मैं
समाज की दकियानूसी का
कहो तो परतें खोलूं मैं
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